September 30, 2024

विपक्ष की सियासी खिचड़ी में कांग्रेस लगा रही अपना तड़का!

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  नई दिल्ली

नीतीश कुमार ने केंद्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट करने की कवायद शुरू की थी. नीतीश ने अपनी इस पहल को परवान चढ़ाने के लिए पटना से दिल्ली और भुवनेश्वर-कोलकाता से चेन्नई तक एक कर दिया. महीनों तक चले मेल-मुलाकात के बाद पिछले महीने 23 जून को पटना में 15 दलों के नेता जुटे थे. सभी ने एकजुट होकर चुनाव लड़ने पर सहमति व्यक्त की और बातचीत अब दूसरे दौर में पहुंच चुकी है.

विपक्षी दलों के नेताओं की कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में 17-18 जुलाई को बैठक होनी है. बैठक से पहले आम आदमी पार्टी ने साफ कह दिया था कि दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर केंद्र सरकार के अध्यादेश पर कांग्रेस अपना रुख साफ नहीं करती है तो हम बैठक में नहीं जाएंगे. केजरीवाल की प्रेशर पॉलिटिक्स काम आई और अब कांग्रेस ने ऐलान कर दिया है कि अध्यादेश के मुद्दे पर पार्टी संसद में आम आदमी पार्टी का समर्थन करेगी. अब ये तय हो गया है कि केजरीवाल बेंगलुरु की बैठक में जाएंगे.

पटना की पहली बैठक में जहां नीतीश और बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव फ्रंटफुट पर थे. वहीं, अब दूसरी बैठक से पहले कांग्रेस ड्राइविंग सीट पर आ गई है. बेंगलुरु बैठक की अध्यक्षता कांग्रेस कर रही है. बैठक कर्नाटक में हो रही है जहां कांग्रेस सत्ता में है. अध्यक्ष के नाते बैठक की भूमिका तैयार करने की जिम्मेदारी भी कांग्रेस की होगी. पटना की बैठक में नीतीश कुमार ने बैठक की भूमिका तैयार की थी. उसी तरह बेंगलुरु में राहुल गांधी बैठक का एजेंडा सेट कर सकते हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पटना की बैठक में बुलाए गए 16 दलों के साथ ही करीब 10 नए दलों के नेताओं को भी बेंगलुरु बैठक के लिए न्यौता भेजा है. बेंगलुरु की बैठक में गठबंधन का एक कॉमन एजेंडा तय करने पर चर्चा होनी है. गठबंधन के संयोजक से लेकर कोऑर्डिनेशन कमेटी के गठन तक, बेंगलुरु की बैठक में अहम फैसले हो सकते हैं.

बैठक से पहले कांग्रेस ने एक तरह से ये भी साफ कर दिया है कि उसका चेहरा राहुल गांधी ही हैं. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन भी राहुल के समर्थन में हैं और कह दिया है कि वे देश की आशा हैं. गठबंधन के चेहरे को लेकर चर्चा के साथ ही राज्यों के आधार पर सीट बंटवारे की चर्चा भी बैठक के एजेंडे में है.

सोनिया की डिनर पॉलिटिक्स

एक तरफ राहुल गांधी ने मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ मोर्चा संभाल रखा है तो वहीं दूसरी तरफ सोनिया गांधी भी सक्रिय हो गई हैं. 18 जुलाई की बैठक में सोनिया गांधी भी शामिल होंगी. बैठक से पहले 17 जुलाई की रात सभी विपक्षी दलों के नेताओं को डिनर पर बुलाया गया है. बताया जाता है कि इस डिनर का आइडिया भी सोनिया गांधी का ही है.

कांग्रेस की डिनर पॉलिटिक्स और सोनिया गांधी की सक्रियता को लेकर राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि उन्हें गठबंधन की राजनीति का अनुभव रहा है. पहली बैठक में सकारात्मक संकेत मिले. इसके बाद ही सोनिया गांधी एक्टिव हुई हैं. ममता बनर्जी और राहुल गांधी की नहीं बनती, ये जगजाहिर है. कई ऐसे नेता हैं जिन्हें राहुल से परहेज है लेकिन सोनिया गांधी के साथ खड़े होने में कोई गुरेज नहीं हैं.

सोनिया गांधी की सक्रियता ये बता रही है कि जिस तरह बीजेपी की नजर एनडीए के विस्तार के लिए पुराने गठबंधन सहयोगियों पर है. उसी तरह कांग्रेस ने भी पुराने साथियों को साथ लाने के लिए अब अपनी पूर्व अध्यक्ष को आगे कर दिया है. गौरतलब है कि साल 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद छोटे-छोटे दलों को साथ लाकर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के गठन और कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार गठन में सोनिया गांधी की अहम भूमिका थी. सोनिया यूपीए की चेयरपर्सन भी थीं और 10 साल तक सफलतापूर्वक गठबंधन सरकार चली तो इसके लिए श्रेय उनकी राजनीतिक कुशलता को ही दिया गया.

कांग्रेस ही होगी गठबंधन की धुरी

राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने कहा कि एनडीए और यूपीए में भी कुछ दल बाहर जाते रहे हैं, कुछ नए सहयोगियों की एंट्री होती रही है. देश की सभी पार्टियों को केवल दो गठबंधन में समेट लेने का काम मुश्किल है. विपक्षी एकजुटता की कवायद में भी चुनाव के समय तक उठा-पटक चलती रहेगी. राष्ट्रीय स्तर पर जब भी कोई गठबंधन बना है, कांग्रेस या बीजेपी में से एक दल धुरी रहा है. एनडीए की धुरी बीजेपी है और यूपीए की कांग्रेस. विपक्षी एकजुटता की कवायद में कांग्रेस ही धुरी होगी, ये संकेत तो थे लेकिन अब तस्वीर साफ हो गई है.

विपक्षी एकजुटता यूपीए का विस्तार

कांग्रेस विपक्षी एकजुटता की कवायद को यूपीए के विस्तार के रूप में देख रही है. पटना की बैठक हो या बेंगलुरु की, आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी को छोड़ दें तो लगभग सभी दल कभी न कभी यूपीए में रह चुके हैं. हालांकि, सपा ने तब यूपीए सरकार का बाहर से समर्थन किया था जब अमेरिका से परमाणु समझौते के विरोध में समर्थन वापस ले लिया था. सपा, कांग्रेस के साथ गठबंधन कर यूपी में 2017 का चुनाव भी लड़ चुकी है. ममता बनर्जी की पार्टी भी यूपीए सरकार में शामिल रही है.

एनसीपी और शिवसेना, कांग्रेस के साथ महा विकास अघाड़ी में पहले से ही हैं. नीतीश कुमार की जेडीयू और आरजेडी के साथ कांग्रेस बिहार की गठबंधन सरकार में भागीदार है जिसे लेफ्ट का भी समर्थन है. लेफ्ट पार्टियों के साथ कांग्रेस का बंगाल और त्रिपुरा में गठबंधन है. झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ कांग्रेस झारखंड सरकार में शामिल है. नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, आरएलडी भी यूपीए में शामिल रहे हैं.

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