November 27, 2024

बेनीवाल बोले- चुनाव में भय पैदा करने के उद्देश्य से अपराध करने वालों पर सख्त कार्रवाई हो

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नागौर.

परबतसर विधानसभा क्षेत्र के गांव आसनपुरा में रहने वाले दलित दंपति को आपराधिक प्रवृति के लोगों और भाजपा से जुड़े कार्यकर्ताओं ने कुचामन सिटी में मारपीट कर दी। ये घटना अत्यंत गंभीर है। यह बात रालोपा सुप्रीमो और नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने एक्स (ट्वीट) कर कही। बेनीवाल ने मामले को लेकर डीडवाना-कुचामन के जिला पुलिस अधीक्षक और वृताधिकारी कुचामन सिटी से फोन पर वार्ता कर इस मामले में संलिप्त आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।

बेनीवाल ने कहा की 25 नवंबर को राजस्थान में चुनाव है। इस तरह की घटनाओं से अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों में भय पैदा होता है, ऐसे में प्रशासन की यह जवाबदारी है कि वो ऐसे अपराध होने पर बिना किसी देरी के अपराधियों के खिलाफ तत्काल कानूनी कार्रवाई करे, ताकि जनता भय मुक्त होकर अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग कर सके। बेनीवाल ने चेतावनी देते हुए कहा कि कुचामन थाना क्षेत्र की इस घटना में यदि सभी आरोपियों को जल्द नहीं पकड़ा गया तो मैं स्वयं मौके पर जाऊंगा।

हनुमान बेनीवाल ने की थी तीसरा मोर्चा की कवायद
दरअसल हनुमान बेनीवाल लंबे समय से प्रदेश में मजबूत तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद में है. इसके लिए वह पूर्व में किरोड़ी लाल मीणा और सचिन पायलट को भी तीसरी मोर्चे के लिए आमंत्रित कर चुके थे. मगर दोनों ही नेता हनुमान बेनीवाल से के साथ नहीं जुड़े. इसके बावजूद हनुमान बेनीवाल प्रदेश में तीसरी ताकत के रूप में तेजी से उभरे. राजस्थान में आरएलपी ही ऐसी पार्टी है जिसके पास उसका एक सांसद, तीन विधायक के साथ ही नगर पालिका अध्यक्ष, पंचायत समिति प्रधान सहित अनेक सरपंच है. साथ ही हजारों कार्यकर्ताओं की लंबी चौड़ी फौज है.

बड़े जाट नेता के रूप में होने लगी पहचान
हनुमान बेनीवाल की राजनीति से दिग्गज जाट नेता चिंतित है, क्योंकि हनुमान बेनीवाल प्रदेश में सर्वोच्च जाट नेता के रूप में अपनी पहचान बनाने लगे हैं. उन्होंने अकेले दम पर अपनी पार्टी को न केवल खड़ा किया, बल्कि उसका विस्तार भी किया. उनकी राजनीति से ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होता है, मगर भाजपा भी इससे अछूती नहीं है. बेनीवाल दोनों ही पार्टियों के लिए चिंता का विषय बन चुके हैं. भाजपा और कांग्रेस से असंतुष्ट नेता बेनीवाल का रुख करते हैं और बेनीवाल उन्हें इन्हीं पार्टियों के सामने चुनावी मैदान में उतारते हैं, जिसका परिणाम वोट शेयरिंग पर पड़ता है.

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