भाजपा के अंदर भी बदलाव नहीं समझ पा रहे लोग! संसदीय बोर्ड पर है पसोपेश; कई फैसलों पर हैरानी
नई दिल्ली
भाजपा ने अपने संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति में बड़े बदलाव किए हैं। संसदीय बोर्ड से नितिन गडकरी और मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान को बाहर किए जाने की काफी चर्चा हो रही है। इसे लेकर पार्टी में भी कार्यकर्ता और नेता जिज्ञासा में हैं कि आखिर यह फैसला क्यों लिया गया। इन नेताओं को बाहर किए जाने के अलावा भाजपा ने इस बार के संसदीय बोर्ड में कुछ नियम भी तय किए हैं। भाजपा ने किसी भी मुख्यमंत्री को संसदीय बोर्ड में शामिल न करने का फैसला लिया है। इसके अलावा पार्टी के सिर्फ एक ही महासचिव को इसमें जगह दी गई है। इससे पहले आमतौर पर दो महासचिवों को संसदीय बोर्ड में जगह दी जाती रही है।
भाजपा के संविधान के मुताबिक संसदीय बोर्ड में पार्टी अध्यक्ष और 8 अन्य सदस्य संसदीय बोर्ड का हिस्सा रहे हैं। इनमें से एक संसद में पार्टी का नेता भी रहा है। संविधान के अनुसार पार्टी का अध्यक्ष ही संसदीय बोर्ड का चेयरमैन होगा और एक महासचिव को बोर्ड में मानद सेक्रेटरी के तौर पर रखे जाने की परंपरा है। पार्टी के एक नेता ने कहा, 'बीते कई सालों से पार्टी में दो महासचिवों को बोर्ड में रखने की परंपरा रही है। इसमें से एक संगठन महासचिव भी रहा है। इनमें से ही किसी एक को सचिव बनाया जाता रहा है। इस बार बीएल संतोष ही एकमात्र पार्टी महासचिव हैं, जिन्हें बोर्ड में एंट्री दी गई है।'
मुख्यमंत्रियों और नेता सदन को शामिल करने रही है परंपरा
पार्टी लीडर ने कहा कि यह भी एक परंपरा ही रही है कि सभी पूर्व अध्यक्षों, कुछ मौजूदा मुख्यमंत्रियों और राज्यसभा में भी पार्टी के नेता को इसमें शामिल किया जाए। इससे पहले 2014 में जब भाजपा के संसदीय बोर्ड का पुनर्गठन किया गया था तो पूर्व अध्यक्षों अटल बिहारी वाजपेयी, एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी को हटा दिया गया था। लेकिन तब भी एक मुख्यमंत्री और राज्यसभा में नेता को इसमें रखा गया था। बता दें कि बुधवार को बने संसदीय बोर्ड में 6 नए सदस्यों को एंट्री दी गई है। इनमें बीएस येदियुरप्पा, इकबाल सिंह लाल पुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया शामिल हैं।
इन सदस्यों को मिली है संसदीय बोर्ड में एंट्री
इसके अलावा नरेंद्र मोदी, होम मिनिस्टर अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी इसके सदस्य हैं। भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा इसके पदेन अध्यक्ष हैं और बीएल संतोष सचिव हैं। असम के पूर्व सीएम सर्बानंद सोनोवाल और ओबीसी मोर्चे के प्रमुख के. लक्ष्मण को भी एंट्री दी गई है। वह तेलंगाना से आते हैं और माना जा रहा है कि अगले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया है।