गया में सिर्फ पीएम मोदी के आने से मांझी की नैया पार होना मुश्किल, जीतन राम का नाम भी चलेगा?
गया.
बिहार की गया (आरक्षित) सीट पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और महागठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है। बाकी प्रत्याशी मैदान में क्या भूमिका निभाएंगे, वह बाद में पता चलेगा। फिलहाल ध्यान एनडीए और महागठबंधन पर ही है। दोनों के दिग्गज नेता अपने प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित करने के लिए गया का दौरा पूर कर चुके हैं। मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एनडीए के सहयोगी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के प्रत्याशी जीतन राम मांझी को जिताने के लिए बहुत कुछ कह गए हैं। लेकिन, अब जब चुनाव प्रचार थमने वाला है तो यह देखने वाली बात होगी कि किसकी गाड़ी कहां भाग और कहां फंस सकती है।
यह अहम सवाल इसलिए है कि जीतन राम मांझी और कुमार सर्वजीत अपने जिले से लोकसभा चुनाव के प्रत्याशी हैं। अपने जिले, इस लिहाज से कि यहीं से विधायक हैं। इसमें कुमार सर्वजीत का पलड़ा भारी है, क्योंकि वह बोधगया के राजद विधायक हैं। यह विधानसभा क्षेत्र गया लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। दूसरी तरफ, जीतन राम मांझी इमामगंज से विधायक हैं। इमामगंज विधानसभा औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंदर है।
जाति के हिसाब से क्या स्थिति बन रही?
बिहार जातिगत जनगणना करा चुका है, हालांकि जनगणना के आंकड़े जिलावार नहीं जारी किए गए। इसलिए, सारी राजनीति जातियों की अनुमानित संख्या के आधार पर है। इस अनुमान के अनुसार सबसे बड़ी आबादी भुइयां (महादलित) की है। इससे जीतन राम मांझी आते हैं। मौजूदा जदयू सांसद विजय मांझी भी इसी जाति से हैं। वह विरोध में नहीं, इसका फायदा मांझी को मिल रहा है। संख्या के हिसाब से उसके बाद दुसाध, यानी पासवान बताए जाते हैं। इससे कुमार सर्वजीत हैं। मतलब, पीठ पर ही हैं। तीसरे नंबर पर राजपूतों की संख्या बताई जाती है। फिर मुस्लिम और पांचवें नंबर पर वैश्य-बनिया बताए जाते हैं। मतलब, अपनी जाति और भाजपा के पारंपरिक वोटरों की बड़ी आबादी के हिसाब से मांझी फायदे में दिखते हैं। कुमार सर्वजीत की जाति वही है, जो चिराग पासवान की है। स्थानीय राजनीति को समझने वाले इसी आधार पर कह रहे कि अगर चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस ने मिलकर मेहनत कर दी होती तो गारंटी की संभावना बन सकती थी।
कैडर के मामले में कौन फायदे में है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को अपने समर्थकों से बार-बार अपील की कि वह हर बूथ पर उन्हें जिताएं। उन्हें यह क्यों कहना पड़ा? इसे समझना बहुत मुश्किल नहीं है। इस सीट पर हम-से प्रत्याशी उतरे हैं और इस पार्टी के पास कार्यकर्ताओं का वैसा नेटवर्क नहीं है। एनडीए में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाईटेड के पास ही नेटवर्क है। भाजपा को चूंकि बिहार की 40 में से 40 सीटों पर जीत की गारंटी चाहिए, इसलिए उसे कैडर की ताकत झोंकनी होगी। इसके अलावा जदयू से भी जमीनी सहयोग उसी तरह लेना होगा। इधर, महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल और वामदलों के पास कैडर है। यह दोनों पूरी ताकत के साथ लगे हैं।
विधानसभा के हिसाब से क्या गणित है?
गया जिले में 10 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से एक अतरी जहानाबाद लोकसभा और तीन- इमामगंज, गुरुआ और टिकारी सीटें औरंगाबाद लोकसभा सीट के मातहत हैं। बची छह सीटों में 1. बेलागंज से आठ बार के विधायक राजद कोटे के पूर्व मंत्री सुरेंद्र यादव हैं। 2. शेरघाटी में जदयू को हराकर राजद की मंजू अग्रवाल विधायक हैं। 3. गया शहरी सीट पर भाजपा के आठ बार के विधायक डॉ. प्रेम कुमार 2020 में जीते तो हैं, लेकिन पहले के मुकाबले अंतर कम रहा है। 4. बोधगया से राजद विधायक कुमार सर्वजीत ही लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। 5. वजीरगंज से भाजपा विधायक हैं। 6. बाराचट्टी से जीतन राम मांझी की समधन ज्योति मांझी विधायक हैं, लेकिन उनके क्षेत्र में भारी विरोध दिख रहा है। इसी के कारण जिला परिषद् के कई सदस्य राजद में आ चुके हैं।
निगम की राजनीति के क्या मायने हैं?
गया नगर निगम क्षेत्र में 53 पार्षद हैं। इनमें से कुछ हिस्सा जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र में आता है, वैसे ज्यादातर गया लोकसभा क्षेत्र के दायरे में है। लगभग आधे पार्षदों ने पत्ता खोला है और आधे चुप्पी साधे हुए हैं। आधे में कितने ने किसके पक्ष में कितना विश्वास जताया है और दोनों प्रत्याशी उनपर कितना विश्वास कर पाते हैं, यह उम्मीदवारों पर छोड़ देना चाहिए। जो आधे चुप हैं, वह भी चुपचाप जिसके साथ जाएंगे- प्रभावित करेंगे।
अपना नंबर कितना मिल रहा किन्हें?
जीतन राम मांझी ने मुख्यमंत्री रहते जो काम किया, उनमें कई लोकलुभावन प्रोजेक्ट रहे। उसका आज भी प्रभाव दिखता है। इसी तरह, कुमार सर्वजीत ने कृषि मंत्री रहते हुए 28 जनवरी तक बिहार में रही महागठबंधन सरकार में जो काम किया, उसका माइलेज उन्हें मिले तो आश्चर्य नहीं।
पिछली बातों के मायने खुद निकालें
2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से एनडीए समर्थित जदयू के विजय कुमार मांझी जीते थे। उन्हें 4.67 लाख वोट मिले थे। तब जीतन राम मांझी महागठबंधन समर्थित हम-से के प्रत्याशी थे और उन्हें 32.85 लाख वोट मिले थे। दूसरी तरफ महागठबंधन से मांझी के अलावा उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी निकलकर एनडीए में है। महागठबंधन के इंडी एलायंस का रूप धरने से किसी नए दल का प्रवेश नहीं हुआ है इस बार। पिछली बार इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी ने 13 हजार वोट काटा था। इसमें दोनों मुख्य प्रत्याशियों का वोट हिस्सा था। दो प्रत्याशियों को यहां दो से ढाई प्रतिशत वोट मिला था, जबकि 3.14 प्रतिशत वोट NOTA के नाम पर गया था।
दिग्गजों का प्रभाव अंतिम ताकत
गया लोकसभा सीट पर ऊपर बताए गए सात प्रश्नों का जवाब प्रत्याशी अगर अगले कुछ घंटों में वास्तविक रूप से समझ लें और जमीनी तौर पर अंतिम प्रयास कर लें तो मतदान के साथ ही वह खुद को पक्का कर सकेंगे कि क्या होने वाला है। रही बात दिग्गजों के प्रभाव की तो महागठबंधन में लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की छवि का फायदा-नुकसान उनके कोर वोटर बखूबी समझते हैं। दूसरी तरफ, एनडीए में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही निर्णायक प्रभाव हैं। लोग मोदी की अपील और नीतीश की बातों पर चलते हैं तो मांझी की नैया पार लग सकती है। दूसरी तरफ अगर लालू-तेजस्वी की बातों पर भरोसा करते हैं तो जदयू के विजय मांझी से लेकर हम-से को दी गई सीट फंस सकती है।