November 30, 2024

2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 16 तो सपा ने 4 मुस्लिम ही मैदान में उतारे

0

नई दिल्ली

लोकसभा चुनाव, 2024 के चुनाव प्रचार के दौरान हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा गूंज रहा है। कोई मुस्लिमों को आरक्षण देने की बात कर रहा है तो कोई उन्हें घुसपैठिया तक बता रहा है। भाजपा जहां मुस्लिमों से दूरी बरतती नजर आती है, वहीं कांग्रेस और सपा खुद को मुस्लिमों की रहनुमा बताने में पीछे नहीं रहती हैं। मगर, हकीकत इन सबसे कोसों दूर हैं। मुस्लिमों को लेकर कोई भी पार्टी बहुत फिक्रमंद नहीं है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि संसद से लेकर विधानसभाओं तक करीब 20 करोड़ की आबादी वाले मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व बेहद कम है। भले ही मुस्लिमों की आबादी बढ़ी हो, मगर उनका संसद और विधायिकाओं में प्रतिनिधित्व घटा है। आइए-समझते हैं कि राजनीतिक पार्टियां क्यों मुस्लिमों से दूरी बरतती हैं और मुस्लिमों को किस पार्टी ने कितने टिकट दिए।

कांग्रेस ने 16 तो सपा ने 4 मुस्लिम प्रत्याशी ही मैदान में उतारे
कांग्रेस ने इस बार बस 16 मुस्लिम कैंडिडेट ही चुनाव में उतारे हैं। वहीं, सपा ने बस 4 मुस्लिम उम्मीदवारों को ही मैदान में उतारा है। इंडिया गठबंधन ने कुल 34 मुस्लिम प्रत्याशियों को चुनाव में उतारा है। वहीं, राजद ने बस 2 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। महाराष्ट्र और गुजरात में कांग्रेस ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया। जबकि इसके पहले के चुनावों में वो कम से कम 1-2 सीटों पर प्रत्याशी उतारती रही है।

भाजपा ने इस बार बस 1 को दिया टिकट
भाजपा ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 13 मुस्लिमों को ही लोकसभा का टिकट दिया था। इनमें से एक को भी जीत हासिल नहीं हुई। 2024 के चुनाव में भाजपा की ओर से केरल की मलप्पुरम सीट से एकमात्र मुस्लिम प्रत्याशी अब्दुल सलाम हैं। अगर, उन्हें जीत मिलती है तो वह 2014 के बाद से भाजपा के पहले मुस्लिम प्रत्याशी होंगे, जो लोकसभा पहुंचेंगे। भाजपा ने इस बार 430 प्रत्याशी खड़े किए हैं। एनडीए गठबंधन ने कुल 4 मुस्लिम प्रत्याशियों को इस बार चुनावी अखाड़े में भेजा है।

मुस्लिम प्रत्याशी उतारने से कतराती क्यों हैं पार्टियां
दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर राजीव रंजन गिरि बताते हैं कि कोई भी चुनाव हो, उसमें मुस्लिम प्रत्याशी कम उतारे जाने की वजह है, पार्टियों की तुष्टिकरण की नीति। भाजपा भले ही मुस्लिमों से दूरी बरतती हो, मगर कांग्रेस-सपा जैसी पार्टियां भी मुस्लिमों से लगाव का बस ढोंग करती ही नजर आती हैं। दरअसल, कोई भी पार्टी उसी को टिकट देती हैं, जिसके जीत की संभावना ज्यादा हो। इसमें जातिगत समीकरण, धार्मिक समीकरण, आबादी, लोकप्रियता और दूसरों के मुकाबले काम का प्रदर्शन जैसे फैक्टर्स का ध्यान रखा जाता है।

आबादी के हिसाब से भी संसद में नहीं मिला प्रतिनिधित्व
1980 के दशक में मुस्लिमों की कुल आबादी 11 फीसदी हुआ करती थी। उस वक्त संसद में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व 9 फीसदी था। आज मुस्लिमों की आबादी 14 फीसदी हो चुकी है, मगर संसद में उनका प्रतिनिधित्व 5 फीसदी से भी कम है। 2019 में मुस्लिमों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व 4.97 फीसदी था। इससे पहले 22014 में यह आंकड़ा 4.23 फीसदी था।

राज्यों की विधायिकाओं में अच्छे हालात नहीं
देश के 28 राज्यों की विधायिकाओं में 4,000 से ज्यादा विधानसभा सदस्य चुनकर आते हैं। मगर, यहां भी मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व नाममात्र का ही है। मौजूदा वक्त में इन विधायिकाओं में महज 6 फीसदी ही मुसलमान हैं। यहां तक कि देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य यूपी में करीब 16 फीसदी मुसलमान हैं, मगर वहां भी विधायिका में बस 7 फीसदी ही मुस्लिम हैं।

2014 में भाजपा का 1 सांसद मुस्लिम, 2019 में एक भी नहीं
2014 में मोदी सरकार पहली बार सत्ता में आई थी। उस वक्त देश की संसद में 30 मुसलमान चुनाव जीतकर पहुंचे थे। इनमें से बस 1 सांसद ही भाजपा का था। वहीं, 2019 के चुनाव में 543 सदस्यीय संसद में 27 मुस्लिम सांसद बनकर पहुंचे थे। इनमें एक भी सांसद भाजपा से नहीं था।

सच्चर कमेटी ने बताई थी वजह, आज तक सुधार नहीं

2006 में सरकार की बनाई गई एक कमेटी सच्चर कमेटी ने रिपोर्ट दी थी कि देश में मुस्लिमों की स्थिति दलितों और आदिवासियों से भी ज्यादा खराब है। साक्षरता, कमाई और हायर एजुकेशन तक पहुंच में मुस्लिम अभी तक काफी पीछे हैं। कमेटी ने राजनीतिक रूप से मुस्लिमों के प्रतिनिधित्व की वकालत की थी। मगर, 18 साल बीतने के बाद भी मुस्लिमों को लेकर कोई ठोस नीति नहीं बनाई जा सकी।

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *