कानपुर जू ने खत्म कराई शेरनियों की अपने शावक खाने की आदत, ऐसे बदला हिंसक स्वभाव
कानपुर
कई साल के अध्ययन और उसके आधार पर बदलावों ने कानपुर प्राणि उद्यान की शेरनियों की आदत बदल दी। यह शेरनियां पहले अपने ही बच्चों को खा जाती थीं। इससे शेरों का कुनबा नहीं बढ़ पा रहा था। चार साल में दो शेरनियों ने छह बच्चे जने थे, जिनमें से पांच को खुद ही मार डाला था। विशेषज्ञों ने उनके रहन-सहन में कुछ बदलाव किए तो शेरनियों में ममत्व जाग गया। अब वे बच्चे जनती हैं और भरपूर प्यार के साथ पाल रही हैं। प्राणि उद्यान की इस सफलता को जर्नल ऑफ वाइल्डलाइफ प्रिजर्वेशन सोसाइटी के नए अंक में स्थान मिला है।
ऐसे कुमाता बन गईं शेरनियां
फरवरी 2003 में हैदराबाद से गर्भवती शेरनी गौरी को चित्रा और शेर नागेश के साथ कानपुर लाया गया था। 16 मार्च 2003 को उसने दो शावकों को जन्म दिया। उसने जन्म के अगले दिन ही इन्हें अपना निवाला बना लिया। चित्रा ने 26 मार्च 2004 को दो शावकों को जन्म दिया। इनमें एक शावक मां का निवाला बन गया जबकि दूसरे को शेरनी ने दरकिनार कर दिया। दूध नहीं पिलाया और वह कमजोरी से मर गया। गौरी ने 30 जुलाई 2006 को फिर दो शावकों को जन्म दिया था। इस बार तो शावकों की झलक तक किसी को देखने को नहीं मिली। अगली सुबह जब उसे उल्टी हुई तो उसमें दोनों शावकों के अवशेष मिले।
ऐसे बदला हिंसक मांओं का स्वभाव
प्राणि उद्यान के पूर्व पशुचिकित्सक डॉ. यूसी श्रीवास्तव ने कहा कि शेरनियां शावकों को इंसानों और दूसरे जानवरों की नजरों से दूर रखना पंसद करती हैं। अगर आसपास कोई हो तो उन्हें छिपाने के लिए मुंह में रख लेती हैं। इस आदत को कैनाबोलिज्म कहते हैं। चित्रा और गौरी में कैनाबोलिज्म कृछ विकृत हो गया था। शावक को मुंह में दबाने के बाद वह उसे खा जाती थीं। उनकी यह विकृति दूर करने के लिए हमने कई साल उनके व्यवहार का अध्ययन किया। फिर कार्ययोजना बनाई गई। डॉ. आरके सिंह, डॉ. मो.नासिर और डॉ. उत्कर्ष शुक्ला की टीम ने इसके आधार पर कई बार कई तरह के बदलाव किए, तब जाकर शेरनियों का स्वभाव बदला।
यह बदलाव रहे प्रभावी
डॉ. आरके सिंह ने बताया कि पहले शेरों के बाड़े ऐसे थे कि दर्शक तीन तरफ से उन्हें देख सकते थे। सबसे पहले बाड़ों को दो तरफ बंद कर बस एक दिशा से ही दर्शकों को देखने के लिए स्थान छोड़ा गया। बाड़ों की डिजाइन बदली, क्षेत्रफल बढ़ाया गया। शेरनियों के लिए स्पेशल मैटरनिटी रूम बनाया गया। डिलीवरी के एक माह पहले से दो माह बाद तक शेरनियों को वहीं एकांतवास में रखा जाने लगा। उनकी निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए गए। कीपर भी बिना नजर में आए भोजन डालकर लौटने लगा। इन बदलावों के बाद शेरनी द्वारा बच्चों को खाने की कोई घटना नहीं हुई। शेरनियों ने दो बार शावकों को जन्म दिया। वे स्वस्थ रहे। इसे प्रतिष्ठित जर्नल के नए अंक में स्थान मिलने से टीम का उत्साह बढ़ा है।