September 22, 2024

UP: दारुल कजा ने कायम की मिसाल, 12 भाई-बहनों में बांटी करोड़ों की संपत्ति, ये था विवाद

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 कानपुर 

दारुल कजा (शरई पंचायत) ने एक अहम फैसला देकर मिसाल कायम कर दी। बंटवारे में दिक्कत होने पर शरई नियमों के अनुसार माता-पिता की करोड़ों रुपये की संपत्ति 12 भाई-बहनों में बांट दी। खास बात है कि किसी भी पक्ष से कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई। सभी ने एकमत होकर पीठ के फैसले को स्वीकार किया। मामला बेहद पेचीदा था लेकिन आसानी से हल निकल आया। 

नई सड़क स्थित दारुल कजा में ज्यादातर सुन्नी बरेलवी विचारधारा के मामले मुफ्तियों व काजियों की पीठ सुनती है। हाल ही में तलाक महल निवासी मोईन अहमद (बदला हुआ नाम) ने संपत्ति को लेकर दारुल कजा में अर्जी दाखिल की। तीन माह तक इसकी सुनवाई चली। इसके बाद मोईन के बेटे-बेटियों ने भी अर्जी दी। सुनवाई मुफ्ती रफी, मुफ्ती साकिब अदीब मिस्बाही और हाफिज सगीर आलम हबीबी व अन्य ने की।
 
एक वालिद, दो मां और 12 बच्चे
मोईन ने दो शादियां की थीं। इसमें एक पत्नी से दो बेटे और दो बेटियां हुईं, जबकि दूसरी से पांच बेटे और तीन बेटियां हैं। मोईन की दोनों पत्नियों की मौत के बाद पिता को संपत्ति के बंटवारे में दिक्कत आ रही थी। दोनों पत्नियों के बेटे अलग-अलग फॉर्मूले से संपत्ति बंटवारे के लिए दबाव डाल रहे थे। इस बीच बेटियों ने भी अपना हिस्सा (तरका) मांगना शुरू कर दिया।

महीनों सुनवाई के बाद बनी सहमति
दारुल कजा में एक मुफ्ती और दो काजियों की सुनवाई के दौरान पहले कुल संपत्ति का ब्योरा नहीं खुला। बाद में करोड़ों की विधिक प्रॉपर्टी सामने आई। पहले भाई अपनी बहनों को हिस्सा देने के लिए तैयार नहीं थे लेकिन जब इस्लामी नियमों की बात सामने आई तो उन्होंने विरोध बंद कर दिया। दारुल कजा ने संपत्ति का पूरा बंटवारा सभी 12 सदस्यों में कर दिया। नियमानुसार बेटियों को बेटों के मुकाबले शरई तौर पर आधा हिस्सा दिया गया। सभी बेटों को समान और बेटियों को एकसमान हिस्सा दिया।

शहर काजी, मुफ्ती साकिब अदीब ने कहा कि विरासत और तरका (बेटियों का हिस्सा) के मामले खूब आ रहे हैं। अच्छी बात यह है कि शरई के फैसले लोग स्वीकार कर रहे हैं। हाल ही में 12 बेटे-बेटियों के बीच बंटवारा किया गया है। नायब शहर काजी, हाफिज सगीर आलम हबीबी ने कहा कि हर रोज दो-तीन मामले ऐसे आ रहे हैं जिससे कम वक्त में बड़े फैसले हो रहे हैं। इससे झगड़े खत्म और रिश्ते मजबूत हो रहे हैं। बेवजह के खर्चों से भी सभी पक्ष बच जाते हैं।
 

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