गहलोत अपने ही दांव में फंस गए, प्रमोशन रुका; सीएम की कुर्सी भी ‘माफी’ में अटकी
जयपुर
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ने जा रहे हैं। अंतरिम अध्यक्ष के साथ मुलाकात के बाद गहलोत ने खुद इस बात का ऐलान किया। साथ ही उनके सीएम बने रहने को लेकर भी सस्पेंस बढ़ गया है। मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह उनके हाथ में नहीं, सोनिया गांधी इस पर फैसला करेंगी। गहलोत ने माना कि रविवार को जयपुर में जो कुछ हुआ वह उनकी विफलता है और नैतिक रूप से इसकी जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने सोनिया गांधी से माफी मांगी है। सचिन पायलट के विरोध में गहलोत ने जो दांव चला उसमें अब वह खुद ही फंसते दिख रहे हैं।
गुरुवार को 10 जनपथ में सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद जब गहलोत मीडिया के सामने आए तो उनके एक भी शब्द कहने से पहले चेहरे ने बहुत कुछ कह दिया था। जब उन्होंने बोलना शुरू किया तो पिछले कई दिनों से कायम कुछ सवाल खत्म हो गए तो कई नए सवाल पैदा भी हो गए। यह साफ हो गया रविवार दोपहर तक अध्यक्ष पद के दावेदारों में सबसे आगे चल रहे गहलोत अब रेस से पूरी तरह बाहर हैं। अब सबसे बड़ा सवाल यह बना हुआ है कि क्या वह राजस्थान के सीएम रह पाएंगे? इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी तक से वफादारी की याद दिलाने वाले गहलोत को माफी मिलेगी या नहीं यह अभी साफ नहीं है।
पार्टी की राजस्थान इकाई में संकट पैदा होने के बाद पहली बार दिल्ली पहुंचे गहलोत ने माना कि उनसे बड़ी गलती हो गई है। पायलट विरोध में हाईकमान को नाराज कर चुके गहलोत ने कहा, ''मैं पिछले 50 वर्षों से कांग्रेस का वफादार सिपाही रहा हूं…जो घटना दो दिन पहले हुई उसने हम सबको हिलाकर रख दिया। मुझे जो दुख है वो मैं ही जान सकता हूं। पूरे देश में यह संदेश चला गया कि मैं मुख्यमंत्री बने रहना चाहता हूं इसलिए यह सब हो रहा है।'' गहलोत ने कहा, ''दुर्भाग्य से ऐसी स्थिति बन गई कि प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया। हमारी परंपरा है कि एक लाइन का प्रस्ताव पारित किया जाता है। दुर्भाग्य से ऐसी स्थिति बन गई कि प्रस्ताव पारित नहीं पाया। मैं मुख्यमंत्री हूं और विधायक दल का नेता हूं, यह प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया। इस बात का दुख मुझे हमेशा रहेगा। मैंने सोनिया जी से माफी मांगी है।''
पायलट के विरोध में लांघ गए सीमा?
पिछले कई सालों से जिस तरह गहलोत और पायलट के बीच टकराव चला आ रहा था, उसका अंजाम ऐसे मोड़ पर होगा शायद 'राजनीति के इस जादूगर' ने कभी कल्पना नहीं की थी। वह लगातार अपने हर दांव से पायलट को पस्त करते हुए आगे बढ़ते रहे। लेकिन इस बार गहलोत का दांव उलटा पड़ गया। एक अहम मोड़ पर गहलोत के समर्थकों ने जिस तरह पायलट के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका उसे हाईकमान ने खुद के लिए चुनौती के रूप में लिया।
पायलट को मिलेगा मौका?
इस पूरे खेल में सचिन पायलट अहम किरदार है, लेकिन वह 2020 के बाद से सब्र करके बैठे पायलट ने इस मौके पर भी अपना धैर्य नहीं खोया। कहते हैं कि इंतजार का फल मीठा होता है और कुछ राजनीतिक पंडित मानते हैं कि पायलट के लिए वह समय अब आ चुका है। हालांकि, कुछ सूत्रों का यह भी कहना है कि जिस तरह गहलोत ने सार्वजनिक रूप से माफी मांगी है, उसके बाद उन्हें सीएम पद पर बने रहने दिया जा सकता है। खासकर यह देखते हुए कि पायलट के पास संख्याबल नहीं है और उन्हें कुर्सी देने पर सरकार की स्थिरता संकट में आ सकती है।