प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पकरिया गाँव में कोदो भात-कुटकी खीर का आनंद लेंगे
अद्भुत है शहडोल जिले का पकरिया गाँव
पकरिया की जनजातियों के रीति-रिवाज, खान-पान और जीवन-शैली अद्वितीय है
भोपाल
एक जुलाई 2023 का दिन शहडोल जिले के लिए बहुत ही ऐतिहासिक होगा। इस दिन भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिले की स्थानीय जनजातीय संस्कृति एवं परंपराओं से अवगत होंगे। प्रधानमंत्री मोदी खटिया पर बैठ कर देशी अंदाज में जनजातीय समुदाय, फुटबॉल क्रांति के खिलाड़ियों, स्व-सहायता समूह की लखपति दीदियों और अन्य लोगों से संवाद करेंगे। ऐसा पहली बार होगा जब प्रधानमंत्री देशी अंदाज में जनजातीय समुदाय के साथ जमीन पर बैठ कर कोदो, भात- कुटकी खीर का आनंद लेंगे। संपूर्ण कार्यक्रम भारतीय परंपरा एवं संस्कृति के अनुसार होगा। प्रधानमंत्री के भोज में मोटा अनाज (मिलेट) को विशेष प्राथमिकता दी जा रही है। पकरिया गाँव की जल्दी टोला में प्रधानमंत्री के भोज की तैयारी जोर – शोर से चल रही है।
पकरिया गाँव अद्भुत एवं अविस्मरणीय है। गाँव में जीवन अपनी सहज निश्छलता के साथ मुस्कान बिखेरता हुआ सात रंग के इंद्रधनुष की तरह गतिमान है। पकरिया सघन वन से आच्छादित एक ऐसा गाँव है, जहाँ साल, सागौन, महुआ, कनेर, आम, पीपल, बेल, कटहल, बाँस और अन्य पेड़ों से प्रवाहित हवाएँ उन्नत मस्तकों का गौरव-गान करती हैं। उनकी उपत्यकाओं में कल-कल निनाद से आनंदित सोन नदी की वेगवाही रजत-धवल धाराएँ मानो वसुंधरा के हरे पृष्ठों पर अंकित पारंपरिक गीतों की मधुर पंक्तियाँ हैं।
पकरिया में 4700 लोग करते हैं निवास
पकरिया गाँव में 4700 लोग निवास करते हैं, जिसमें 2200 लोग मतदान करते हैं। गाँव में 700 घर जनजातीय समाज के हैं, जिनमें गोंड समाज के 250, बैगा समाज के 255, कोल समाज के 200, पनिका समाज के 10 और अन्य समाज के लोग निवास करते हैं। पकरिया गाँव में 3 टोला है, जिसमें जल्दी टोला, समदा टोला एवं सरकारी टोला शामिल है।
जनजातियों का नृत्य-संगीत प्रकृति की लीला-मुद्राओं का अनुकरण
ढोल, माँदर, गुदुम, टिमकी, डहकी, माटी माँदर, थाली, घंटी, कुंडी, ठिसकी, चुटकुलों की ताल पर बाँसुरी, फेफरिया और शहनाई की स्वर-लहरियों के साथ भील, गोंड, कोल, कोरकू, बैगा, सहरिया, भारिया आदि जनजातीय युवक-युवतियों की तरह बघेलखंड-शिखर थिरक उठते हैं। जनजातियों का नृत्य-संगीत प्रकृति की इन्हीं लीला-मुद्राओं का अनुकरण है।
पकरिया गाँव का जनजातीय समुदाय अद्भुत एवं अद्वितीय इसलिए भी है कि यहाँ के जनजातियों के रीति-रिवाज, खानपान, जीवन शैली सबसे अलहदा है। जनजातीय समुदाय प्राय: प्रकृति के सान्निध्य में रहते हैं। इसलिये निसर्ग की लय, ताल और राग-विराग उनके शरीर में रक्त के साथ संचरित होते हैं। वृक्षों का झूमना और कीट-पतंगों का स्वाभाविक नर्तन जनजातियों को नृत्य के लिये प्रेरित करते हैं। हवा की सरसराहट, मेघों का गर्जन, बिजली की कौंध, वर्षा की साँगीतिक टिप-टिप,पक्षियों की लयबद्ध उड़ान ये सब नृत्य-संगीत के उत्प्रेरक तत्व हैं।
नृत्य-संगीत जनजातीय जीवन-शैली का अभिन्न अंग
कहा जा सकता है कि नृत्य और संगीत मनुष्य की सबसे कोमल अनुभूतियों की कलात्मक प्रस्तुति है। जनजातियों के देवार्चन के रूप में आस्था की परम अभिव्यक्ति की प्रतीक भी। नृत्य-संगीत, जनजातीय जीवन-शैली का अभिन्न अंग है। यह दिन भर के श्रम की थकान को आनंद में संतरित करने का उनका एक नियमित विधान भी है।
गोंड समुदाय के 'सजनी' गीत-नृत्य की चमत्कृत भाव-मुद्राएँ
गाँव में गोंड जनजाति समूह में करमा, सैला, भड़ौनी, बिरहा, कहरवा, ददरिया, सुआ आदि नृत्य-शैलियाँ प्रचलित हैं। गोंड समुदाय के 'सजनी' गीत-नृत्य की भाव-मुद्राएँ चमत्कृत करती हैं। इनका दीवाली नृत्य भी अनूठा होता है। माँदर, टिमकी, गुदुम, नगाड़ा, झांझ, मंजीरा, खड़ताल, सींगबाजा, बाँसुरी, अलगोझा, शहनाई, बाना, चिकारा, किंदरी आदि इस समुदाय के प्रिय वाद्य हैं। बैगा, माटी माँदर और नगाड़े के साथ करमा, झरपट और ढोल के साथ दशहरा नृत्य करते हैं। विवाह के अवसर पर ये बिलमा नृत्य करते हैं। बारात के स्वागत में किया जाने वाला परघौनी नृत्य आकर्षक होता है। छेरता नृत्य नाटिका में मुखौटों का अनूठा प्रयोग होता है। इनकी नृत्यभूषा और आभूषण भी विशेष होते हैं।
पकरिया के जनजातीय समाज की पूजन-अर्चन शैली
पकरिया गाँव के जनजाति समूह में हरहेलबाब या बाबदेव, मइड़ा कसूमर, भीलटदेव, खालूनदेव, सावनमाता, दशामाता, सातमाता, गोंड जनजाति में महादेव, पड़ापेन या बड़ादेव, लिंगोपेन, ठाकुरदेव, चंडीमाई, खैरमाई, बैगा जनजाति में बूढ़ादेव, बाघदेव, भारिया दूल्हादेव, नारायणदेव, भीमसेन और सहरिया जनजाति में तेजाजी महाराज, रामदेवरा आदि की पूजा पारंपरिक रूप से प्रचलित है।
पकरिया की जनजातियों का विशेष भोजन
पकरिया गाँव के जनजाति समुदाय के भोजन में कोदो, कुटकी, ज्वार, बाजरा, साँवा, मक्का, चना, पिसी, चावल आदि अनाज शामिल है। महुए का उपयोग खाद्य और मदिरा के लिये किया जाता है। आजीविका के लिये प्रमुख वनोपज के रूप में भी इसका संग्रहण सभी जनजातियाँ करती हैं। बैगा, भारिया और सहरिया जनजातियों के लोगों को वनौषधियों का परंपरागत रूप से विशेष ज्ञान है। बैगा कुछ वर्ष पूर्व तक बेवर खेती करते रहे हैं।