बिहार में दो लोकसभा चुनावों में RJD से ‘इन वोटरों’ का हुआ मोहभंग, जानिए आंकड़े
पटना
जातीय गोलबंदी के सहारे बिहार में लोकसभा चुनाव के चौंकाने वाले परिणाम का मंसूबा पाले किसी भी दल या गठबंधन को पिछले लोकसभा चुनाव के परिणामों से सबक लेकर ही आगे बढ़ना चाहिए। इस बार क्या होगा, यह तो जनता ही जाने, लेकिन पिछले चुनाव परिणाम जातीय गोलबंदी की हवा निकालते नजर आते हैं। परिणामों को देख कर इतना तो पता चल ही जाता है कि आरजेडी का M-Y (मुस्लिम-यादव) समीकरण अब अक्षुण्ण नहीं रहा। उसमें भाजपा सेंध लगा चुकी है। भाजपा तीसरी बार परचम लहराने के लिए पूरे दमखम के साथ मैदान में है। विपक्षी दूसरे दलों, खासकर आरजेडी को भी अपने आजमाए समीकरण पर भरोसा है। तभी तो तेजस्वी यादव चौंकाने वाले परिणाम की बार-बार मुनादी कर रहे हैं। पर, पिछले अनुभव तो यही बताते हैं कि विपक्षी दलों के लिए इस बार भी कोई करिश्मा करना आसान नहीं होगा।
आरजेडी को पूरे नहीं मिलते M-Y समीकरण के वोट
बिहार में हुए ताजा जातीय सर्वेक्षण में आरजेडी के पारंपरिक M-Y (मुस्लिम-यादव) समीकरण की आबादी 32 प्रतिशत निकल कर आई है। यादवों की आबादी 14.3 प्रतिशत तो मुसलमानों की 17.7 प्रतिशत है। यानी समीकरण के बरकरार रहने की बात अगर सच है तो इस बार आरजेडी या उसके सहयोगी दलों के उम्मीदवारों को 32 प्रतिशत वोट तो पक्का मिलने चाहिए। आरजेडी, कांग्रेस, वीआईपी और तीन वामपंथी दलों के कोर वोट भी साथ आने चाहिए। ये कोर वोटर इन दो जातियों के समीकरण से इतर होंगे। पर, पिछले दो चुनावों के वोटों पर गौर करें तो आरजेडी को 15 से 20 प्रतिशत के बीच ही वोट मिले। आरजेडी के समीकरण वाले वोट आखिर कहां चले गए ! वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए ने लोकसभा का चुनाव लड़ा। गुजरात दंगों के कारण नरेंद्र मोदी की छवि मुसलमानों में अच्छी नहीं थी। मोदी को हराने के लिए मुसलमानों को तो उत्साहित होकर आरजेडी या महागठबंधन को वोट करना चाहिए था ! लालू यादव को अपनी यादव बिरादरी के वोटों पर भी अधिक भरोसा शुरू से रहा है। इसके लिए आरजेडी बदनाम भी रही है। इस बार ही आरजेडी ने 22 में आठ सीटें सिर्फ यादव समाज के लोगों को दी हैं, जिनकी आबादी 14 प्रतिशत है। 17 प्रतिशत मुसलमानों को सिर्फ दो सीटों से संतोष करना पड़ा है। बहरहाल, बड़ा सवाल यह है कि मुस्लिम-यादव के 32 प्रतिशत वोटों के बजाय आरजेडी को 2014 में 20 प्रतिशत और 2019 में इससे भी कम 15 प्रतिशत ही वोट क्यों मिले? क्या मुसलमानों और यादवों या इनमें किसी एक ने मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए को तो वोट नहीं दे दिया?
लोकसभा चुनाव में यादव क्या मोदी को वोट देते हैं?
इसका सीधा अर्थ यही है कि मुसलमानों के वोट तो आरजेडी को थोक में मिले, लेकिन यादव वोटों में विभाजन हो गया। यादव वोट बंटे तो किसके खाते में गए होंगे, यह अनुमान लगाना ज्यादा कठिन नहीं है। इसके बावजूद बिहार में महागठबंधन (इंडी अलायंस) को जातीय और मजहबी गोलबंदी पर भरोसा कायम है। यह जरूरी नहीं कि पहले जो सियासी फॉर्म्युला कामयाब रहा है, वह आज भी कारगर हो। लालू यादव या मुलायम सिंह यादव के जमाने जातीय गोलबंदी का सूत्र सफल रहा तो आज यह फेल क्यों हो रहा है ? आरजेडी या गैर एनडीए दलों के लिए यह चिंतन-मनन का विषय है। शायद तेजस्वी यादव ने यह बात समझ ली है।
तभी तो लालू के M-Y (मुस्लिम-यादव) की तर्ज पर उन्होंने BAAP (पिछड़े, अगड़े, आधी आबादी और गरीब) का नया समीकरण गढ़ा है। तेजस्वी के पिता लालू यादव का अंदाज दूसरा था। उन्होंने 'भूराबाल' (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, लाला) साफ करो का नारा देकर सवर्णों से किनारा कर लिया था। पिछड़ों-दलितों में भी उनकी अधिक रुचि नहीं थी। उन्हें तो चुनावी फतह के लिए M-Y समीकरण के 32 प्रतिशत वोट ही पर्याप्त थे। इसे ही उन्होंने पुख्ता किया। तेजस्वी ने लालू के अगड़े-पिछड़े वाले लफड़े से बचने के लिए BAAP में अगड़ों भी शामिल कर लिया है। शायद इसी बहाने अगड़ों के भूले-भटके वोट मिल जाएं। वैसे अगड़ों में 99.99 फीसदी मोदी के ही समर्थक मिलेंगे।
आरजेडी को 2014 के लोकसभा चुनाव में 20% वोट
बिहार में 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार में कुल वोटर 6,38,00,160 थे। इनमें 3,53,04,368 ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। मसलन 55.33 प्रतिशत वोटिंग हुई। जितने वोट पड़े, उनमें भाजपा को 1,05,43,025 वोट मिले थे। भाजपा ने अकेले 29.86 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। आरजेडी 20.46 प्रतिशत वोट पाकर दूसरे नंबर पर था। उसे कुल 72,24,893 वोट मिले थे। जेडीयू 16.04 प्रतिशत पाकर तीसरे नंबर पर रहा। उसे कुल 56,62,444 वोट हासिल हुए थे। कांग्रेस 8.56 प्रतिशत वोटों के साथ चौथे नंबर पर थी। भाजपा के साथ चुनाव लड़ने वाली लोक जनशक्ति पार्टी 6.50 प्रतिशत वोट मिले थे। उसे कुल 22,95,929 वोट मिले थे। यानी भाजपा, जेडीयू और लोजपा को अलग-अलग मिले वोट 52 प्रतिशत से अधिक होते हैं।
2019 में RJD के वोट पांच प्रतिशत घट कर 15%
2019 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने 20 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। गोपालगंज, सिवान, महाराजगंज, सारण, पाटलिपुत्र, बक्सर, जहानाबाद, नवादा, जमुई, मधेपुरा, अररिया, झंझारपुर, दरभंगा, शिवहर, सीतामढ़ी, हाजीपुर, वैशाली, बेगूसराय और बांका में आरजेडी के उम्मीदवार थे। इनमें किसी सीट पर आरजेडी को कामयाबी नहीं मिली। वोट प्रतिशत भी 2014 के 20.46 प्रतिशत से घट कर 15.68 प्रतिशत हो गया। कांग्रेस ने आरजेडी के साथ ही नौ सीटों पर चुनाव लड़ा था। उसे सिर्फ किशनगंज की सीट पर जीत मिली। कांग्रेस ने 7.7 प्रतिशत वोट हासिल किए। उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा भी आरजेडी के साथ थी। पांच सीटों पर लड़ कर रालोसपा ने 3.66 प्रतिशत वोट लिए। आरजेडी के साथ महागठबंधन में शामिल रही जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) ने तीन सीटों पर लड़ कर 2.39 प्रतिशत वोट लिए तो मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) ने भी तीन सीटों पर लड़ कर 1.66 प्रतिशत वोट हासिल किए। एनडीए की बात करें तो उसमें भाजपा के अलावा, जेडीयू और एलजेपी ने साथ मिल कर चुनाव लड़ा। भाजपा ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ कर सभी सीट जीत लीं। उसे 23.6 प्रतिशत वोट मिले। जेडीयू भी 17 सीटों पर लड़ा और 16 सीटें जीतीं। जेडीयू को 21.86 प्रतिशत वोट आए थे। लोक जनशक्ति पार्टी ने छह सीटों पर चुनाव लड़ा और सभी सीटों पर कामयाबी हासिल की। उसे 7.86 प्रतिशत वोट हासिल हुए।
दो चुनावों में निकलती रही जातीय गोलबंदी की हवा
दो लोकसभा चुनावों के परिणाम बताते हैं कि बिहार में जातीय गोलबंदी को तोड़ने में नरेंद्र मोदी की छवि कारगर रही है। इसलिए 2024 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को निशाने पर रख कर विपक्ष अगर जातीय गोलबंदी से चौंकाने वाले परिणाम की उम्मीद करता है तो यह दिवास्वप्न के अलावा कुछ नहीं। खासकर तब, जब मुसलमानों का नजरिया भी भाजपा के प्रति बदलने लगा है। उत्तर प्रदेश में मुस्लिम बहुल इलाकों में भाजपा के उम्मीदवार अगर जीत जाते हैं तो इसका अर्थ हुआ कि मुसलमानों का नजरिया भी अब बदल रहा है। आरजेडी को 15 प्रतिशत वोट अगर मिल रहे हैं तो इसका संकेत साफ है कि यादव वोटों पर अब उसका एकाधिकार नहीं रहा।