जब अंग्रेजों को बुलानी पड़ी सेना, जान देने पर आमादा थे क्रान्तिकारी ; जानें सीमांचल का स्वर्णिम इतिहास
पटना
स्वतंत्रा दिवस 2023 (Independence Day 2023) की तैयारियां शुरू हो गई हैं। ऐसे में हम उन वीर सपूतों को याद कर रहे हैं जिन्होंने भारत माता की आन बान शान के लिए अपने जान की कुर्बानी दे दी। आजादी की लड़ाई में बिहार के सीमांचल के इलाके के रणबांकुरों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। अंग्रेजों से लोहा लेने में पूर्णिया की धरती के वीर सपूतों ने बड़ी भूमिका निभाई थी। अगस्त क्रांति के दौरान पूर्णिया जिले में क्रांतिकारियों का आंदोलन मुखर होता देखकर अंग्रेजों को सेना बुलानी पड़ी थी। गिरफ्तारी की परवाह किए बगैर पूर्णिया जिला का जत्था भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की मशाल लिये डॉ. कलानंद ठाकुर के नेतृत्व में बनमनखी सेवादल कैंप पहुंचा था। इस क्षेत्र में तोड़-फोड़ की सर्वााधिक घटनाएं हुईं थीं। जत्थे में शामिल क्रांतिकारियों ने अनूपलाल मेहता के नेतृत्व में रेल लाइन उखाड़ दी थी। सरसी का रेल पुल जला दिया था।
स्थिति पर नियंत्रण पाने अंग्रेजों को बुलानी पड़ी थी सेना
अंग्रेजी हुकूमत के दमन के बावजूद क्रांतिकारियों के हौसले पस्त नहीं हुए थे। पूर्णिया, अररिया, फारबिसगंज, ठाकुरगंज, कसबा, धमदाहा, रूपौली में क्रांतिकारियों ने आवागमन एवं संचार के साधनों का नष्ट कर प्रशासन को ठप कर दिया था। स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए अंग्रेजों को सेना बुलानी पड़ी थी। 14 अगस्त 1942 को कटिहार, रौतारा एवं सोनौली स्टेशन पर आगजनी की घटना की थी। 15 अगस्त को पूर्णिया में जीवत्स शर्मा हिमांशु के नेतृत्व में शहीदी जुलूस निकला गया। अररिया में बाबू बसंत सिंह ने आंदोलन की कमान संभाली थी। देखते ही देखते कुर्साकांटा, डकरा एवं पटेगना आदि जगहों पर आंदोलन फैल गया। पूर्वी अररिया में यही काम नगेंद्र झा ने किया था। फारबिसगंज और गढ़बनैली के छात्रों ने अररिया कचहरी पर झंडा लहराया। दर्जनों कलालियों को जला दिया गया था।
यहां सौ फीसदी सफल हुआ था 'करो या मरो' का नारा
क्रांतिकारियों ने कई थाने क्षतिग्रस्त कर दिये थे। इसके बाद चौकीदारों से इस्तीफे लिये गए थे। फारबिसगंज में छेदीलाल दास की प्रेरणा से बाबू रामदेनी तिवारी ने नेतृत्व प्रदान किया था। ढोलबज्जा में तारें काटी गयी थीं। रेल लाइनें उखाड़ी गयी और स्टेशन जलाया गया था। सूर्यानंद साह ने तमाम स्कूलों को बंद करवाकर छात्रों को क्रांति पथ पर चलने के लिए संगठित किया था। 18 अगस्त को सरसी मिडिल स्कूल में बैद्यनाथ चौधरी की अध्यक्षता में एक ऐतिहासिक सभा हुई थी, जिसमें अंहिसात्मक आंदोलन तेज करने समेत अनेक प्रस्ताव पारित हुए। इसके अनुसार 27 अगस्त तक पूर्णिया जिला के तमाम क्षेत्रों में डाकघर, रेलवे लाइन, स्टेशन, थाना पर हमला करते हुए तिरंगा लहराया गया। क्रांतिकारियों ने करो या मरो के नारे को शत प्रतिशत सफल बना दिया।