September 26, 2024

भाजपा सांसद कठेरिया की छिनेगी सांसदी? भाजपा के लिए कितना मायने रखता है यह दलित चेहरा

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नई दिल्ली
भाजपा के बड़े दलित चेहरे के रूप में पहचान रखने वाले  सांसद रामशंकर कठेरिया पर भी अयोग्यता की तलवार लटक रही है। आगरो के एमपी/एमएलए कोर्ट से सजा मिलने के बाद उनकी सांसदी पर खतरा है। रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपुल्स ऐक्ट 1951की धारा 8 (3) के मुताबिक अगर किसी भी विधायक या सांसद को दो साल से ज्यादा की सजा सुनाई जाती है तो उसकी विधायी सदस्यता खत्म हो जाती है। इसी कानून के तहत राहुल गांधी को भी अयोग्य ठहराया गया था और सांसदी खत्म कर दी गई थी।

इटावा से भाजपा सांसद रामशंकर कठेरिया को 12 साल पहले आगरा में दंगा भड़काने के मामले में सजा सुनाई गई है। वहीं रविवार को वह इटावा रेलवे स्टेशन के रीडिवेलपमेंट कार्यक्रम में मौजूद थे। उन्होंने जनसभा को संबोधित भी किया। हालांकि यहां मौजूद कार्यकर्ताओं के मन में कठेरिया को लेकर यह संदेह जरूर था कि तीन बार के सांसद अब आगे चुनाव लड़ पाएंगे या नहीं। सूत्रों का कहना है कि कठेरिया ने बाद में अपने खास कार्यकर्ताओं से अलग से मुलाकात की और कहा कि वह इस फैसले को अदालत में चुनौती देंगे।

मायावती सरकार में हुआ था केस
16 नवंबर 2011 को कठेरिया और उनके समर्थकों ने कथित तौर पर टॉरेंट पावर लिमिटेड आगरे के कर्मचारियों की पिटाई करवाई थी। उन्हें शिकायत मिली थी कि लोगों को गलत बिल थमाया जा रहा है। कठेरिया ने कहा कि मायावती सरकार के दौरान उनके खिलाफ केस किया गया था। यह राजनीतिक बदले की भावना का मामला था क्योंकि वह दलित नेता के रूप में उभर रहे थे और उनके दबदबे वाले आगरा में झंडा फहराया था।

आरएसएस के प्रचारक रहे हैं कठेरिया
बता दें कि रामशंकर कठेरिया लंबे समय तक  संघ से जुड़े रहे। 1984 में वह संघ से जुड़े थे और चार साल के अंदर ही आरएसएस के नगर प्रचारक बन गए। इसके बाद उन्होंने बुलंदशहर और आगरा में भी आरएसएस के लिए काम किया। भाजपा में आने के बाद वह 2006 में आगरा जिले के महासचिव बने। 2009 और 2014 में आगरा से सांसद चुने गए। इसके बाद 2019 में इटावा सीट पर जीत हासिल की।

मोदी सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं कठेरिया
कठेरिया को 2014 में मोदी कैबिनेट में मानव संसाधन विकास मंत्रालय में जगह दी गई थी। उत्तर प्रदेश में उनकी पहचान बड़े दलित चेहरे की है और वह बड़े वोट बैंक पर अपना दबदबा रखते हैं। 2015 में उन्हें छत्तीसगढ़ और पंजाब में भी राष्ट्रीय महासचिव इन चार्ज नियुक्त किया गया था। मार्च 2016 में एक श्रद्धांजलि सभा में शामिल होने के बाद भी वह विवाद में आए थे। संघ परिवार ने वीएचपी कार्यकर्ता अरुण महावर के लिए श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया था जिसमें उन्होंने मुस्लिमों की तुलना दानवों से कर दी थी और कहा था कि अब आखिरी लड़ाई का समय आ गया है।

इसके बाद विपक्ष कठेरिया के इस्तीफे की मांग करने लगा। उस दौरान अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे। मायावती ने कहा कि अगर वह सत्ता में होतीं तो कठेरिया को जेल भिजवा देती। इसी के बाद 2016 में कठेरिया मोदी मंत्रिपरिषद से बाहर हो गए। उन्हें नेशनल कमिशन फॉर शेड्यूल कास्ट का चेयरपर्सन नियुक्त किया गया। कठेरिया आगरा विश्वविद्यालय में प्रोफेसर भी रह चुके हैं। उन्होंने दलित चेतना की आवश्यकता, सामाजिक एकता की आवश्यकता, दलित साहित्य और नैईं चुनौतियां जैसी किताबें लिखी हैं।

इटावा में कठेरिया की लोकप्रियता काफी है। एक भजापा नेता ने कहा कि वह इटावा में आम जनमानस से जुड़ते हैं। जन चौपाल लगाते हैं और अधिकारियों को जनता की शिकायतें सुनने के लिए बुलाते हैं।

 

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