November 12, 2024

मोबाइल लोकेशन साझा करना जमानत की शर्त नहीं : उच्चतम न्यायालय

0

नई दिल्ली
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि आरोपियों को जमानत देने के लिए उसकी गतिविधियों पर नजर रखने के वास्ते गूगल पिन का स्थान संबंधित जांच अधिकारियों से साझा करने की शर्त नहीं रखी जा सकती।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान की पीठ ने नशीले पदार्थो की तस्करी के आरोपी नाइजीरिया के निवासी फ्रैंक विटस की दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ दायर अपील पर यह फैसला सुनाया‌।

पीठ ने कहा, "जमानत की शर्त जमानत के मूल उद्देश्य को विफल नहीं कर सकती। ऐसी कोई शर्त नहीं हो सकती जो पुलिस को आरोपी व्यक्तियों की आवाजाही पर लगातार नज़र रखने में सक्षम बनाए"।

याचिकाकर्ता विटस ने दिल्ली उच्च न्यायालय की‌ ओर से जमानत के लिए मोबाइल लोकेशन पुलिस से साझा करने की शर्त की व्यवस्था के आदेश को चुनौती देते हुए कहा था कि इससे उसके निजात के अधिकार का उल्लंघन होता है।
शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान पाया कि जमानत की शर्त के रूप में गूगल पिन स्थान साझा करने की शर्त भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत निजता के अधिकार पर आघात करती है।
शीर्ष अदालत ने पहले यह भी कहा था कि जब एक बार किसी अभियुक्त को अदालतों द्वारा निर्धारित शर्तों के साथ जमानत पर रिहा कर दिया जाता है तो उसके ठिकाने को जानना और उसका पता लगाना अनुचित हो सकता है। वजह यह कि इससे उसकी निजता के अधिकार में बाधा आ सकती है।
उच्चतम न्यायालय ने तब कहा था, "यह जमानत की शर्त नहीं हो सकती। हम सहमत हैं कि ऐसे दो उदाहरण हैं जहां इस न्यायालय ने ऐसा किया है, लेकिन यह जमानत की शर्त नहीं हो सकती।"
नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 2017 में अपने ऐतिहासिक फैसले में सर्वसम्मति से कहा था कि निजता का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है।

प्रिम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ याचिका पर यह आदेश पारित किया, जिसमें नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत एक मामले में आरोपी नाइजीरियाई नागरिक को जमानत दी गई थी. मामले की सुनवाई के दौरान, सुप्रिम कोर्ट ने कहा कि गूगल पिन साझा करने की शर्त संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी के निजता अधिकारों का उल्लंघन कर सकती है. याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रिम कोर्ट का रुख किया था. मई 2022 में, हाई कोर्ट ने दो सख्त शर्तें रखी थीं – एक, आरोपी को गूगल मैप पर एक पिन डालना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मामले के जांच अधिकारी को उनका स्थान उपलब्ध हो. और, दूसरी शर्त यह थी कि नाइजीरिया के उच्चायोग को यह आश्वासन देना होगा कि आरोपी देश छोड़कर नहीं जाएगा और जब भी आवश्यकता होगी, ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश होगा.

29 अप्रैल को, सुप्रिम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था कि वह इस बात की जांच करेगी कि क्या दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा लगाई गई शर्तों में से एक शर्त निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, जिसमें एक आरोपी को जमानत पर रहते हुए जांचकर्ताओं को उसकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए अपने मोबाइल फोन से 'गूगल पिन डालने' के लिए कहा गया है. एक ऐतिहासिक फैसले में, नौ जस्टिस की संविधान पीठ ने 24 अगस्त, 2017 को सर्वसम्मति से घोषणा की थी कि निजता का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है. हाई कोर्ट ने शर्त पर ध्यान दिया और कहा कि प्रथम दृष्टया यह जमानत पर रिहा आरोपी के निजता के अधिकार का उल्लंघन है.

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed