एनजीटी ने राजस्थान सरकार पर लगाया 3,000 करोड़ का जुर्माना
नई दिल्ली
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) का राजस्थान सरकार पर बड़ा एक्शन देखने को मिला है। एनजीटी ने औद्योगिक इकाइयों के प्रदूषित पानी डिस्चार्ज का प्रबंधन नहीं करने और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए राजस्थान सरकार पर 3,000 करोड़ रुपए का भारी भरकम जुर्माना लगाया है।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने गुरुवार को आदेश जारी करते हुए कहा कि, कुल मुआवजा 3,000 करोड़ रुपये है, जिसे राज्य सरकार दो महीने के अंदर जमा कर सकता है। इस राशि में प्रदूषित पानी डिस्चार्ज का प्रबंधन नहीं करने के लिए 2,500 करोड़ रुपये और वैज्ञानिक रूप से प्रबंधित ठोस अपशिष्ट कार्यों में विफलता के लिए 555 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है।
पीठ ने आगे कहा, पर्यावरण को लगातार हो रहे नुकसान को दूर करने के लिए जुर्माना लगाना आवश्यक हो गया है और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करने के लिए इस ट्रिब्यूनल को ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन के लिए मानदंडों के प्रवर्तन की निगरानी करने की आवश्यकता है।
आगे पीठ ने कहा कि, हमें उम्मीद है मुख्य सचिव और राजस्थान के सभी जिलाधिकारी सख्त निगरानी की तरफ कदम उठाएंगे और ये सुनिश्चित किया जाए कि ठोस और तरल अपशिष्ट उत्पादन और उपचार में अंतर को जल्द से जल्द समझा जाए, प्रस्तावित समय-सीमा को छोटा करते हुए, वैकल्पिक या अंतरिम उपायों का इस्तेमाल किया जाए।
आदेश में कहा गया है कि, राज्य एक लाख से अधिक आबादी वाले मॉडल शहरों, कस्बों, गांवों को विकसित करने के ट्रिब्यूनल के आदेशों के अनुपालन के बारे में जानकारी देने में विफल रहा है। इसमें जयपुर, जोधपुर, कोटा, बीकानेर, अजमेर, उदयपुर, भीलवाड़ा, अलवर, भरतपुर, सीकर, पाली, गंगानगर, टोंक, किशनगढ़, हनुमानगढ़, ब्यावर, धौलपुर, सवाई माधोपुर, चुरू, गंगापुर, झुंझुनूं, बारां, चित्तौड़गढ़, हिंडौन, भिवाड़ी, बूंदी, नागौर और सुजानगढ़ शामिल हैं। यहां फैक्ट्रियों से निकलने वाले पानी से नदियों में हो रहे प्रदूषण को लेकर एनजीटी ने ये कार्रवाई की है।
खंडपीठ ने आगे कहा, राज्य की विरासत यानी धरोहरों को सुधारा जाना चाहिए और अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्रों की स्थापना के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले क्षेत्रों पर फिर से ध्यान देना चाहिए ताकि रोजाना अपशिष्ट उत्पादन को संसाधित किया जा सके। आदेश में यह भी कहा गया है, ठोस और तरल अपशिष्ट यानी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले उत्पादन और उपचार में लगातार अंतर को देखते हुए, ये ठीक समय है कि, आवास और शहरी विकास मंत्रालय और स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन यानी एनएमसीजी, अमृत-1 और 2.0 और नदी की सफाई, संबंधित राज्यों की तरफ से अपशिष्ट प्रबंधन के निर्देशों के पालन की उचित निगरानी करे और पर्यावरण के दुश्मनों पर कार्रवाई करें।
केंद्रीय वित्त पोषण और राज्य के बजटीय प्रावधानों को पर्यावरण मुआवजे को ध्यान में रखते हुए पर्याप्त रूप से आवंटित और विभाजित करने की आवश्यकता है जो बहाली कार्य अनुमान पर आधारित है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एमएसडब्ल्यू नियमों और जल अधिनियम के अनुसार नजर रख सकते हैं।