भारतीय इकोनॉमी ने दिखाया जोश, दूसरी तिमाही में 6.3% रही जीडीपी
नई दिल्ली
आर्थिक मंदी (Global Recession) की आशंका और बढ़ती महंगाई (Inflation) के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था ने अपनी रफ्तार को बरकरार रखा है. बुधवार को आए सितंबर तिमाही के जीडीपी के आंकड़े इस बात को साबित कर रहे हैं. ताजा आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, सितंबर 2022 की तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था 6.3 फीसदी की शानदार दर से बढ़ी है. यानी दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट 6.3 फीसदी रही.
दरअसल, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी जून-2022 की तिमाही में जीडीपी का आंकड़ा 13.5 फीसदी रहा था. वहीं, पिछले वित्त वर्ष में सितंबर की तिमाही में जीडीपी की ग्रोथ 8.4 फीसदी रही थी. भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सितंबर तिमाही के आंकड़े पॉजिटिव संकेत दे रहे हैं.
भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) ने ये शानदार आंकड़े ऐसे समय दिया है, जब दुनिया की विकसित अर्थव्यवस्थाएं मुश्किलों से घिरी हैं. ब्रिटेन आर्थिक मंदी में फंस चुका है. चीन ने अपने ताजा जीडीपी के आंकड़े इसलिए नहीं जारी किए हैं, क्योंकि नेगेटिव ग्रोथ का अनुमान लगाया जा रहा है. अमेरिका में महंगाई ने लोगों को पस्त कर रखा है. आंकड़े RBI के अनुमान के मुताबिक रहे हैं.
- – रिजर्व ने बैंक दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट 6.1-6.3 फीसदी के बीच रहने का अनुमान जताया था.
- – रेटिंग एजेंसी ICRA ने दूसरी तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 6.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था.
- – भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी रिपोर्ट में वृद्धि दर 5.8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था. SBI के अनुसार चालू वित्तीय वर्ष में ओवरऑल जीडीपी 6.8 प्रतिशत रह सकती है.
- – S&P ग्लोबल रेटिंग्स ने भारत की वित्त वर्ष 2023 के GDP ग्रोथ अनुमान दर को 30 बीपीएस घटाकर 7 प्रतिशत कर दिया है.
ग्लोबल चुनौतियां बरकरार
ग्लोबल इकोनॉमी इस समय कई तरह की चुनौतियों से जूझ रही है. मंदी और महंगाई की समस्या बरकरार है. रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध से दुनियाभर में आर्थिक तौर पर इसका असर पड़ा है. आपूर्ति चेन यानी की सप्लाई चेन में काफी दिक्कतें आई हैं. इस बीच महंगाई पर अपने चरम पर है. अमेरिका में महंगाई को काबू में करने के लिए लगातार ब्याज दरों में बढ़ोतरी का फैसला लिया जा रहा है. हालांकि भारत को महंगाई के मोर्चे पर थोड़ी राहत जरूर मिली है. खुदरा मुद्रास्फीति पिछले 3 महीने के निचले स्तर 6.7 फीसदी पर आ गई है. जबकि थोक मुद्रास्फीति पिछले महीने 19 महीने के निचले स्तर 8.39 फीसदी पर थी.
Fiscal Deficit में इजाफा
वहीं सरकार का राजकोषीय घाटा में तेज इजाफा हुआ है. अप्रैल-अक्टूबर 2022 के दौरान राजकोषीय घाटा बढ़कर 7.58 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो पूरे वित्त वर्ष के टारगेट का 45.6% है. सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल-अक्टूबर, 2021 में राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 22 के टारगेट का 36.3 फीसदी रहा था, यानी पिछले वित्त वर्ष के शुरुआती 7 महीने में यह 5.47 लाख करोड़ रुपये रहा था. इस प्रकार, चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से अक्टूबर के दौरान राजकोषीय घाटा सालाना आधार पर 39 फीसदी ज्यादा है. केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष-2023 के लिए 16.61 लाख करोड़ रुपये या जीडीपी (GDP) के 6.4 फीसदी राजकोषीय घाटे का लक्ष्य तय किया है.
जानिए क्या है GDP?
किसी देश की सीमा में एक निर्धारित समय के भीतर तैयार सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक या बाजार मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कहते हैं. यह किसी देश के घरेलू उत्पादन का व्यापक मापन होता है और इससे किसी देश की अर्थव्यवस्था की सेहत पता चलती है. अधिकतर देशों में इसकी गणना सालाना होती है. लेकिन भारत में इसे हर तीन महीने यानी तिमाही में आंका जाता है. कुछ साल पहले इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग और कंप्यूटर जैसी अलग-अलग सेवाओं यानी सर्विस सेक्टर को भी जोड़ दिया गया.
कौन तय करता है GDP
जीडीपी को नापने की जिम्मेदारी सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के तहत आने वाले सेंट्रल स्टेटिस्टिक्स ऑफिस यानी केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय की है. यह ऑफिस ही पूरे देश से आंकड़े को जमा करता है और उनकी कैलकुलेशन कर GDP का आंकड़ा जारी करता है. जीडीपी दो तरह की होती है- नॉमिनल जीडीपी और रियल जीडीपी. नॉमिनल जीडीपी सभी आंकड़ों का मौजूदा कीमतों पर योग होता है, लेकिन रियल जीडीपी में महंगाई के असर को भी समायोजित कर लिया जाता है.