November 26, 2024

जिससे पहले था इनकार, अब वही 1932 कैसे बन गया सीएम हेमंत का सबसे बड़ा सियासी हथियार

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रांची
 
आज का दिन झारखंड के लिए ऐतिहासिक है। हेमंत सरकार 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता परिभाषित करने का विधेयक सदन में लाने वाली है। दरअसल, बीते जनवरी माह से ही झारखंड में स्थानीयता का मुद्दा काफी चर्चित रहा है। कई संगठनों, राजनेताओं और आम लोगों ने भी इसकी मांग को लेकर लगातार आंदोलन किया है। केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई के बीच स्थानीयता विधेयक लाने को विश्लेषक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का सबसे बड़ा राजनीतिक दांव बता रहे हैं। दिलचस्प है कि इसी साल मार्च महीने में खुद मुख्यमंत्री ने ही कहा था कि 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता पारिभाषित नहीं की जा सकती।

1932 कैसे बन गया सीएम हेमंत का बड़ा सियासी दांव
आज स्थानीयता विधेयक पेश किया जा रहा है लेकिन कई लोगों के मन में सवाल होगा कि जिस खतियान आधारित स्थानीय नीति को मुख्यमंत्री ने सदन में अव्यवहारिक बताया था वो अचानक उनका सबसे बड़ा सियासी दांव कैसे बन गया? आखिर क्या बदला। कहीं केंद्रीय एजेंसियों की ताबड़तोड़ कार्रवाइयों ने सीएम हेमंत को अपनी तरकश से ये तीर निकालने को विवश तो नहीं किया। दरअसल, झारखंड में स्थानीयता का मुद्दा यहां के आदिवासियों-मूलवासियों के लिए भावनाओं से जुड़ा रहा है। शायद यही वजह भी है कि 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले जारी अपने घोषणापत्र में झामुमो ने इसका वादा किया था।

मार्च 2022 में मुख्यमंत्री ने इसे अव्यवहारिक बताया था
हालांकि, 23 मार्च 2022 को बजट सत्र के आखिरी दिन मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में साफ-साफ कहा था कि 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति नहीं लाई जा सकती। उन्होंने इसे अव्यावहारिक बता दिया। कहा कि ये तो हाईकोर्ट से ही खारिज हो जाएगा। मुख्यमंत्री ने तब विपक्ष पर हमला बोलते हुए कहा था कि विपक्ष के साथी डोमिसाइल के मुद्दे पर झारखंड में आग लगाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में 1932 के अलावा भी कई बार सर्वे सेटलमेंट हुआ है। कहीं 1975 में हुआ तो कहीं 1985 में। किसी-किसी जिले में तो 1995 में भी हुआ। हम किसे आधार मानें। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री के इस बयान पर विपक्ष ने तो निशाना साधा ही था, सत्तारूढ़ झामुमो के वरिष्ठ विधायक लोबिन हेंब्रम ने भी इसकी आलोचना की। वे घोषणापत्र का हवाला देकर अपनी ही सरकार पर हमलावर रहे। उन्होंने कई बार सार्वजनिक मंच से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर वादा-खिलाफी का आरोप लगाया। पदयात्रा की। प्रण भी लिया कि जब तक 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति लागू नहीं होगी वे घर नहीं लौटेंगे। उनके साथ इस आंदोलन में पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव भी नजर आईं। हालात ऐसे बन गए कि अगले विधानसभा चुनाव में झामुमो, लोबिन हेंब्रम को टिकट देगी इस पर ही संशय है।

क्या केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई से बदले हालात
सवाल है कि मुख्यमंत्री ने जिस 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति को अव्यावहारिक बताया था आज उसी पर राजी कैसे हो गए। कैसे उन्होंने इसे अपना सबसे बड़ा राजनीतिक हथियार बना लिया। इसके लिए आपको चलना होगा इसी वर्ष के अप्रैल महीने में। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने एक प्रेस कांफ्रेंस किया। आरोप लगाया कि हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री और खान मंत्री रहते अपने नाम से अनगड़ा में खनन पट्टा का लीज लिया। कहा कि ये ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला है। बीजेपी प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से इसकी शिकायत की और मामला चुनाव आयोग तक पहुंच गया। चुनाव आयोग में सुनवाई चली। 25 अगस्त को खबर आई कि चुनाव आयोग ने राजभवन को इस मामले में अपना मंतव्य भेज दिया है और सीएम की विधायकी रद्द करने के अनुशंसा की है। 14 सितंबर को कैबिनेट की बैठक हुई और अचानक से झारखंडी जनमानस सीएम हेमंत के पीछे लामबंद हो गया। दरअसल, इस बैठक में सरकार ने 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति को पारिभाषित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। पूरा झारखंड झूमने लगा।

 

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