मध्य प्रदेश का रोचक है इतिहास : पहली बार साल 1951 में हुआ चुनाव, लेकिन 1956 में हुआ राज्य का गठन
इंदौर
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की तैयारियां लगभग पूरी हो गई है। गौरतलब है कि 17 नवंबर को राज्य का 15वां विधानसभा चुनाव होगा। इस राज्य का इतिहास काफी मजेदार और रोमांचक है। मालूम हो कि इस राज्य का गठन तो 1956 में हुआ था, लेकिन इसका पहला विधानसभा चुनाव 1951 में हुआ था। शुरुआत में मध्य प्रदेश में ग्वालियर, इंदौर, मालवा, रीवा जैसी रियासतें थीं। इसके बाद ही भोपाल विधानसभा बनी और फिर मध्य भारत विधानसभा अस्तित्व में आई।
मध्यप्रदेश विधानसभा का इतिहास
15 अगस्त, 1947 को जब देश को आजादी मिली थी, तब देश में कई छोटी-छोटी रियासतें थीं, जिन्हें आजादी के बाद स्वतंत्र भारत में शामिल कर लिया गया था। इसके बाद 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू हुआ, तो 1952 में पहले आम चुनाव संपन्न हुए। इसी कारण, संसद एवं विधान मंडल अस्तित्व में आए। इसके बाद, 1956 में राज्यों के पुनर्गठन की कवायद के परिणामस्वरूप 1 नवंबर, 1956 को देश में एक नया राज्य, यानी मध्य प्रदेश अस्तित्व में आया।
चार विधानसभाओं को मिलाकर बनी एक विधानसभा
मध्य प्रदेश के गठन के समय मध्य प्रदेश, मध्य भारत, विन्ध्य प्रदेश एवं भोपाल इसके घटक राज्य थे। शुरुआती दौर में तो सभी की अपनी विधानसभाएं था, लेकिन बाद में फैसला किया गया कि सभी को मिलाकर एक ही विधानसभा बनाई जाएगी। अंत में, 1 नवंबर, 1956 को पहली मध्यप्रदेश विधान सभा अस्तित्व में आई। इसका पहला और अंतिम अधिवेशन 17 दिसंबर, 1956 से 17 जनवरी, 1957 के बीच पूरा हुआ।
विन्ध्य प्रदेश विधान सभा
आजादी के बाद 4 अप्रैल, 1948 को विन्ध्य प्रदेश की स्थापना हुई थी। उस समय इसे एक 'B' श्रेणी के राज्य का दर्जा दिया गया था और मार्तण्ड सिंह को इसका राज प्रमुख नियुक्त किया गया था। इसके बाद, साल 1950 में इसे राज्य का दर्जा दिया गया और 'B' से 'C' श्रेणी में तब्दील कर दिया गया। फिर साल 1952 में आम चुनाव हुए और विधानसभा के लिए 60 सदस्यों का चयन किया गया, जिसमें शिवानंद को इसका अध्यक्ष बनाया गया।
1 मार्च, 1952 से इस राज्य को उपराज्यपाल का प्रदेश बना दिया गया और पंडित शंभूनाथ शुक्ल को मुख्यमंत्री बनाया गया। इस विन्ध्य प्रदेश विधानसभा की पहली बैठक 21 अप्रैल, 1952 को हुई थी और इस विधानसभा का कार्यकाल तकरीबन साढ़े चार साल तक चला था। उस दौरान इसकी कुल 170 बैठकें हुई। बता दें कि इस विधानसभा के उपाध्यक्ष श्याम सुंदर 'श्याम' थे।
भोपाल विधानसभा का इतिहास
जब देश में पहले आम चुनाव हुए तब उसके पहले तक भोपाल राज्य केंद्र शासन के अधीन था। इसपर मुख्य आयुक्त द्वारा शासन चलाया जाता था। इस राज्य को 'C' श्रेणी के राज्य का दर्जा दिया गया था। उस दौरान विधानसभा सदस्यों की संख्या 30 थी। इन सदस्यों में 6 ओबीसी एवं 1 सदस्य एससी वर्ग से था, वहीं अन्य शेष 23 सदस्य सामान्य वर्ग के क्षेत्रों से चुने गए थे।
देश के पहले आम चुनाव के बाद विधिवत विधानसभा का गठन हुआ। भोपाल विधानसभा का कार्यकाल मार्च, 1952 से अक्टूबर, 1956 तक करीब साढ़े चार साल तक चला। इस राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. शंकरदयाल शर्मा थे, जो कि बाद में देश के राष्ट्रपति भी बने थे। इस विधानसभा के अध्यक्ष सुल्तान मोहम्मद खान एवं उपाध्यक्ष लक्ष्मीनारायण अग्रवाल थे।
सेंट्रल प्रॉविन्सेस एंड बरार विधानसभा
पूर्व में वर्तमान महाकोशल, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के बरार क्षेत्र को मिलाकर 'सेंट्रल प्रॉविन्सेस एंड बरार' नाम का राज्य वजूद में था। जब राज्य का पुनर्गठन हुआ, तो महाकोशल एवं छत्तीसगढ़ का क्षेत्र वर्तमान के मध्य प्रदेश का भाग बना। इसके अनुसार ही उस क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्रों को भी वर्तमान मध्य प्रदेश के विधानसभा क्षेत्रों में शामिल किया गया।
मध्य भारत विधानसभा (ग्वालियर विधानसभा)
मध्य भारत इकाई की स्थापना मई, 1948 में की गई थी। इसके अंतर्गत ग्वालियर, इंदौर और मालवा रियासतों को शामिल किया गया था। उस दौरान ग्वालियर सबसे बड़ा राज्य था। जिस कारण तत्कालीन शासक जीवाजी राव सिंधिया को मध्य भारत का आजीवन राज प्रमुख नियुक्त कर दिया गया था।
ग्वालियर विधानसभा की खास बातें
- लीलाधर जोशी को ग्वालियर का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया था।
- 4 जून, 1948 को कैबिनेट ने शपथ ग्रहण किया और 75 सदस्यों की विधानसभा का गठन हुआ।
- इस विधानसभा में 40 प्रतिनिधि ग्वालियर राज्य के थे।
- 20 प्रतिनिधि इंदौर के और शेष 15 का चयन अन्य छोटी रियासतों से किया गया था।
- यह विधानसभा 31 अक्टूबर, 1956 तक वजूद में रही।
- 1952 में आम चुनाव हुए, तब मध्य भारत विधानसभा के लिए 99 स्थान रखे गए थे।
- इसके चलते मध्य भारत को 59 एक सदस्यीय क्षेत्र और 20 द्वि सदस्यीय क्षेत्र में विभाजित किया गया था।
- कुल 99 स्थानों में से 17 अनुसूचित जाति और 12 स्थान अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित रखे गए।
- मध्य भारत की नई विधानसभा का पहला अधिवेशन 17 मार्च, 1952 को ग्वालियर में पूरा हुआ था।
- इस विधानसभा का कार्यकाल लगभग साढ़े-चार साल जारी रहा।
- इसके अध्यक्ष एएस पटवर्धन और उपाध्यक्ष वीवी सरवटे थे।