September 24, 2024

नीतीश कुमार उद्धव ठाकरे के हाल से सहमे! जेपी नड्डा के बयान के बाद बिहार के सीएम को सताने लगा डर

0

पटना
बिहार की सियासत में शुरू हुई उठाटक के तार महाराष्ट्र से जुड़ने लगे हैं। अंदरूनी जानकारों के मुताबिक जो हाल उद्धव ठाकरे का हुआ है, उससे नीतीश कुमार घबरा गए हैं। उनकी इस घबराहट को और ज्यादा बढ़ा दिया है हाल ही में बिहार पहुंचे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने। जेपी नड्डा ने यहां पर बोलते हुए कहा था कि क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व नहीं बचेगा। उनके इस बयान के बाद जेडीयू और ज्यादा सतर्क हो गई है। शायद यही वजह है कि जेडीयू ने अपना अस्तित्व बचाने के लिए भाजपा से दूरी बनाने में जुट गई है।

कुछ ऐसी है नीतीश की आशंका
जेडीयू की आशंका की पुष्टि पार्टी के वरिष्ठ नेता उमेश कुशवाहा के बयान से भी होती है। उन्होंने कहा कि नड्डा कह रहे हैं कि क्षेत्रीय पार्टियां नहीं बचेंगी। लेकिन उन्हें इस बात का ख्याल रखना चाहिए था कि हमारे जैसी क्षेत्रीय पार्टियां उनकी सहयोगी की भूमिका में हैं। वहीं आज सुबह नीतीश कुमार ने भाजपा की तरफ से डिप्टी सीएम का पद संभाल रहे तारकिशोर प्रसाद से मीटिंग की है। बताया जाता है कि इस मीटिंग के बाद उन्होंने कहा कि कुछ भी सीरियस नहीं है। एनडीटीवी के मुताबिक अंदरखाने से यह जानकारी आई है कि नीतीश कुमार इस बात को लेकर काफी आशंकित हैं कि बिहार का हाल भी महाराष्ट्र जैसा हो जाएगा। गौरतलब है कि यहां पर महाविकास अघाड़ी गठबंधन के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को सत्ता से बाहर करके भाजपा ने शिवसेना बागियों के साथ सरकार बनाई है। दावा किया जाता है कि महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन का यह सारा खेल भाजपा द्वारा रचा गया था। ठाकरे के एक करीबी ने भी भाजपा पर अपनी पार्टी को तोड़ने का आरोप लगाया है।

सत्ता और दल बचाने की कवायद
गौरतलब है कि उद्धव ठाकरे की तरह नीतीश कुमार भी एक क्षेत्रीय क्षत्रप हैं। भाजपा की लहर के बीच वह खुद का अस्तित्व और सत्ता को बचाने की मुहिम में जुटे हैं। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार गिराने में उनकी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे की बगावत ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी। भाजपा के करीब रहकर शिंदे ने ऐसा खेल रचा कि मुख्यमंत्री का पद गंवाने के बाद आज उद्धव सुप्रीम कोर्ट में अपनी पार्टी बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। उद्धव ठाकरे की ही तरह नीतीश कुमार का भी भाजपा से काफी पुराना और गहरा रिश्ता रहा है। बस फर्क इतना है कि नीतीश ने 2017 में भाजपा से गठबंधन के लिए अपने सहयोगियों का साथ छोड़ दिया था। जबकि उद्धव ने सरकार बनाने के लिए भाजपा को छोड़ कांग्रेस और एनसीपी का दामन थाम लिया था।

अमित शाह और आरसीपी के करीब आने से हुई समस्या
वहीं नीतीश कुमार को बिहार में चल रहे इस खेल के पीछे अमित शाह का हाथ होने की भी आशंका है। नीतीश कुमार का मानना है कि शाह ने उनकी सरकार में अपने करीबी मंत्रियों को प्लांट किया हुआ है। आरसीपी सिंह को भी लेकर नीतीश के मन में समय के साथ संदेह गहरा होता गया है। 2021 में नीतीश ने ही आरसीपी सिंह को जनता दल यूनाइटेड की तरफ से केंद्र सरकार में बतौर मंत्री शामिल कराया था। बाद में बिहार में आरसीपी सिंह अमित शाह के कुछ ज्यादा ही करीब होते गए। यहां तक कि वह नीतीश कुमार की पार्टी में रहते हुए भी उनके खिलाफ जहर उगलने लगे थे।

करीब दो महीने पहले नीतीश कुमार ने राज्यसभा में उनका कार्यकाल बढ़ाने से इंकार कर दिया था। इसके साथ ही केंद्र सरकार के साथ भी आरसीपी सिंह का कार्यकाल खत्म हो गया। वहीं आरसीपी सिंह ने भी जेडीयू पर तमाम आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी थी और कहा था कि नीतीश कुमार सात जन्म तक प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे। इस पर नीतीश के करीबी ललन सिंह ने कहा था कि आरसीपी भाजपा के इशारे पर काम कर रहे थे। ललन सिंह के मुताबिक आरसीपी सिंह का कहना था कि जेडीयू से एकमात्र वही हैं, जिन्हें अमित शाह बतौर केंद्रीय मंत्री स्वीकार करेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *