November 29, 2024

अचानक लूप और अप लाइन के सिग्नल हो गए थे रेड, बालासोर हादसे में हुआ खुलासा

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 बालासोर
   

ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रिपल ट्रेन हादसे को लेकर बड़ी जानकारी सामने आई है. डेटा लॉगर से मिली जानकारी के मुताबिक, कोरोमंडल ट्रेन को होम सिग्नल और आउटर सिग्नल दोनों पर हरी झंडी दी गई थी. लेकिन अचानक से पहले अप लाइन पर फिर लूप लाइन पर सिग्नल रेड हो जाता है. लूप लाइन पर ही कोरोमंडल एक्सप्रेस मालगाड़ी से टकरा जाती है.

दरअसल, ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार को बड़ा हादसा हुआ था. यहां कोरोमंडल एक्सप्रेस लूप लाइन में खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई थी. टक्कर इतनी तेज थी, कि कोरोमंडल एक्सप्रेस के कुछ डिब्बे पटरी से उतर गए थे. ऐसे में यह बगल से गुजर रही यशवंतपुर हावड़ा ट्रेन से टकरा गए. इस भीषण हादसे में 288 लोगों की मौत हुई है. जबकि 1100 से ज्यादा जख्मी हुए.

डेटा लॉगर से मिली अहम जानकारी

बालासोर ट्रेन हादसे के डेटा लॉगर को एक्सेस किया है. इसे ट्रेन का ब्लैक बॉक्स भी कहा जाता है. यह वही डेटा लॉगर है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रेलवे बोर्ड की सदस्य जया वर्मा सिन्हा ने दिखाया था. आज तक ने इसे समझने के लिए सिग्नलिंग और टेलीकॉम एक्सपर्ट अखिल अग्रवाल से बात की. वे रेलवे बोर्ड के सिग्नलिंग और टेलीकॉम के पूर्व महानिदेशक भी हैं.

अखिल अग्रवाल ने बताया कि बालासोर हादसे में जो कुछ हुआ, डेटा लॉगर समय के साथ इसे दिखाता है. डायग्राम बताता है कि स्टेशन मास्टर को सूचित करने के लिए ट्रैक में कई सेंसर होते हैं. यह बताता है कि कोई प्लेटफॉर्म खाली है या नहीं. साथ ही यह भी दिखाता है कि अगर किसी प्लेटफॉर्म पर ट्रेन है, तो वह स्थिर है या चल रही है.
 
क्या हुआ था हादसे वाले दिन?

अग्रवाल ने बताया कि जब ट्रैक पर कोई ट्रेन खड़ी होती है, तो डेटा लॉगर पर लाइन लाल हो जाती है. जब ट्रैक खाली होता है, तो यह ग्रे होता है. जब सिगनल साफ होकर पीला हो जाता है, तो UP और DOWN लाइन पीली हो जाती हैं. सबसे पहले डाउन लाइन पर यशवंतपुर-हावड़ा ट्रेन को निकालने के लिए पीले और हरे रंग के सिग्नल को मंजूरी दी गई थी. इसके बाद अप लाइन के सिग्नल को कोरोमंडल ट्रेन के लिए साफ किया गया.

अग्रवाल के मुताबिक, जब हावड़ा ट्रेन गुजर रही थी, तब कोरोमंडल ट्रेन बहनागा बाजार स्टेशन के पास पहुंचना शुरू कर देती है. उस वक्त कोरोमंडल ट्रेन को होम सिग्नल और आउटर सिग्नल दोनों पर हरी झंडी दी गई. अचानक अप लाइन का ट्रैक लाल हो जाता है और फिर लूप लाइन का ट्रैक भी लाल हो जाता है. इसी पर मालगाड़ी खड़ी थी. लॉग पर समय 18.55 था. इस पूरे हादसे को डाटा लॉगर पर देखा जा सकता है.

ह्यूमन एरर या ओडिशा हादसे के पीछे साजिश?

अब ऐसे में सवाल उठते हैं कि जब दोनों लाइनों पर ग्रीन सिग्नल थे, तो अचानक अप लाइन पर रेड सिग्नल क्यों हो गए, जिसके चलते ड्राइवर को कोरोमंडल ट्रेन लूप लाइन में ले जाना पड़ा. क्या यह ह्यूमन एरर था, या साजिश के तहत इस एक्सीडेंट को अंजाम दिया गया. इन सबका पता लगाने के लिए सीबीआई ने इस मामले में जांच शुरू कर दी है. रेलवे भी पहले ही कह चुका है कि शुरुआती जांच में सबूत मिले हैं कि सिस्टम में जानबूझकर छेड़छाड़ की गई. रेलवे शुरुआत से ही पटरी में 'तोड़फोड़' और 'इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम' में छेड़छाड़ की आशंका जता रहा है.

रेलवे के कुछ अधिकारियों का कहना है कि जानबूझकर हस्तक्षेप के बिना ये संभव नहीं है कि ट्रेन के लिए निर्धारित मार्ग को मुख्य लाइन से लूप लाइन में बदल दिया जाए.

 
इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग क्या है?

रेलवे इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (Railway Electronic Interlocking) एक ऐसी टेक्नोलॉजी है, जो रेलवे सिग्नलिंग को कंट्रोल करने के लिए इस्तेमाल की जाती है. यह एक सुरक्षा प्रणाली है जो ट्रेनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सिग्नल और स्विच के बीच ऑपरेटिंग सिस्टम को कंट्रोल करती है. यह सिस्टम रेलवे लाइनों पर सुरक्षित और अवरुद्ध चल रही ट्रेनों के बीच सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करती है. इसकी मदद से रेल यार्ड के कामों को इस तरह से कंट्रोल किया जाता है जो नियंत्रित क्षेत्र के माध्यम से ट्रेन का सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित करे.

 

इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग क्या काम करता है?

अग्रवाल के मुताबिक, कोई भी घटना होती है, तो इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग को एक रिले (संदेश) भेजा जाता है. जब रिले की स्थिति बदलती है तो इसे लॉगर में टाइम स्टैम्प के साथ दिखाया जाता है. जो भी जांच करेगा, वह डेटा लॉगर को देखेगा और पूछताछ में इसका इस्तेमाल करेगा.

उन्होंने बताया कि इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग यह सुनिश्चित करता है कि ट्रेन को जिस दिशा में जाना है, वह उसी दिशा में जाए. कोरोमंडल एक्सप्रेस सीधे अप लाइन में जा रही थी. ऐसे में उसे ग्रीन सिग्नल के बाद अधिकतम स्वीकार्य गति से अप ट्रैक पर ही जाना था.

क्या काम करता है रिले रूम?
 
अखिल अग्रवाल ने बताया, रिले रूम इलेक्ट्रॉनिक लॉकिंग अहम हिस्सा माना जाता है. यह माइक्रोप्रोसेसर-आधारित प्रणाली है. इसके साथ इवेंट लॉगर भी रखा जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई छेड़छाड़ न हो. भारतीय रेलवे में रिले रूम को हमेशा लॉक रखा जाता है.

अग्रवाल के मुताबिक, इसकी एक चाबी हमेशा स्टेशन मास्टर के पास होती है और एक चाबी मेंटेनर के पास होती है जब मेंटेनर को रिले रूम में काम करना होता है तो वह स्टेशन मास्टर के पास जाता है, उसे रजिस्टर में लिखना होता है कि वह रिले रूम में जा रहा है. साथ ही यह भी लिखता है कि वह क्यों जा रहा है. रिले रूम अहम होता है

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