November 28, 2024

कथा से जीवन का रुपांतरण होना चाहिए: पंडित मेहता

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रायपुर

कथा केवल सुनने के लिए नहीं होने चाहिए, कथा से जीवन का रुपांतरण होना चाहिए। कथा आत्मसात करने के लिए है और उसके अनुरुप व्यवहार और मयार्दाएं भी सीखाती है। श्रीमद् भागवत में भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और त्याग चारों का ही मिश्रण है और यह मनुष्य को संसार में कैसे रहना चाहिए यह सीखाती है। लव फॉर ह्मयुमैनिटी नींव संस्था द्वारा मैक कॉलेज आॅडिटोरियम समता कॉलेनी में श्रीमद् भागवत कथा आयोजन के पहले दिन कथावाचक पंडित विजय शंकर मेहता ने ये बातें कहीं।

उन्होंने कहा कि दौड?े पर दुनिया मिलती है, लेकिन बनाने वाला बैठने से मिलता है। भागवत कथा में बैठना आवश्यक है इसका तात्पर्य यह है कि केवल शरीर से ही नहीं पूरे मन से भागवत का श्रवण करना आवश्यक है तभी वह सार्थक है। कथा से जीवन का रुपांतरण होना चाहिए, कथा ऐसी सुनो कि वह आपके जीवन में भी बदलाव ला सकें। श्रीमद् भागवत समस्त वेदों का सार है, भागवत शांत है और बाकी सब अशांत है। जीवन में अशांति संसार से, संपत्ति से, संबंधों से, स्वास्थ्य से और संतान से आती है। बाकी सब अशांतियों से तो लड़ा जा सकता है लेकिन संतान से जो अशांति आती है वह पूरे जीवन को ही अशांत बना देती है। मेहता जी ने कहा कि मनुष्य के जीवन में आज अशांति का जो मूल कारण यह है कि केंद्र में परमात्मा नहीं है और जब केंद्र में परमात्मा नहीं होते तो अशांति ही रहती है। केंद्र में परमात्मा को रखें और परिधि में संसार को।

कथा का श्रवण कैसे करना चाहिए इसकी व्याख्या करते हुए पंडित मेहता ने कहा कि भरोसा, ललक और शिकायत का त्याग होना, कथा पर भरोसा हो, सुनने की ललक हो और चित में शिकायत नहीं होनी चाहिए। तीनों बातों को ध्यान में रखते हुए जब हम कथा का श्रवण करते है तो निश्चित ही उसका लाभ हमें प्राप्त होता है। कथा का श्रवण संकल्प के साथ करना चाहिए। ऐसा कोई मनुष्य नहीं है जिसमें कोई दोष ना हो, दोष का त्याग और अच्छी बातों को आत्मसात जीवन में करें जिससे कि जीवन का रुपांतरण हो सकें। आज धार्मिक आयोजन और कथाएं केवल दिखावे और तमाशे के लिए होने लगी है इसे हमें ही बचाना होगा। आने वाली पीढ़ी को कैसे बनाना है, कैसे संवारना है यह हमें कथा के माध्यम से प्राप्त होता है और उसे जब हम जीवन में उतारते है तो हमारा आचरण भी उसकी अनुरुप होता है। यही सीख हमें अपनी पीढ़ी को देनी है ताकि उन्हें यह कहने का अवसर न मिलें कि कथा से या धार्मिक आयोजनों में जाने से क्या होता है।

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