November 27, 2024

छत्तीसगढ़ी महतारी की अनूठी सेवा, बिना सरकारी मदद दे रहे चिन्हारी सम्मान

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भिलाई

साहित्यकार और भिलाई स्टील प्लांट के रिटायर कर्मी दुर्गा प्रसाद पारकर में छत्तीसगढ़ी को भाषा के तौर पर स्थापित करने जुनून है। पारकर उम्र के छठवें दशक में सक्रिय रहते हुए छत्तीसगढ़ी में लगातार लिख रहे हैं। अब तक उनकी 150 से ज्यादा कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें उपन्यास, कहानी, कविता व अनुवाद सहित आलेख शामिल है। पारकर विगत वर्ष 2001 से बगैर किसी सरकारी मदद के खुद के खर्च पर छत्तीसगढ़ी सेवियों को चिन्हारी सम्मान भी दे रहे हैं। पारकर का कहना है कि वह छत्तीसगढ़ी को भाषा के तौर पर स्थापित करने और इसे समृद्ध करने अपनी तरफ से छोटी सी पहल कर रहे हैं। इन दिनों पारकर अपने सालाना चिन्हारी सम्मान समारोह की तैयारियों में जुटे हुए हैं।

उल्लेखनीय है कि रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर में एमए छत्तीसगढ़ी पाठ्यक्रम शुरू करवाने में भी दुर्गा प्रसाद पारकर की उल्लेखनीय भूमिका रही है। वहीं दुर्ग हेमचंद विश्वविद्यालय में उनका लिखा उपन्यास एमए पाठ्यक्रम में शामिल है। मूलत: बेलौदी (मालूद) गांव के रहने वाले और वर्तमान में आशीष नगर रिसाली में निवासरत पारकर ने बताया कि उन्होंने भिलाई इस्पात संयंत्र में अपना पूरा सेवाकाल प्लेट मिल में दिया और सेवा के दौरान ही उन्हें महसूस हुआ कि छत्तीसगढ़ महतारी की सेवा के लिए हमेशा सरकार की ओर देखना ठीक नहीं है। आखिर हमारी भी तो कुछ जवाबदारी होती है और इसी प्रण के तहत उन्होंने अपने लेखन के अलावा छत्तीसगढ़ी सेवियों को चिन्हारी सम्मान देने प्रण लिया। इसके बाद 2001 से इसकी शुरूआत की। इसके लिए उन्हें घर-परिवार से भी अभूतपूर्व समर्थन मिला।

उन्होंने बताया कि दो दशक से जारी इस सम्मान समारोह में सिर्फ विगत वर्ष ऐसा अवसर आया, जिसमें छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग ने उनके आयोजन में सहयोग किया, अन्यथा वह हमेशा अपने स्तर पर ही यह कार्यक्रम करते आए हैं और आगे भी ऐसे ही करते रहेंगे। पारकर का कहना है कि इससे उन्हें आत्मिक संतुष्टि मिलती है कि वह अपनी छत्तीसगढ़ महतारी के लिए कुछ कर पा रहे हैं। पारकर ने बताया कि उन्होंने प्रख्यात व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की रचनाओं का छत्तीसगढ़ी में अनुवाद किया है और वर्तमान में प्रख्यात साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों का छत्तीसगढ़ी अनुवाद कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग सहित ढेरों सम्मान से विभूषित दुर्गा प्रसाद पारकर का प्रयास है कि छत्तीसगढ़ी भी देश की अन्य भाषाओं की तरह सम्मानित और स्थापित हो।

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