चीफ जस्टिस एन.वी.रमना के कार्यकाल का आज आखिरी दिन, सुनायेंगे बड़े फैसले
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) आज दो अहम आदेश सुनाने वाला है। वहीं आज चीफ जस्टिस एन.वी.रमना (Chief Justice NV Ramana) के कार्यकाल का आखिरी दिन भी है। आज उनकी अध्यक्षता वाली बेंच दो अहम मामलो में अपने आदेश सुनाएगी।
चुनाव में राजनीतिक दलों की ओर से मुफ्त घोषणाओं पर रोक की मांग पर SC आज आदेश देगा। गौरतलब है कि इस सुनवाई के दौरान SC ने एक्सपर्ट कमेटी बनाने की बात कही थी।
आज इन मामलों पर फैसला सुनाएगा
1- मुफ्त चुनावी घोषणाएं (Election Freebies)
सीजेआई एनवी रमना, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ राजनीतिक दलों द्वारा इलेक्शन फ्रीबीज पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाली जनहित याचिका पर फैसला सुनाएगी, जिससे मतदाताओं को लुभाने और राज्य का बजट घाटा बढ़ाने पर प्रभाव पड़ता है. सुप्रीम कोर्ट में यह जनहित याचिका दिल्ली बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है. इससे देश में एलेक्शन फ्रीबीज पर बड़ी बहस शुरू कर दी है. बीते बुधवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए CJI ने राजनीतिक दलों से पूछा था कि मुफ्त को कैसे परिभाषित किया जाए.
अदालत इस बात पर भी गौर करेगी कि क्या उन चुनावी वादों को रोका जा सकता है, जिन्हें सरकार का समर्थन नहीं है. इसके साथ ही चुनाव से ठीक पहले सत्ताधारी पार्टी द्वारा घोषित कल्याणकारी योजनाएं "फ्रीबी" हैं. इस मामले में AAP, YSRCP, कांग्रेस और DMK समेत विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने सुझाव पेश किए हैं.
अदालत ने शुरू में सरकारी प्रतिनिधियों, राजनीतिक दलों, आरबीआई, नीति आयोग, वित्त आयोग और अन्य हितधारकों सहित एक समिति बनाने का सुझाव दिया था. हालांकि बुधवार को CJI ने टिप्पणी की थी कि यह तय करना "मुश्किल" होगा कि ऐसी समिति की अध्यक्षता कौन करेगा. CJI ने यह भी सवाल किया था कि सरकार ने संसद में इस मुद्दे पर विचार करने के लिए सर्वदलीय बैठक क्यों नहीं बुलाई.
2- 2007 गोरखपुर दंगा मामला
सुप्रीम कोर्ट 2007 के गोरखपुर दंगों में सीएम योगी आदित्यनाथ और अन्य के खिलाफ कथित भड़काऊ भाषण के आरोप में मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार करने वाली यूपी सरकार को चुनौती देने वाली याचिका पर आज अपना फैसला सुनाएगा. इस मामले में चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने 24 अगस्त को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था.
शीर्ष अदालत में इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा कथित भड़काऊ भाषण की जांच की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था. इस मामले में राज्य सरकार ने पिछले साल आदित्यनाथ योगी को अभियुक्त बनाने से ये कहकर मना कर दिया था और कहा था कि उनके खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं हैं.
बता दें कि 11 साल पहले 27 जनवरी 2007 को गोरखपुर में सांप्रदायिक दंगा हुआ था. इस दंगे में दो लोगों की मौत और कई लोग घायल हुए थे. इस दंगे के लिए तत्कालीन सांसद व मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ, विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल और गोरखपुर की तत्कालीन मेयर अंजू चौधरी पर भड़काऊ भाषण देने और दंगा भड़काने का आरोप लगा था. कहा गया था कि इनके भड़काऊ भाषण के बाद ही दंगा भड़का था.
3- कर्नाटक माइनिंग केस
कर्नाटक में लौह अयस्क खदानों में बड़े पैमाने पर अवैध खनन के कारण 2009 में एक एनजीओ समाज परिवर्तन समुदाय ने जनहित याचिका दायर की थी, जिसके बाद खनन को बंद कर दिया गया था. हालांकि 2013 में कड़ी शर्तों के तहत कुछ खानों को फिर से खोलने की अनुमति दी गई और लौह अयस्क और छर्रों के निर्यात पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया.
शीर्ष अदालत में विभिन्न खनन कंपनियों द्वारा लौह अयस्क के निर्यात पर एक दशक पुराना प्रतिबंध और लौह अयस्क के खनन पर जिला स्तर की सीमा हटाने के लिए कई याचिकाएं दायर की गई थीं. खान मंत्रालय ने कर्नाटक के बाहर लौह अयस्क के निर्यात की अनुमति देने की मांग का समर्थन किया है. सरकार की ओर से तर्क दिया है कि देश को 192 मिलियन टन से अधिक लोहे की आवश्यकता है, लेकिन लगभग 120 मिलियन टन का उत्पादन होता है.
हालांकि, केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति द्वारा दायर एक अन्य हलफनामे में कहा गया है कि भारत के लौह अयस्क भंडार सीमित थे. कर्नाटक सरकार ने अप्रैल 2022 में दायर अपने हलफनामे में भी निर्यात प्रतिबंध हटाने का विरोध किया है. यह तर्क देते हुए कि भारत में लौह अयस्क खदानों का उपयोग घरेलू इस्पात उत्पादन के लिए किया जाना चाहिए.
4- राजस्थान माइनिंग लीज केस
सुप्रीम कोर्ट 2016 के राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ राजस्थान सरकार की अपील पर फैसला सुनाएगा, जिसने अल्ट्राटेक सीमेंट कंपनी को भूमि में अपना चूना पत्थर खनन पट्टा जारी रखने की अनुमति दी थी. राज्य सरकार का दावा है कि वहां "जोहड़" या जल निकाय था.
राजस्थान सरकार ने तर्क दिया है कि क्षेत्र में खनन जारी रखने की अनुमति देने से अत्यधिक पारिस्थितिक क्षति होगी. यह मुद्दा 2005 से मुकदमेबाजी के तहत है, जब राजस्थान सरकार ने 2003 में जारी किए गए आशय पत्र को रद्द कर दिया था, जिसमें कंपनी को पर्यावरण मंजूरी के अधीन खनन कार्य शुरू करने की अनुमति दी गई थी. चूंकि कोई पर्यावरण मंजूरी नहीं दी गई थी, इसलिए भूमि का आवंटन रद्द कर दिया गया था. 2012 में सरकार ने खनन पट्टे की अनुमति इस शर्त पर दी कि कंपनी को वैकल्पिक भूमि में एक और जल निकाय विकसित करना होगा. कंपनी ने दावा किया है कि यह इलाका 2 दशकों से भी ज्यादा समय से सूखा पड़ा है.
पिछले हफ्ते अदालत के समक्ष बहस के दौरान, राजस्थान सरकार ने तर्क दिया कि जिस क्षेत्र में चूना पत्थर की खदान स्थित है वह एक "मौसमी जल निकाय" है जो वर्षा जल एकत्र करता है. जल निकाय कई वर्षों से सूखा पड़ा है क्योंकि इस क्षेत्र में वर्षा नहीं हुई है. हालांकि, यदि खनन की अनुमति दी जाती है, तो वर्षा होने की स्थिति में आसपास के क्षेत्र का पारिस्थितिक संतुलन गड़बड़ा जाएगा.
5- दिवालियापन कानून
सुप्रीम कोर्ट एबीजी शिपयार्ड के आधिकारिक परिसमापक द्वारा राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) द्वारा पारित आदेश के खिलाफ दायर एक याचिका पर फैसला सुनाएगा. कोर्ट फैसला करेगा कि क्या एक सफल बोलीदाता द्वारा भुगतान के लिए भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI) द्वारा प्रदान किए गए 90 दिन की खिड़की में परिसमापन विनियम 2016 के परिसमापन प्रक्रिया विनियम पूर्वव्यापी रूप से लागू होंगे. क्या उन मामलों में भी जहां परिसमापन प्रक्रिया 2019 में संशोधित दिशानिर्देशों के प्रभावी होने की तारीख से पहले शुरू हुई थी.