अखिलेश यादव की दोस्ती जयंत चौधरी के लिए जरूरी या सियासी मजबूरी? ‘INDIA’ ने कैसे बदल दिए बिगड़ते हालात
लखनऊ
RLD यानी राष्ट्रीय लोक दल के नेता जयंत चौधरी ने सोमवार को एक तस्वीर साझा की, जिसमें समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव उनके साथ नजर आ रहे हैं। वहीं, अखिलेश की तरफ से विपक्षी दलों की बैठक की एक तस्वीर साझा की गई थी, जिसमें वह जयंत के पास बैठे हुए हैं। ताजा घटनाक्रम से उत्तर प्रदेश की राजनीति में जारी सपा-रालोद गठबंधन की टूट पर फिलहाल विराम तो लगता नजर आ रहा है, लेकिन इसके कई सियासी मायने हो सकते हैं।
नया साथी तलाश रहे थे जयंत?
सियासी गलियारों में चर्चाएं थीं कि सपा की तरफ से दिखाए रवैये के चलते रालोद नए साथी की तलाश में है। हालांकि, दोनों ही दलों ने कभी भी खुलकर गठबंधन में दरार की बात नहीं की। दरअसल, ऐसा माना जाता है कि जयंत और अखिलेश के बीच दरार की कहानी बीते साल मई में शुरू हुई थी, जब रालोद प्रमुख राज्यसभा के लिए चुने गए। हाल ही में हुए शहरी निकाय चुनाव में पश्चिम यूपी में प्रचार के दौरान भी दोनों नेता साथ नजर नहीं आए।
साथ ही चुनाव में कई सीटों पर दोनों पार्टियों के उम्मीदवार एक-दूसरे के खिलाफ दम भर रहे थे। 9 जुलाई को ही रालोद की तरफ से पश्चिम यूपी की 12 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया गया। अब इस घोषणा को सपा के लिए संकेत के तौर पर माना गया कि रालोद सीट बंटवारे पर ज्यादा समझौता करना नहीं चाहती। दोनों नेताओं में तनाव के एक और संकेत तब मिले जब जयंत ने अखिलेश को उनके जन्मदिन पर बधाई नहीं दी। जबकि, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ऐसा करते नजर आए थे।
भाजपा और कांग्रेस दोनों के साथ जुड़ा जयंत का नाम
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, रालोद के कांग्रेस के साथ जाने की अटकलें भी लगाई जाने लगी थीं। खुद जयंत कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण समारोह में मई में बेंगलुरु पहुंचे थे। खास बात है कि उस दौरान अखिलेश ने कार्यक्रम से दूरी बना ली थी। बाद में खबरें आईं कि जयंत भारतीय जनता पार्टी नेताओं से भी मुलाकात कर रहे हैं, लेकिन खुद रालोद प्रमुख ने ही इनका खंडन कर दिया। जयंत बिहार की राजधानी पटना में हुई विपक्षी दलों की पहली बैठक में शामिल नहीं हुए थे।
क्यों नहीं बनी बात?
रिपोर्ट में रालोद के कुछ नेताओं के हवाले से बताया गया है कि भाजपा की तरफ से की गई मांगों के चलते पार्टी की बात आगे नहीं बढ़ सकी थी। इधर, सपा नेताओं के हवाले से कहा गया कि ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि 'जयंत की राजनीति भाजपा के साथ शायद नहीं चलती और उन्हें चिंता था कि भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए में शामिल होने से उनकी भूमिका घट जाती।'