परमात्मा हमें समर्थ बनाते हैं, सुखी हम अपने सामर्थ्य से बनते हैं : प्रवीण ऋषि
रायपुर
लालगंगा पटवा भवन में पर्युषण महापर्व के दौरान अंतगड़ श्रुतदेव आराधना में उपाध्याय प्रवर ने धर्मसभा में एक प्रश्न किया। उन्होंने पूछा कि मनुष्य का जीवन बदलना हो तो उसका व्यवहार बदलना चाहिए, या उसकी भाषा अथवा उसकी आस्था? इनमे से क्या बदलने से मनुष्य का जीवन बदलता है? इसका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि अगर किसी का जीवन बदलना है तो उसकी आस्था को बदलो। जीवन कैसे बदलेगा, यह उस व्यक्ति की श्रद्धा पर निर्भर करता है। जिसपर आपकी श्रद्धा होती है, जीवन वैसा ही को जाता है। श्रद्धा में बदलाव जीवन में बदलाव है। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।
रविवार को धर्मसभा को संबोधित करते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि जैन धर्म में जीवन पर जोर दिया गया है, श्रद्धेय से जुड?े पर जोर नहीं दिया गया है। अंतगड़ का आज का सत्र श्रद्धा से जुड़ा हुआ था। उन्होंने कहा कि जिनकी अटल श्रद्धा तीर्थंकर पर रहती है उन्हें किसी और की जरुरत नहीं है। जिनके विषय में आप सुनते हैं, जिन्हे देवी-देवता भी पूजते हैं, उनकी आराधना करते हैं, आपको किसकी पूजा करनी चाहिए? नवकार कलश का कार्यक्रम क्यों आयोजित किया जा रहा है? क्योंकि नवकार मन्त्र में जो शक्ति है, वो और किसी में नहीं है। नवकार मंत्र परमात्मा की वाणी है, और उनकी वाणी सभी घरों में रहनी चाहिए। जीवन में समस्याएं हैं, उनके समाधान के लिए नवकार मंत्र की साधना दी जा रही है। उन्होंने कहा कि एक श्रद्धेय तुम्हारे जीवन के वैभव को बनाये रखता है।
उन्होंने पूछा कि कितने लोग उत्तराध्ययन सूत्र की आराधना करते हैं? हर जैनी की के कंठ में परमात्मा के वचन गूंजने चाहिए। क्यों नहीं जोड़ते अपने आप को परमात्मा के साथ? परमात्मा की आत्मा मोक्ष है, पुण्य यहीं है। क्यों नहीं जोड़ते अपनी संतति को उनके साथ। कोई व्यक्ति जब अपना आयुष पूर्ण करता है, तो वह अपने पीछे अपनी संपत्ति, धन-दौलत सब छोड़ जाता है, अपने पुण्य साथ ले जाता है। लेकिन परमात्मा ने अपनी संपत्ति अपना पुण्य यहीं छोड़ रखा है, आप उसका लाभ उठाओ। नवकार मंत्र में अनंत शक्ति है।