November 25, 2024

1072 वोट हासिल कर थरूर ने कांग्रेस और गांधी परिवार को दिया कड़ा message

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   नई दिल्ली
कांग्रेस को आखिरकार तीन साल बाद मल्लिकार्जुन खड़गे के रूप में पूर्णकालिक अध्यक्ष मिल गया है. कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में खड़गे को 7,897 वोट मिला तो शशि थरूर के हिस्से में 1072 वोट आए. इस तरह खड़गे भले ही कांग्रेस अध्यक्ष बन गए हों, लेकिन थरूर अकेले दम पर चुनाव लड़े और एक हजार से ज्यादा वोट पाने में कामयाब रहे. थरूर ने शरद पवार, राजेश पायलट और जितेंद्र प्रसाद जैसे दिग्गज नेताओं से ज्यादा वोट पाकर सिर्फ इतिहास ही नहीं रचा, बल्कि कांग्रेस और गांधी परिवार को भी एक बड़ा संदेश दिया है.

मल्लिकार्जुन खड़गे को गांधी परिवार के करीबी कांग्रेस नेताओं में गिना जाता है. शशि थरूर कांग्रेस के उन नेताओं में शामिल रहे हैं, जिन्हें जी-23 कहकर पुकारा जाता है. कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में गांधी परिवार भले ही तटस्ठ रहने की बात करता रहा हो, लेकिन खड़गे के साथ नजदीकियां जगजाहिर है. ऐसे में खड़गे को गांधी परिवार का औपचारिक कैंडिडेट माना जा रहा था, जिसके चलते उनकी जीत शुरू से ही स्वाभाविक रूप से तय थी.

थरूर को नहीं मिला दिग्गजों का साथ
वहीं, शशि थरूर को अध्यक्ष पद के चुनाव में न तो कांग्रेस के बड़े नेताओं का समर्थन मिला और न ही जी-23 भी उनके पीछे खड़ा हुआ. इतना ही नहीं, कई राज्यों में प्रदेश कांग्रेस समिति भी उन्हें चुनाव प्रचार में सहयोग नहीं किया था. ऐसे शशि थरूर को जरूर अध्यक्ष चुनाव में मुश्किलों को सामना जरूर करना पड़ा था. इसके बावजूद थरूर ने खुद को कांग्रेस में बदलाव लाने वाले उम्मीदवार के तौर पर पेशकर चुनाव को दिलचस्प ही नहीं बनाया, बल्कि 1072 वोट भी हासिल किए हैं.

पिछले तीन दशक में तीन बार कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुए हैं. इससे पहले 2000 और 1997 में हुए पार्टी के शीर्ष पद के चुनाव लड़ने वाले कई दिग्गज नेता भी थरूर के बराबर वोट हासिल नहीं कर सके थे. 1997 में कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव हुआ था, जिसमें  सीताराम केसरी, शरद पवार और राजेश पायलट जैसे दिग्गज नेता मैदान में थे. इस चुनाव में 7,460 वैध वोट पड़े थे, जिनमें केसरी 6224, शरद पवार को 882 और राजेश पायलट को 354 वोट मिले थे.

संगठनात्मक बदलाव की वकालत
वहीं, 2000 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में सोनिया गांधी और जितेंद्र प्रसाद के बीच सीधा मुकाबला हुआ था. इसमें 7,771 वोट कुल पड़े थे, जिनमें से 229 वोट अवैध पाए गए थे. इस तरह 7542 वैध वोटों में से सोनिया गांधी को 7448 वोट मिले थे तो जितेंद्र प्रसाद जैसे नेता को महज 94 वोटों से संतोष करना पड़ा था. इस तरह से 2022 में अध्यक्ष पद के चुनाव में थरूर भले ही खड़गे को हरा नहीं पाए, लेकिन यह चुनाव उनके लिए फायदेमंद रहा.

शशि थरूर ने शरद पवार, राजेश पायलट और जितेंद्र प्रसाद जैसे नेताओं से ज्यादा वोट हासिल कर इतिहास रचा. 25 वर्ष के इतिहास में पार्टी के शीर्ष पद के लिए किसी हारे हुए उम्मीदवार का यह सबसे अच्छा प्रदर्शन है. पहली बार किसी हारे हुए उम्मीदवार को खाते में इतने ज्यादा वोट आए हैं. दूसरी तरफ थरूर ने कांग्रेस में संगठनात्मक बदलाव लाने और सुधार के कदम उठाकर उन्होंने आम कार्यकर्ताओं का ध्यान अपनी ओर खींचने में जरूर कामयाब रहे. इस तरह थरूर खुद को कांग्रेस में पहली पंक्ति के नेता के तौर पर स्थापित करने में कामयाब रहे हैं.

गांधी परिवार के लिए क्या संदेश?
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि शशि थरूर ने 1072 वोट पाकर देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के सामने एक स्ट्रॉन्ग मैजेस दिया है. यह गांधी परिवार के लिए संदेश है. मैसेज है कि पार्टी में सुधार करें, क्योंकि शशि थरूर को मिले वोट यही बता रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में थरूर को जिन लोगों ने वोट दिए हैं, उनकी मंशा कांग्रेस में बदलाव के लिए हैं. इस बात को कांग्रेस और गांधी परिवार को समझने की जरूरत है.

रशीद किदवई कहते हैं कि शशि थरूर वाकपटुता, संयुक्त राष्ट्र में अनुभव और चुनावी मैदान में सफलता के अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड के साथ विपक्ष को घेरने की क्षमता रखते हैं. कांग्रेस के हर ग्रुप में खासकर जो लोग पार्टी में बदलाव चाहते हैं, वो थरूर को पंसद करते हैं. थरूर को चुनाव में मिले वोटों कांग्रेस के अंदर बदलाव की मंशा रखने वालों की महज झलक है. कांग्रेस के कई नेता दबी जुबान से मानते हैं कि पार्टी नेताओं के वास्तविक भावनाएं शशि थरूर को मिले वोटों को दो से तीन गुना है.

कांग्रेस ने दूसरी पार्टियों के सामने पेश की नजीर
बता दें कि खड़गे-थरूर के बीच हुए चुनाव में गांधी परिवार की भूमिका पर सवाल खड़ा होता है. गांधी परिवार भले ही खुद को चुनाव में तटस्थ रहने की बात करता रहा हो, लेकिन यह बात भी सभी जानते हैं कि गांधी परिवार का समर्थन किसे प्राप्त था. खड़गे की गांधी परिवार से नजदीकियां जगजाहिर है. ऐसे में शशि थरूर को मिले एक हजार से ज्यादा वोट कहीं न कहीं गांधी परिवार के लिए संदेश है. यह बात जाहिर होता है कि थरूर को जिन लोगों ने वोट दिया है, वे लोग हैं, जो गांधी परिवार के सभी फैसले का आंख बंद करके समर्थन नहीं करते हैं.

वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर कहते हैं कि कांग्रेस ने चुनाव कराकर दूसरी पार्टियों के सामने नजीर पेश की है. इतना ही नहीं गांधी परिवार से कोई भी सदस्य चुनाव नहीं लड़ा था. शशि थरूर को इससे पहले हारे उम्मीदवारों में सबसे ज्यादा वोट इसलिए नहीं मिले हैं कि वे कोई बड़े लोकप्रिय नेता हैं. लोकप्रियता में शरद पवार, राजेश पायलट, जितेंद्र प्रसाद जैसे नेता थरूर से बहुत आगे थे. थरूर को इसलिए वोट मिले हैं, क्योंकि उनके सामने कोई सोनिया गांथी या सीताराम केसरी नहीं थे.

कांग्रेस में एक तबका था जो खड़गे के खिलाफ था, जिनकी मजबूरी में पसंद थरूर बने हैं. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या बदली हुई परिस्थितियों में राहुल गांधी के पास वीटो पावर रह पाएगा या नहीं? राहुल गांधी कांग्रेस को जिस दिशा में ले जाना चाहते थे, लेकिन नहीं कर सके. मल्लिकार्जुन खड़गे क्या उसे ले जाए पाएंगे?

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