ऋषि सुनक के ब्रिटेन का पीएम बनने से भारत में खुशी की लहर
नई दिल्ली
पिक्चर साफ है। ब्रिटेन की कमान अब ऋषि सुनक संभालेंगे। उन्होंने मंगलवार को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। वहीं, अमेरिका में दूसरे सर्वोच्च पद पर कमला हैरिस पहले से काबिज हैं। वह देश के सबसे ताकतवर मुल्क की उपराष्ट्रपति हैं। बड़ी बात यह है कि इन दोनों का भारत से सीधा कनेक्शन हैं। ऋषि सुनक की हिंदू पहचान को लेकर तो विदेशी मीडिया में चर्चाओं का बाजार गरम है। भारत में भी उनके पीएम बनने से खुशी की लहर दौड़ गई है। सुनक इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति के दामाद हैं। नारायणमूर्ति की बेटी अक्षता की सुनक से शादी हुई है। अब भारत में कई लोग एक बड़े सवाल पर चर्चा कर रहे हैं। पाकिस्तान का मीडिया भी इस पर खूब डिबेट कर रहा है। वह यह है कि क्या इन दोनों के होने से भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय मसलों पर राह आसान होगी? आइए, इस चीज को समझने की कोशिश करते हैं।
नारायण मूर्ति के दामाद के पीएम बनने का एलान होते ही भारत के कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों, केंद्रीय मंत्रियों और राजनीतिक नेताओं ने उन्हें बधाई दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उन्हें शुभकामनाएं भेजने में देर नहीं की। प्रधानमंत्री मोदी ने ऋषि सुनक को बधाई देते हुए अपनी इच्छा भी जाहिर की। उन्होंने कहा कि वह ग्लोबल मुद्दों, रोडमैप 2030 को लागू करने के लिए साथ मिलकर काम करने पर उत्सुक हैं। भारतीय मूल के ऋषि सुनक ने ब्रिटेन का नया प्रधानमंत्री बन इतिहास रच दिया है। ठीक दिवाली के दिन पेनी मॉर्डंट के दौड़ से हटने की घोषणा के बाद सुनक को कंजरवेटिव पार्टी का निर्विरोध नेता चुन लिया गया था। इसके बाद ही सुनक का पीएम बनने का रास्ता साफ हो गया था। मंगलवार को उन्होंने ब्रिटेन के पीएम पद की शपथ ग्रहण कर ली। इसके पहले जब कमला हैरिस अमेरिका की उपराष्ट्रपति बनी थीं तब भी भारत के साथ उनके कनेक्शन की खूब चर्चा हुई थी।
क्या सुनक और हैरिस से होगा भारत को फायदा?
अब ज्यादातर लोगों के मन में एक ही सवाल है। वह यह है कि क्या इन भारतवंशियों के दूसरे देशों के सर्वोच्च पदों पर आसीन होने से क्या भारत को कोई मदद मिलेगी? इसका जवाब न पूरी तरह हां है न पूरी तरह न। हर देश के अपने हित हैं। ऐसे में कोई भी सर्वोच्च नेता अपने नागरिकों के हित सबसे पहले देखेगा। सुनक हों या हैरिस वो अपने-अपने देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे में उनके कदम अपने देश के हितों को ध्यान में रखकर ही उठेंगे। दो देशों के रिश्ते किसी व्यक्ति विशेष के आने और जाने से नहीं बनते-बिगड़ते हैं। इसके लिए परस्पर विश्वास और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की जरूरत पड़ती है। दुनिया बहुत बड़ी है। इसमें सिर्फ अमेरिका और ब्रिटेन नहीं हैं। ऐसे में गद्दी पर कौन बैठा है और कौन नहीं यह मायने नहीं रखता है।
हां, यह सच है कि संवाद के स्तर पर चीजें आसान हो जाती हैं। एक कनेक्टिविटी जरूर रहती है। लेकिन, यह अपेक्षा करना कि सुनक या हैरिस अपने देश के हितों के साथ समझौता करके भारत के हित साधेंगे तो यह फिजूल है। अलबत्ता, इनके कदमों पर तो और ज्यादा नजर होगी। इन पर अपनी निष्ठा और ईमानदारी साबित करने का अतिरिक्त बोझ हो सकता है। शायद वो ऐसा कोई कदम नहीं उठाएं जो पक्षपातपूर्ण दिखे।
कैसे बदल गई है दुनिया की सोच?
वैसे भी हाल के समय में पश्चिमी मुल्कों का भारत के लिए रुख काफी बदला है। अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते अपने सर्वोच्च स्तर पर हैं। इसके पीछे किसी व्यक्ति का हाथ नहीं रहा है। यह काफी कुछ ग्लोबल स्थितियों पर निर्भर करता है। आज पूरी दुनिया में चीन विरोधी माहौल है। अमेरिका और पश्चिमी देशों को पता है कि अगर एशिया में चीन के खिलाफ कोई खड़ा हो सकता है तो वह सिर्फ भारत ही है। रूस-यूक्रेन युद्ध ने भी दुनिया को दो खेमे में बांटा है। हालांकि, भारत ने बड़ी चतुराई से इसमें से खुद को निकाल लिया है। आज अपनी कूटनीति के कारण वह ऐसी स्थिति में है जहां से वह रूसी और यूक्रेनी दोनों राष्ट्राध्यक्षों से सीधी बात कर सकता है। यह उसकी विदेश नीति की बड़ी जीत है।
कोई भी देश आपसी रिश्ते बिगाड़ना नहीं चाहता है। हालांकि, रुख में बदलाव होता रहता है। कभी पाकिस्तान अमेरिका की गोद में खेलता था। लेकिन, हाल में सालों में यह स्थिति बदली है। अफगानिस्तान में अमेरिकी फौज की शिकस्त के बाद अमेरिका ने उसके दोगुले करैक्टर को पहचान लिया है। इसी तरह चीन ने कारोबार में अमेरिकी बादशाहत को चुनौती दे दी है। दोनों के बीच ट्रेड वॉर रहा है। ऐसे में पश्चिमी मुल्कों के इंटरेस्ट भारत से ज्यादा जुड़ गए हैं। आज भारत की पूछ इसीलिए है। वह दुनिया के सबसे बड़े बाजार में से एक है। इस क्षमता को हर कोई पहचानता है। ऐसे में किसी देश का राष्ट्राध्यक्ष कोई बने, भारत से उसके रिश्ते वैसे ही बनेंगे जैसे दो देशों के बीच होते हैं।