केरल हाउसबोट हादसाः मछुआरे ने दूसरों को बचाया पर खो दी अपनी ‘दुनिया’, परिवार के 11 लोगों की मौत
तिरुवनंतपुरम
कोई बड़ा हादसा होता है तो कई परिवार तबाह हो जाते हैं। लोगों के जेहन में भले ही उसकी जगह नई सुर्खियां ले लेती हैं लेकिन जो अपनों को खो देते हैं, उनकी यादों में वह डरावना सच हमेशा ज़िंदा रहता है। केरल हाउस बोट हादसे में 22 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। मलप्पुरम के तानूर में रविवार शाम हाउस बोट डूब गई थी जिसमें 40 लोग सवार थे। कई लोगों की हालत अब भी गंभीर है। इस एक हादसे में मारे गए लोगों में 13 बच्चे शामिल हैं। 40 साल के मछुआरे कुन्नूमल सैथालवी ऐसे शख्स हैं जिनका इस हादसे में सब कुछ लुट गया। उनका पूरा परिवार खत्म हो गया।
सैथालवी ने अपनी आंखों के सामने ही अपनी दुनिया लुटते हुए देखी। उनकी पत्नी जीनत और चार बच्चे हादसे का शिकार हो गए। सैथालवी के पास ही बेंच पर 11 शव रखे हुए थे जो कि उनके ही परिवार के थे। इसमें उनके भाई की पत्नी राजीना, उनके तीन बच्चे भी शामिल थे जिनकी उम्र 10 साल से भी कम थी। सैथालवी के दूसरे भाई जाबिर ने भी अपनी पत्नी और एक बच्चे को खो दिया। अधिकारियों के मुताबिक हादसे में 13 बच्चों की जान गई है जिनकी उम्र 15 साल से कम थी।
इस हादसे में मरने वाले ज्यादातर लोग आसपास रहने वाले सामान्य लोग ही थे। वे सभी अपने बच्चों के साथ रविवार को घूमने-फिरने निकले थे। कुन्नूमल के भाई का घर हादसे वाली जगह से पास ही था। सबने मिलकर प्लान बनाया था कि पूरे परिवार के साथ संडे की छुट्टी मनाएंगे और बोट पर पार्टी करेंगे। उनकी बहन नुजरथ भी छुट्टी मनाने आई हुई थी। सैथालवी के एक पड़ोसी ने कहा, सभी भाई बहनों में बहुत प्यार था। वे सब अकसर इकट्ठा होते थे। जो भाई फिशिंग करता था वह पत्नी के साथ बाहर नहीं जा पाता था। पहली बार उन्होंने घूमने का प्लान बनाया था।
सैथालवी ने कहा है कि उसने रविवार शाम करीब 4 बजे पूरे परिवार को बीच पर छोड़ दिया और खुद वापस घर आ गया। उन्होंने कहा, मैं चाहता था कि 6 बजे सब लोग घर वापस आ जाएं। लेकिन बच्चे बोट राइड करने की जिद कर रहे थे। इसलिए देर तक बोट का इंतजार करते रहे। उन्होंने बताया, 7 बजे पत्नी का फोन आया। वह चिल्ला रही थी और कह रही थी कि बोट डूब रही है। मैं बच्चों और दूसरे लोगों की भी चिल्लाने की आवाज सुन रहा था। मैं अपनी देसी फिशिंग बोट लेकर वहां पहुंचा। मैं अपनी बहन और उसकी बेटी के साथ कई लोगों को बचाने में कामयाब रहा लेकिन मेरा अपना परिवार नहीं बचा पाया।
सैथालवी की बहन और उनकी बेटी भी हादसे में घायल हो गई। सैथालवी के परिवार का अंतिम संस्कार पाराप्पनगाड़ी में किया गया। इस हादसे में एक महिला और उसके तीन बच्चों की भी मौत हो गई। महिला अपने पति से अलग हो गई थी। वह एक कपड़े की दुकान पर काम करती थी। आयिशा की मां और एक बच्चा ही बच पाया।