PAK आर्मी चीफ की रेस में निकले आगे जनरल आसीम मुनीर, नवाज वाली गलती दोहरा रहे शहबाज?
इस्लामाबाद
पाकिस्तान में नये आर्मी चीफ को लेकर माथापच्ची जारी है और पाकिस्तान की सेना ने सरकार को 6 नाम भेजे हैं, जिनमें से अब शहबाज सरकार को तय करना है, कि देश का नया आर्मी चीफ कौन बनेगा। लेकिन, पाकिस्तान की राजनीति को कंट्रोल करने वाली सेना के नये अध्यक्ष को लेकर शहबाज सरकार सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रही है। खासकर प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और उनके भाई नवाज शरीफ का का मुंह आर्मी चीफ के चुनाव को लेकर ऐसा जला हुआ है, कि वो मट्ठा भी फूंक-फूंककर पीने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन, क्या जाने-अनजाने शहबाज शरीफ भी वही गलती दोहराने जा रहे हैं, जो उनके भाई नवाज शरीफ ने की थी।
नवाज शरीफ बना चुके हैं रिकॉर्ड
नवाज शरीफ पाकिस्तान के एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जो आर्मी की सबसे ज्यादा बार पसंद भी बने हैं और आर्मी ने सबसे ज्यादा नापसंद भी उन्हें ही किया है। लेकिन, सबसे ज्यादा आर्मी चीफ की नियुक्ति करने वाले नवाज शरीफ का पर्सनल अनुभव इस मामले में काफी खराब रहा है, क्योंकि उनके द्वारा चुने गये ज्यादातर आर्मी चीफ ने उन्हें ही सत्ता से बाहर कर दिया। नवाज शरीफ वो शख्स हैं, जिन्होंने परवेज मुशर्रफ को सेना प्रमुख चुना था, मगर नवाज शरीफ का ही तख्तापलट कर दिया था। लिहाजा, नवाज शरीफ अपने प्रधानमंत्री भाई की सलाहकार की भूमिका मे हैं। खास बात यह है कि, नवाज शरीफ के नाम एक और रिकॉर्ड है। देश के 15 आर्मी कमांडरों में से उन्होंने पांच की खुद नियुक्ति की थी। फिर भी, सैन्य जनरलों के साथ उनके संबंध खराब हो गये और उन्हें अपना पद बार बार गंवाना पड़ा। पिछले हफ्ते, बड़े शरीफ ने अपने छोटे भाई प्रधानमंत्री शरीफ को लंदन बुलाया था और प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों ने कहा कि, प्रमुख उम्मीदवारों के प्रोफाइल के साथ-साथ देश में राजनीतिक अराजकता पर चर्चा की गई है और माना जा रहा है, कि नये आर्मी चीफ की नियुक्ति को लेकर दोनों भाईयों में भारी माथापच्ची की जा रही है।
कौन हैं जनरल आसीम मुनीर?
इन्फैंट्रीमैन लेफ्टिनेंट जनरल असीम मुनीर वरिष्ठता की लिस्ट में जनरल बाजवा के बाद शीर्ष पर हैं। हालांकि, वह पाकिस्तान सैन्य अकादमी के ग्रेजुएट नहीं है, लेकिन वह सेना के एक फीडर स्कूल से "स्वॉर्ड ऑफ ऑनर" श्रेणी के टॉपर हैं, जिनकी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी में अच्छी खासी पकड़ है। इसके अलावा कहा जाता है, कि पूरा कुरान उन्हें याद है। पाकिस्तान के अलावा उन्होंने सऊदी अरब में भी काम किया है। लेकिन, मुनीर के सामने सबसे बड़ी दिक्कत ये है, कि वो जनरल बाजवा से भी दो दिन पहले रिटायर्ट हो रहे हैं, लिहाजा उन्हें सेना प्रमुख बनाने के लिए पहले उनके कार्यकाल को बढ़ाना होगा और इसके लिए शहबाज शरीफ को राजनीतिक पैंतरेबाजी करनी होगी और सैन्य अधिनियमों में संशोधन करना होगा।
आसीम मुनीर को लेकर खतरे
हालांकि, कुछ सैन्य अंदरूनी सूत्रों ने चेतावनी दी है, कि उन्हें नामित करने से पाकिस्तान की राजनीति में भयावह राजनीति ध्रुवीकरण होगा। वहीं, सेना पर दो किताबें लिखने वाले नवाज शरीफ ने अपनी किताब में लिखा है, कि सैन्य प्रमुख के लिए उस उम्मीदवार का नाम सबसे पहले हटा देना चाहिए, जो 'खुफिया एजेंसी आईएसआई' का डार्क हाउस हो। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा, कि क्या आसीम मुनीर पर पीएम शहबाज शरीफ दांव खेलते हैं या नहीं? जो भी सेना प्रमुख बनेगा, उसके सामने भी चुनौतियों का अंबार ही होगा, क्योंकि भारत के साथ युद्धविराम जरूर चल रहा हो, लेकिन अफगानिस्तान सीमा पूरी तरह से अशांत है। पिछले एक साल में 300 से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिक अफगानिस्तान सीमा पर मारे जा चुके हैं। 6 लाख जवानों का भी प्रमुख बनेगा, उसके सामने एक तरह इस्लामिक कट्टरपंथी चुनौती होंगे, तो दूसरी तरफ बलूचिस्तान में चीन के खिलाफ शुरू हो चुकी सीधी लड़ाई है, जिसका संबंध सीधे तौर पर चीन से जुड़ा हुआ है। इसके साथ ही देश में आए आर्थिक संकट से सेना के बजट पर भी असर पड़ा है, जिससे भी नये सेना प्रमुख को जूझना होगा।
लेफ्टिनेंट जनरल अजहर अब्बास की भी चर्चा
वहीं, आर्मी चीफ बनने के दावेदारों में एक नाम लेफ्टिनेंट जनरल अजहर अब्बास का भी है, जिन्होंने इन्फेंट्री सेना स्कूल का नेतृत्व किया है, साथ ही कश्मीर के विवादित क्षेत्र में भारत के को लेकर काम करने वाले डिवीजन और कोर का नेतृत्व किया है। उन्होंने मिर्जा के समान ही वेंचर स्टाफ और अलग अलग कमांड पोस्ट्स पर काम किया है। इसके साथ ही उन्होंने भारत के साथ हालिया संघर्ष विराम के दौरान काफी अहम भूमिका निभाई है। इसके साथ ही लेफ्टिनेंट जनरल अजहर अब्बास ने साल 2019 में भारत के साथ चौतरफा युद्ध छिड़ने की आशंका के वक्त भी अहम जिम्मेदारियां निभाई थीं। वह भी बाजवा के समान रेजिमेंट से हैं और प्रिंसिपल स्टाफ ऑफिसर रह चुके हैं। इसके साथ ही पूर्व सैन्य प्रमुख जनरल राहील शरीफ का दाहिना हाथ बनकर काम कर चुके हैं, जो फिलहाल अब 41 देशों के इस्लामी सैन्य आतंकवाद विरोधी गठबंधन की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। हालांकि, जनरल अजहर अब्बास की दावेदारी उनकी शिया पहचान कमजोर करता है और पाकिस्तानी सेना, जो शिया और सुन्नी के नाम पर बुरी तरह से बंटी है, उसमें जनरल अजहर अब्बास की स्वीकार्यता की संभावना काफी कम है।