विरासत में राजनीति, 3 दशक से धाक, और फिर दरकने लगा मुख्तार का ‘फाटक’
लखनऊ
पूर्वांचल की राजनीति में वर्ष 1985 के बाद से तीन दशक तक धुरी रहा ‘फाटक’ (मुख्तार अंसारी परिवार का गाजीपुर स्थित आवास) अब राजनीतिक रूप से भी दरकने लगा है। वर्ष 2014 में केंद्र और 2017 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद न केवल मुख्तार पर नकेल लगी, बल्कि परिवार राजनीतिक रूप से भी अस्थिर हुआ। लाल झंडे से राजनीति की शुरुआत करने वाले अंसारी परिवार को सपा और बसपा का साथ मिला लेकिन उनकी स्थिति कभी हां तो कभी ना की रही।
राजनीति अंसारी परिवार को विरासत में मिली। दादा मुख्तार अहमद अंसारी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के अध्यक्ष थे। वह दिल्ली में बसे लेकिन उनका कुनबा गाजीपुर में रहा। पुत्र सुभानुल्लाह अंसारी मोहम्मदाबाद के युसूफपुर में परिवार के साथ रहते थे। वह राजनीति में कम सक्रिय रहे। उनके मंझले बेटे अफजाल ने परिवार को पुन: राजनीति से जोड़ा। अस्सी के दशक में अफजाल अंसारी पूर्वांचल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े नेताओं में शुमार थे। अंसारी परिवार 1985 में तब प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य पर उभरा, जब अफजाल अंसारी ने मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट से कांग्रेस की लहर में चुनाव जीता। भाकपा प्रत्याशी के रूप में वह 1985 से 89 तक, 1989 से 1991, 1991 से 1993 तक, 1993 से 1996 तक चार बार मोहम्मदाबाद सीट से विधायक बने। फिर इसी सीट से 1996 में सपा के टिकट पर जीत हासिल की। साल 2004 में गाजीपुर से सपा के टिकट पर सांसद बने। 2019 में बसपा के टिकट पर गाजीपुर से ही रेल राज्यमंत्री रहे मनोज सिन्हा को हराकर सांसद बने। फिलहाल सजायाफ्ता होने के कारण सदस्यता रद हो चुकी है।
सन 90 के दशक में मुख्तार अंसारी के राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत हुई जब बसपा ने उसे 1996 में मऊ विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया। पहली बार विधायक बने मुख्तार का इस सीट पर दबदबा 2022 तक कायम रहा। इस सीट से 1996 में बसपा, 2002 और 2007 में निर्दल, 2012 में कौमी एकता दल और 2017 में पुन: बसपा के टिकट पर विधायक बना। साल 2009 के लोकसभा में वाराणसी सीट से भाजपा के मुरली मनोहर जोशी से हार गया था। अंसारी बंधुओं में सबसे बड़े सिबगतुल्लाह अंसारी भी मोहम्मदाबाद सीट से 2007 से 2012 तक मोहम्मदाबाद से सपा और 2012 से 2017 तक कौमी एकता दल से विधायक रहे।
कौएद का गठन किया, असफल रहे
सन 2007 में सत्ता में आई बसपा ने इस परिवार से किनारा कर लिया। सपा ने दरवाजे बंद कर लिए। तब अंसारी बंधुओं ने साल 2010 में कौमी एकता दल का गठन किया। साल 2012 के विधानसभा चुनाव के पहले गाजीपुर के लंका मैदान में शक्ति प्रदर्शन हुआ। उसमें खूब भीड़ उमड़ी। इसी पार्टी के नाम पर अंसारी बंधुओं ने 2012 का विधानसभा और 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा, दूसरों को लड़ाया भी लेकिन सफल नहीं हुए। उधर, सत्ता से दूर बसपा ने फिर अंसारी बंधुओं को शरण दिया। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले कौएद का विलय बसपा में हो गया। बसपा ने मुख्तार अंसारी को मऊ से चुनाव भी लड़ाया। गाजीपुर से सांसदी की सदस्यता जाने के बाद बसपा ने अब भी अफजाल अंसारी पर चुप्पी साध रखी है। मौजूदा समय में मऊ सदर से मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी सुभासपा और मोहम्मदाबाद सीट से सिबगतुल्लाह अंसारी के बेटे सुहैल मन्नू अंसारी विधायक हैं। अब्बास अंसारी पर कई संगीन मुकदमे हैं। वह वर्तमान में चित्रकूट जेल में है। फिलहाल कोई पार्टी नहीं है, जो इस कुनबे को एक साथ स्वीकार करे।