हंगरी-पोलैंड में शिक्षकों की घटती संख्या बानी चिंता का कारण
वारसा (पोलैंड)
समस्या और विकराल होने वाली है, क्योंकि दोनों देश यूक्रेनी शरणार्थियों की समस्या से जूझ रहे हैं। इनमें भी पोलैंड की हालत ज्यादा खराब है, क्योंकि यहां स्कूल जाने की उम्र वाले करीब दो लाख यूक्रेनी रह रहे हैं।
इवा जावोरस्का 2008 तक शिक्षिका थीं। अपना काम उन्हें पसंद था, लेकिन कम वेतन ने हतोत्साहित कर दिया। कई बार उन्हें कक्षा में पढ़ाने के लिए सामान तक अपने पैसे से खरीदना पड़ता था। सरकार के स्कूलों को रूढ़िवादी विचारों को बढ़ावा देने का माध्यम बनाने पर उनमें गुस्सा था।
44 साल की इवा कहती हैं कि उन्हें हालात बदलने की उम्मीद थी, लेकिन वह और खराब होने लगे तो उन्होंने शिक्षण छोड़ ही दिया। शिक्षक और अभिभावक मानते हैं कि सत्ताधारी पार्टी स्कूलों का उपयोग कर विद्यार्थियों में रूढ़िवादी और राष्ट्रवादी नजरिया विकसित कर रही है।
हंगरी में भी हालात ऐसे ही हैं। कम वेतन और काम के भारी बोझ की ओर ध्यान दिलाने के लिए यहां शिक्षकों ने चेहरे को काले कपड़े से ढककर और काले छाते लेकर प्रदर्शन किया। शिक्षकों की यूनियन पीएसजेड का कहना है कि युवा शिक्षकों को टैक्स देने के बाद वेतन के नाम पर केवल 500 यूरो मिलते हैं। इसी कारण कई लोग काम ही छोड़ रहे हैं। शुक्रवार को सैकड़ों लोगों ने मार्च निकालकर शिक्षकों को समर्थन दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान की सरकार के निर्देश पर शिक्षकों का वेतन कम रखा गया है। इस दौरान उन्होंने ‘स्वतंत्र देश’ और ‘मुफ्त शिक्षा’ के नारे लगाए।
समस्या और विकराल होने वाली है, क्योंकि दोनों देश यूक्रेनी शरणार्थियों की समस्या से जूझ रहे हैं। इनमें भी पोलैंड की हालत ज्यादा खराब है, क्योंकि यहां स्कूल जाने की उम्र वाले करीब दो लाख यूक्रेनी रह रहे हैं। 24 फरवरी को युद्ध शुरू होने के बाद इनमें से ज्यादातर ने पोलैंड के स्कूलों में दाखिला ले लिया है। शिक्षा मंत्री ने आशंका जताई कि अगले साल यूक्रेनी विद्यार्थियों की संख्या तीन गुनी हो सकती है।