बिहार के बाद एक और राज्य में OBC सब पर भारी, जाति सर्वे में आया इतना आंकड़ा; 10 साल में बड़ा इजाफा
पटना
बिहार के बाद अब ओडिशा में जातिगत सर्वे के आंकड़े सामने आए हैं। इस सर्वे के मुताबिक राज्य में ओबीसी वर्ग की आबादी 46 फीसदी है, जो राज्य का सबसे बड़ा सामाजिक समूह है। यही नहीं ओबीसी वर्ग की आबादी में बड़ा इजाफा भी दर्ज किया गया है क्योंकि 2011 की जनगणना में इनकी आबादी 43 फीसदी ही थी। ओडिशा राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक सूबे में 208 पिछड़ी जातियां हैं। इन्हें आजीविका, इन्फ्रास्ट्रक्चर, घर जैसी सुविधााओं के आधार पर पिछड़े वर्ग में रखा गया है।
आयोग की सदस्य मिताली चिनारा ने कहा कि यह सर्वे जुलाई में हुआ था। इसमें पाया गया है कि राज्य की 46 फीसदी आबादी यानी 1.95 करोड़ लोग पिछड़े वर्ग में आते हैं। उन्होंने कहा, 'हमने यह रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी है। अब राज्य सरकार इस रिपोर्ट के प्रकाशन पर विचार करेगी।' उन्होंने कहा कि 2021 की जनगणना अभी नहीं हुई है। हमारा अनुमान है कि राज्य की आबादी 4.8 करोड़ है और उसके अनुपात में ही ओबीसी की आबादी 1.95 करोड़ है।' राज्य के एससी, एसटी और ओबीसी विभाग ने इस मामले पर अब तक कोई टिप्पणी नहीं की है।
ओडिशा देश का 5वां राज्य बन गया है, जिसने ओबीसी की आबादी का पता लगाने के लिए कास्ट सर्वे कराया है। इससे पहले बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और हरियाणा में ऐसा सर्वे हो चुका है। दो दिन पहले ही बिहार में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी हुए हैं, जिसके मुताबिक सूबे में अत्यंत पिछड़ा और पिछड़ा वर्ग की आबादी कुल मिलाकर 63 फीसदी है। यह वर्ग राज्य की दो तिहाई आबादी के करीब है। दूसरे नंबर पर अनुसूचित जनजाति है, जिसकी संख्या 19 फीसदी है। मुसलमान 17 पर्सेंट है और सवर्णों की आबादी 15 फीसदी पाई गई है।
कभी नहीं की जाति की राजनीति, फिर अब पटनायक को क्या हुआ
ओडिशा में भले ही ओबीसी समुदाय की आबादी लगभग आधी है, लेकिन यहां बिहार, यूपी, राजस्थान और कर्नाटक की तरह कभी ओबीसी फैक्टर की राजनीति नहीं हुई। इस राज्य में ओबीसी की बजाय 24 फीसदी आदिवासी और 17 फीसदी दलित के इर्द-गिर्द राजनीति घूमती रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा के तेजी से उभार के डर से नवीन पटनायक सरकार ने ओबीसी सर्वे का कार्ड खेला है। इसके जरिए वह सोशल इंजीनियरिंग का प्रयास कर सकते हैं।