September 28, 2024

पेसा को लागू करने हेतू कानून में बदलाव आवश्यक

0

जबलपुर
आदिवासी क्षेत्रों में पंचायतीराज संस्थाओ को ग्रामीण आबादी की सहमति से चलाने के लिए पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम 1996 यानि पेसा कानून 24 दिसंबर 1996 को राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित होकर लागू हुआ। केन्द्र सरकार ने पांचवी अनुसूची के दस राज्यों से आशा किया था कि इस केन्द्रीय कानून के मंशा अनुरूप इसका नियम बनाएंगे।क्योंकि पंचायत राज व्यवस्था संविधान में राज्य का विषय के रूप में अधिसूचित है।मध्यप्रदेश सरकार ने 26 साल बाद इस पेसा कानून का नियम बनाया है जो स्वागत योग्य है।

आदिवासी इलाकों के लिए पेसा कानून में दो महत्वपूर्ण विषय है।पहला गांव सीमा के अंदर प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन एवं नियंत्रण ग्राम सभा करेगा दूसरा रूढ़िगत और परम्परागत तरीके से विवाद निपटाने का अधिकार ग्राम सभा को होगा। जिसमें ग्राम सभा को न्यायालय का अधिकार (विशेष परिस्थित को छोड़कर) दिया जाएगा ताकि पुलिस उन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करे।परन्तु नियम में इस प्रक्रिया की स्पष्टता नहीं है।जबकि वन विभाग भारतीय वन अधिनियम 1927 कानून के आधार पर जंगल पर नियंत्रण और प्रबंधन करता है।वन विभाग की सोच केवल टिम्बर केन्द्रित है। जबकि स्थानीय समुदाय के लिए लघुवनोपज आजीविका का मुख्य प्रमुख आधार है।इसलिए सरकार को पेसा के अनुरूप उसमें बदलाव करना होगा।दूसरा गांव अपने विवाद का निपटारा रूढ़िगत और परम्परागत तरीके से तब कर पायेगा, जब आईपीसी की धारा में बदलाव हो जाए। नहीं तो पुलिस विभाग आईपीसी की धारा के आधार पर गांव में हस्तक्षेप करेगा।इस संभावित हस्तक्षेप को रोकने के लिए राज्य सरकार को केंद्र के समक्ष यह बात रखना चाहिए।

बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के राज कुमार सिन्हा ने प्रश्न किया है कि बाजार और मुनाफा केन्द्रित विकास के दौर में यह संभव है,जहां अनुसूचित क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधन आदिवासी समाज की बजाय कार्पोरेट को सोंपने के लिए कानूनो में बदलाव किये जा रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *