September 30, 2024

चांद की सतह पर जाकर क्या मिलेगा, चंद्रयान-3 से टॉप 4 क्लब में होगा भारत; विदेशी मीडिया में भी तारीफ

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नई दिल्ली

अंतरिक्ष जगत में भारत एक और लंबी छलांग लगाने जा रहा है। चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग के लिए काउंटडाउन शुरू हो चुका है। शुक्रवार दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर चंद्रयान श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया जाएगा। यह चंद्रयान-2 मिशन का ही फॉलोअप है। इसके तहत लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कराई जाएगी। इसके अलावा रोवर को सतह पर चलाकर देखा जाएगा। लैंडर को चांद की सतह पर उतारना सबसे जटिल प्रक्रिया माना जाता है। यही वह वक्त होगा, जिस पर वैज्ञानिकों की नजरें टिकी होंगी और देश भर के लोगों की धड़कनें बढ़ी होंगी।

चंद्रयान-3 में इस बार ऑर्बिटर नहीं भेजा जा रहा है। इस बार स्वदेशी प्रोपल्शन मॉड्यूल भेज रहे हैं। ये चंद्रमा के चारों ओर 100 किलोमीटर की गोलाकार कक्षा में चक्कर लगाते रहेंगे। भारत इस उपलब्धि के साथ ही दुनिया के टॉप 4 देशों में शामिल हो जाएगा, जो चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग कर चुके हैं। भारत से पहले अमेरिका, रूस और चीन ही यह कारनामा दिखा चुके हैं। भारत के इस मिशन की दुनिया भर में चर्चा हो रही है। अमेरिकी न्यूज चैनल सीएनएन ने भी इसकी तारीफ करते हुए लिखा है कि भारतीय तकनीक के जरिए ही इस पर काम हो रहा है और यह भारत की अंतरिक्ष क्षेत्र में ऐतिहासिक उपलब्धि होगी।

सीएनएन ने लिखा कि भारतीय वैज्ञानिक इस मिशन पर कई साल से काम कर रहे हैं। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग का लक्ष्य तय किया गया है, जहां अब तक पहुंचा नहीं जा सका है। इससे चंद्रमा के बारे में अतिरिक्त जानकारियां भारत के जरिए दुनिया को मिल सकेंगी। चंद्रयान 3 की लॉन्चिंग के लिए स्वदेशी लैंडर मॉड्यूल, प्रोपल्सन मॉड्यूल और रोवर का ही इस्तेमाल किया गया है। चांद की सतह पर लैंडर को उतारा जाएगा और फिर उसके जरिए रोवर को कक्षा में स्थापित किया जाएगा। इसके माध्यम से चांद की सतह का अध्ययन हो सकेगा।

LVM3 लॉन्चर से भेजा जाएगा चंद्रयान-3
चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग के लिए LVM3 लॉन्चर का इस्तेमाल किया जाएगा। यह भारी सैटेलाइट्स को भी अंतरिक्ष में छोड़ सकता है। यह 43.5 मीटर यानी करीब 143 फीट ऊंचा है और 642 टन इसका वजन है। यह LVM-3 रॉकेट की चौथी उड़ान होगी। इससे पहले चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग भी इसके माध्यम से ही की गई थी। अब तक 4 देश ही चंद्रमा पर लैंडिंग का प्रयास कर पाए हैं, लेकिन उनकी भी सफलता की दर 52 फीसदी ही है। ऐसे में यह एक चुनौतीपूर्ण मिशन है, जिस पर इसरो ने मजबूती से कदम बढ़ाए हैं।

 

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