September 29, 2024

शहरों में कम वोटिंग, महिलाओं ने डाले ज्यादा वोट; हिमाचल में किसके लिए शुभ संकेत

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 नई दिल्ली
 
हिमाचल प्रदेश में मतदान हो चुका है और अब सभी को 8 दिसंबर का इंतजार है, जब ईवीएम में कैद जनता का फैसला सबके सामने आएगा। राज बदलेगा या रिवाज? हिमाचल के इस सबसे बड़े सवाल का जवाब उसी दिन मिल पाएगा। फिलहाल राजनीतिक जानकार वोटिंग ट्रेंड को समझने की कोशिश में जुटे हैं। एक तरफ शहरों में कम वोटिंग और दूसरी तरफ पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का घर से अधिक निकलना, दो अहम फैक्टर साबित हो सकते हैं। राजनीतिक पंडित यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि इससे किसके लिए टेंशन बढ़ सकती है और किसके लिए शुभ संकेत हो सकता है।  

शहरों में कम निकले वोटर
हिमाचल में इस बार गांवों के मुकाबले शहरी क्षेत्रों में वोटर्स काफी कम निकले। ग्रामीण इलाकों के मुकाबले शहरी सीटों पर 8 फीसदी कम मतदान हुआ। शिमाल में तो महज 62.5 फीसदी मतदान हुआ जो यहां के सर्वाधिक रिकॉर्ड 75.6 से 13 फीसदी कम है। 2017 के मुकाबले भी यहां 1.4 फीसदी कम मतदान हुआ है। शिमला की तरह राज्य के दूसरे शहरी इलाकों में भी वोटर्स के बीच जोश कम दिखा। धर्मशाला में 70. 9 फीसदी, सोलन में 66.8 फीसदी, कसुम्पटी में 68.3 फीसदी वोटिंग दर्ज की गई। शहरी सीटों पर कुल 67.6 फीसदी मतदान हुआ।

किसको होगा नुकसान?
राजनीतिक पंडित शहरी क्षेत्रों में हुई कम वोटिंग को डिकोड करने में जुटे हुए हैं। आम तौर पर शहरी क्षेत्रों में भाजपा को अधिक मजबूत माना जाता रहा है। विश्लेषक मानते हैं कि शहरों में वोटरों के बीच मतदान को लेकर उदासीनता भाजपा के लिए नुकसान दायक हो सकता है। वहीं, कुछ दूसरे जानकार कम मतदान को अलग नजरिए से देख रहे हैं। उनका कहना है कि कम वोटिंग सत्ता के पक्ष में जाता है। शहरों में जहां सरकारी कर्मचारियों की संख्या अधिक हैं, वहां कम वोटिंग होना कांग्रेस की उम्मीदों को झटका दे सकता है। कांग्रेस को ओपीएस जैसे वादों के जरिए सत्ता में लौटने की उम्मीद है।

 

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