पर्यावरण मंत्रालय ने उच्चतम न्यायालय की ओर से गठित केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति की जगह नई समिति गठित की
नई दिल्ली
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने वन्य तथा पर्यावरणीय मुद्दों के मामलों में उच्चतम न्यायालय की मदद करने के लिए केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) गठित की है।
यह समिति इसी नाम की एक तदर्थ विशेषज्ञ समिति का स्थान लेगी।
सीईसी की स्थापना 2002 में शीर्ष अदालत ने की थी और यह पर्यावरण संरक्षण और अनुपालन से संबंधित मुद्दों पर नजर रखने वाली संस्था के तौर पर काम करती थी।
पिछले कुछ वर्षों में समिति ने भारत की पर्यावरणीय नीति और शासन के परिदृश्य को आकार देने में अहम भूमिका निभायी है।
समिति के पुनर्गठन का मकसद इसे अधिक प्रभावी बनाना है हालांकि सरकार के पूर्ण नियंत्रण के तहत इसकी स्वतंत्रता के बारे में प्रश्न अब भी बना हुआ है।
यह नई समिति वन संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 पारित करने के बाद बनायी गयी है। आलोचकों की दलील है कि यह विधेयक भारतीय वन कानून में मौजूदा सुरक्षा उपायों को कमजोर करता है और संभावित रूप से पारिस्थितिकी के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण परियोजनाओं की सुविधाजनक बनाता है।
पांच सितंबर की एक अधिसूचना के अनुसार, केंद्र सरकार इस नई समिति में सदस्यों का नामांकन और उनकी नियुक्त करेगी। इसमें एक अध्यक्ष, एक सदस्य सचिव और तीन विशेषज्ञ सदस्य होंगे और सभी का चयन केंद्र सरकार करेगी।
इसमें अध्यक्ष के अधिकतम तीन साल के कार्यकाल का प्रावधान है। अध्यक्ष को पर्यावरण, वानिकी, या वन्यजीव क्षेत्रों में न्यूनतम 25 वर्षों का अनुभव या सरकार में पर्याप्त प्रशासनिक विशेषज्ञता होनी चाहिए।
सदस्य सचिव को सरकार में उप महानिरीक्षक या निदेशक से कम रैंक नहीं होना चाहिए और पर्यावरण, वानिकी या वन्यजीव मामलों में कम से कम 12 साल का अनुभव होना चाहिए। तीन विशेषज्ञ सदस्य, पर्यावरण, वन और वन्यजीव क्षेत्रों से होने चाहिए और उनके पास न्यूनतम 20 साल की विशेषज्ञता होनी चाहिए।
आलोचकों ने चिंता व्यक्त की है कि यह परिवर्तन सरकार के भीतर अत्यधिक शक्ति को केंद्रित करता है। इससे पहले, सीईसी में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा नामित सदस्य और एमिकस क्यूरी के परामर्श से चुने गए दो गैर सरकारी संगठन शामिल थे, जो अधिक संतुलित दृष्टिकोण पेश करते थे।
उनके मुताबिक वर्तमान समिति से गैर-सरकारी सदस्यों को पूरी तरह से हटा दिया गया है।