अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर का निधन
वाशिंगटन
अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर का बुधवार को निधन हो गया है। 100 साल की उम्र में किसिंजर ने कनेक्टिकट में अपने घर पर आखिरी सांस ली। किसिंजर एसोसिएट्स इंक ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि विवादास्पद नोबेल शांति पुरस्कार विजेता डॉक्टर हेनरी किसिंजर ने दो राष्ट्रपतियों के साथ काम करते हुए अमेरिकी विदेश नीति पर अमिट छाप छोड़ी। एक शानदार डिप्लोमैट के तौर पर पहचान बनाने वाले किसिंजर का 29 नवंबर को निधन हो गया।
हेंज अल्फ्रेड किसिंजर का जन्म 27 मई, 1923 को जर्मनी के फर्थ में हुआ था। यहूदियों के खिलाफ नाजी अभियान से पहले 1938 में परिवार के साथ अमेरिका आ गए थे। 1943 में वह अमेरिकी नागरिक बन गए और द्वितीय विश्व युद्ध में यूरोप में सेना में काम किया। उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से 1952 में मास्टर की डिग्री और 1954 में डॉक्टरेट की उपाधि अर्जित की। इसके बाद 17 साल तक हार्वर्ड की फैक्लटी रहे। 1970 के दशक में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के साथ राज्य सचिव के रूप में काम करते हुए किसिंजर का कई बड़ी बदलाव वाली वैश्विक घटनाओं में उनका हाथ था। उनकी कोशिशों से ही चीन के साथ अमेरिका की कूटनीतिक बातचीत की शुरुआत हुई। ऐतिहासिक अमेरिकी-सोवियत हथियार नियंत्रण वार्ता, इजरायल और उसके अरब पड़ोसियों के बीच संबंधों और उत्तरी वियतनाम के साथ पेरिस शांति समझौते में भी वह शामिल थे।
चीन का किया था गुप्त दौरा
भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव के बीच 9 जुलाई 1971 को निक्सन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर ने बीजिंग की एक गुप्त यात्रा की थी। यह यात्रा इतनी गुप्त थी कि किसिंजर पहले पाकिस्तान पहुंचे और वहां से उन्होंने बीजिंग के लिए उड़ान भरी। इस दौरान किसिंजर तीन दिनों तक चीन के शीर्ष नेताओं से मिले। 11 जुलाई 1971 को किसिंजर चीन से वापस अमेरिका रवाना हुए। चीन में हुई बैठकों में यह सहमति बनी कि राष्ट्रपति निक्सन चीन का दौरा करेंगे और विदेश नीति को नया आकार देंगे। किसिंजर ने 1971 के भारत पाकर युद्ध के समय किसिंजर ने चीन से भारत की सीमा की ओर सेना भेजने के लिए भी कहा था।
अमेरिकी विदेश नीति के प्रमुख वास्तुकार के रूप में डॉ. किसिंजर का कार्यकाल 1974 में राष्ट्रपति निक्सन के इस्तीफे के साथ समाप्त हो गया। फिर वह राष्ट्रपति गेराल्ड फोर्ड के साथ एक राजनयिक ताकत बने रहे। एक तरफ किसिंजर को उनकी प्रतिभा और व्यापक अनुभव के लिए सराहना मिलती रही तो दूसरी ओर उन्हें लैटिन अमेरिका में कम्युनिस्ट विरोधी तानाशाही के समर्थन के लिए युद्ध अपराधी करार दिया गया। किसिंजर को 1973 में उत्तरी वियतनाम के ले डक थो के साथ शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया, जिन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया। इसे अब तक के सबसे विवादास्पद पुरस्कारों में से एक माना जाता है। जिसके बाद बेल समिति के दो सदस्यों ने चयन को लेकर इस्तीफा दे दिया और कंबोडिया पर अमेरिकी गुप्त बमबारी पर सवाल उठे।