September 25, 2024

मेरे ग्रीष्मावकाश की कहानी

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स्मृति चौधरी
विज्ञान शिक्षिका
सहारनपुर, उत्तर प्रदेश

यह कहानी है उत्तर प्रदेश के एक जिले सहारनपुर के छोटे से गांव सबदलपुर में रहने वाली छोटी और प्यारी सी पलक की।
हां, मैं ही पलक हूं। यह मेरी कहानी है, मेरी ग्रीष्मकालीन अवकाश की कहानी!
कल ही की बात लगती है जब कक्षा छः में आकर हमारी विज्ञान शिक्षिका ने बताया कि हमारा ग्रीष्मावकाश शुरू हो गया है। गर्मी की छुट्टियों में हमें घर में क्या-क्या करना है? क्या-क्या पढ़ना है? केवल इस सब के बारे में ही हम कक्षा में शिक्षिका महोदया से बातचीत करते रहे। ग्रीष्मावकाश की खुशी थी तो अपने अध्यापकों से बिछड़ने का एहसास भी था लेकिन खुशी कुछ ज्यादा थी क्योंकि अब पूरा दिन, मेरी दिनचर्या मेरे अनुसार होगी, अध्यापकों से मिलना तो जून में फिर से हो ही जाएगा। सहपाठियों के साथ हंसते-खेलते मैं घर पहुंचीं, रोज की तरह बस्ता मां के हाथ में थमाकर संगी-साथियों के साथ मैं निकल गयी आम के बागों में। खूब मस्ती, खूब धमाचौकड़ी के बाद कब शाम हो गई पता भी नहीं चला?
अगले दिन सुबह होने पर मम्मी ने जगाया ही नहीं, स्कूल जाना जो नहीं था। देर तक सोने का आज आनंद ही कुछ ओर था। दैनिक गतिविधि से निवृत्त होकर कुछ खालीपन महसूस हुआ। शिक्षिका जी की कल कही बातें याद आ गई और बस्ता उठाकर मैंने अपना होमवर्क करना शुरू कर दिया।
बीज कैसे उगते हैं? इस बात की पूरी जानकारी मुझे अपनी कॉपी में दर्ज करनी थी इसलिए मां को साथ लेकर मैं निकल पड़ी अपने घेर की ओर।
‘घेर’ घेर तो जानते होंगे ना आप?
हां वही! जहां हमारे दुधारू पालतू जानवर रखे जाते हैं। उन पर नजर पड़ी तो मैंने सोचा कैसे एक ही खूटे से बंध कर कोई पूरा जीवन कैसे व्यतीत कर सकता है?
खैर, मुझे क्या?
मेरी तो छुट्टियां शुरु हो गई है, थोड़ा काम करना है, थोड़ा आराम ऐसा सोच ही रही थी कि मां ने आवाज लगाई ‘पलक’ ‘पलक’ लाडो रानी! कहां खो गई? बीज नहीं लगाने हैं क्या? अपने पिता जी से बीज और खुरपी लेकर आओ।
हां मां, अभी लायी!
मैं भागकर पिताजी के पास पहुंची और उनसे लौकी के कुछ बीज और खुरपी लेकर तुरंत मां के पास वापस आयी। मां गड्ढा बनाते जा रही थी साथ ही मुझे लौकी के रखरखाव के बारे में बताती जा रही थी। इस गड्ढे में 5 से 6 इंच की दूरी पर केवल दो ही बीज पनप सकते हैं लाडो रानी! इसलिए हम इसमें केवल दो ही बीज उगाएंगे। ठीक वैसे ही जैसे प्रत्येक बच्चे को बड़ा होने के लिए उचित मात्रा में पोषक खाना, साफ पानी चाहिए। रहने, व्यायाम करने और खेलने-कूदने के लिए साफ-सुथरी और उचित जगह चाहिए उसी प्रकार पौधों को भी उचित धूप, पानी और खाद की आवश्यकता होती है।
गड्ढे की मिट्टी में गोबर की खाद मिलाकर हमने उस गड्ढे को पाट दिया और अपने-अपने नाम का एक-एक बीज उसमें रोप दिया। मां बताने लगी कि अब इसमें हमें थोड़ा सा पानी का छिड़काव करना है ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे।
अगले दिन सुबह जैसे ही आंख खुली मैं भागकर घेर में गई। गड्ढा ज्यों का त्यों था जैसा हमने कल छोड़ा था। लौकी का पौधा क्यों नहीं निकला? मैं आश्चर्यचकित थी!
मां, हमसे लगाते वक्त कुछ गलती तो नहीं हुई ना? पौधा तो निकला ही नहीं, मैंने हड़बडा़ते हुए घर जाकर मां से पूछा। मां हंसते हुए कहने लगी, लाडो रानी! बच्चे एक दिन में थोड़े ही बड़े हो जाते हैं? कुछ समय तो लगेगा उन्हें बड़ा होने में।
मां, कितने दिन में वह बड़े हो जाएगें? कब मैं उन्हें उगता हुआ देख पाऊंगी? मेरी विज्ञान अध्यापिका ने बताया था कि शुरुआत में तो छोटी पत्तियां निकलेंगीं। उसका चित्र भी तो बनाना है ना? मां बताओ ना, कितना समय लगेगा?
मां की हंसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। बेटा, जिंदगी में इतनी जल्दबाजी अच्छी नहीं। थोड़ा धैर्य रखो। सही देखभाल करने पर सात से दस दिन के अंदर तुम्हारे लौकी के बीज अंकुरित हो जाएंगे। फिर चाहे उनका फोटो खींचना या कॉपी में चित्र बनाना, जैसा मर्जी वैसा करना लेकिन पहले अभी जाकर उसमें थोड़ा सा पानी डाल आओ, ध्यान रखना, पानी उतना ही डालना जितना मिट्टी सोख़ सके। उन पर सूरज की धूप भी पड़नी जरूरी है, इस बात का भी ध्यान रखना।
ठीक है मां! ध्यान रखूंगी। एक लंबी सांस लेकर मैंने कहा।
एक पौधे को पालने में इतना ध्यान रखना पड़ता है? हमारे माता-पिता भी हमें पालने में कितना कुछ सोचते होंगे? कितना ध्यान रखते होंगे? मैं फिर से खो गई, अपने प्रश्नों में, अपने सपनों में।
खैर! मुझे क्या।
आठ-दस दिन इसी प्रकार खेलते-कूदते बीत गए। दो नन्हे छोटे हरे पौधे आज मेरे सामने थे। मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। लेकिन इसकी पत्तियों की आकृति ऐसी नहीं है जैसी लौकी की बेल का चित्र मेरी किताब में बना है?
मैं भागती हुई फिर से मां के पास पहुंची। मां-मां लौकी के बीज से कोई ओर पौधा निकल सकता है क्या?
क्यों, क्या हुआ लाडो रानी? मां बोली। मां, पौधे तो निकल गए लेकिन वह लौकी जैसे नहीं लग रहे हैं? मेरी बातों पर मां हंसती बहुत है। कई बार तो उनकी इस आदत पर बहुत गुस्सा आता है मुझे। अब हंसना बंद करो मां! मुझे बताओ, क्या मेरा डर सही है?
अरे नहीं! नहीं, वह लौकी के ही पौधे हैं। शुरुआत की पत्तियां थोड़ा गोलाई लिए होती हैं, पर जैसे-जैसे पौधा मिट्टी और हवा से अपना भोजन-पानी लेगा, धीरे धीरे बड़ा होने लगेगा और ठीक उसी आकृति की पत्तियां आने लगेगी जैसी तुम्हारी किताब में छपी है। एक बड़े पौधे का चित्र है ना वह? और सुन! पौधों की बराबर में एक लकड़ी का सहारा लगा आना ताकि तुम्हारी बेल जब ऊपर की ओर बढ़े तो उन्हें सहारा मिल जाए।
मां की बातों से मुझे याद आया की शिक्षिका महोदया ने पौधों के प्रकार और उनके खाना बनाने की प्रक्रिया ‘प्रकाश संश्लेषण’ के बारे में पूरी कक्षा को विस्तार से बताया था। जिस प्रकार से संतुलित भोजन करने से हमारे शरीर की वृद्धि जल्दी होती है ठीक उसी प्रकार मिट्टी से उचित खनिज लवण सोखकर मेरे पौधे भी जल्दी ही बड़े हो जाएंगे। मैं बहुत उत्साहित भी। मुझे अब देखभाल करनी आ गई थी अपने पौधों की और शायद पता चल गया था मां-बाप होने की जिम्मेदारियों का भी। शिक्षिका द्वारा दिया गया कार्य लगभग पूरा हो रहा था, यह सोच कर मुझे बहुत खुशी हो रही थी। अब तो दिन में एक बार पौधों के पास जाना, उनका हालचाल उनसे जानना, कुछ अपनी बातें उन्हें सुनाना, मेरा प्रतिदिन का एक जरूरी कार्य हो गया था। ऐसा लग रहा था जैसे यह पौधे मेरे सच्चे दोस्त बन गयें हैं जो मेरे दिल की पूरी सुनते हैं, कभी टोका-टाकी नहीं करते, कभी लड़ते-झगड़ते नहीं, अन्य दोस्तों की तरह मुझसे नाराज भी नहीं होते। कब पच्चीस दिन बीत गए, छुट्टियां खत्म हो गई पता भी नहीं चला। आज गुड्डे गुड़िया खेलने के लिए नंदिनी के घर जाना हुआ तो उसकी माताजी ने कहा कि कब तक खेलती रहोगी? कल विद्यालय जाना है, उसकी भी तैयारी कर लो।
हम दोनों एक दूसरे की शक्ल देखने लगे। अरे! अभी तो छुट्टियां शुरू हुई थी। ना जी भर खेले, ना जी भर घूमे और छुट्टियां खत्म!
छुट्टियां खत्म होने का एहसास तो था लेकिन अपने अध्यापकों से फिर मिलने की खुशी थी। साथ ही खुशी थी अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह से निभाने की। कल विद्यालय जाकर अपनी अध्यापिका को अपने पौधों के बारे में सब कुछ बताना है मतलब-सब कुछ। मेरी आंखों के सामने एक-एक शब्द तैर रहा था। मेरी आंखों में ढेर सारी बातों की चमक थी, जिसमें थी मैं, मेरी अध्यापिका और मेरे पौधे। मेरे लौकी के पौधे ।

पलक
विद्यार्थी कक्षा 6
उच्च माध्यमिक विद्यालय सबदलपुर
साहरनपुर, उत्तर प्रदेश

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