दरकेगा “समाजवाद” का किला या खाली हाथ लौटेगी BJP
मैनपुरी
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) का सब कुछ दांव लगा हुआ है जबकि बीजेपी (Bhartiya Janta Party) के लिए इस सीट पर खोने के लिए कुछ नहीं है। यहां पर शनिवार को चुनाव प्रचार का शोर थम गया। सोमवार को यहां के करीब 6 लाख मतदाता डिंपल यादव की राजनीतिक किस्मत का फैसला करेंगे। एक तरफ बीजेपी इस बार इस सीट को जीतने के लिए पुरी तरह से जोर लगाया है वहीं दूसरी ओर अखिलेश यादव और सपा ने इस चुनाव को यह कहकर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की है कि यह चुनाव अगर डिंपल यादव जीतीं तो सही मायने में मुलायम सिंह यादव को श्रद्धांजलि होगी।
बीजेपी-सपा ने प्रचार में झोंकी पूरी ताकत
दरअसल पूरे प्रचार अभियान पर गौर करें तो सीएम योगी से लेकर कई दिग्गज नेताओं ने इस लोकसभा सीट पर प्रचार किया। सीएम का पूरा फोकस सुशासन और परिवारवाद पर ही रहा। सीएम ने प्रचार के दौरान कहा कि मैनपुरी को समाजवाद की नहीं रामराज्य की जरूरत है। वहीं अखिलेश यादव ने भी बीजेपी की हर चालों का करारा जवाब दिया है और वह मैनपुरी में सपा की जीत को लेकर आवश्वस्त हैं। यह चुनाव चाचा-भतीजे की एकजुटता के लिए भी जाना जाएगा क्योंकि लंबे समय से अखिलेश-शिवपाल के बीच रिश्तों में खटास चल रही थी।
यादव बाहुल्य सीट पर शाक्य बिगाड़ सकते हैं समीकरण
मैनपुरी चूंकि यादव बाहुल्य सीट है। यहां सबसे ज्यादा वोटर यादव हैं और उसके बाद शाक्य का नंबर आता है। इसकी अहमियत को समझते हुए अखिलेश ने चुनाव शुरू होते ही मैनपुरी में शाक्य विरादरी के एक नेता को यहां की जिम्मेदारी सौंपी थी। इस सीट पर बीजेपी उम्मीदवार और सपा के पूर्व सांसद रघुराज सिंह शाक्य और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव के बीच मुकाबला है। इससे पहले डिंपल के लिए यह उपचुनाव आसान माना जा रहा था। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी ने दिग्गज नेता रघुराज सिंह शाक्य को मैदान में उतार कर चुनाव पूर्व सभी भविष्यवाणियों को बदल दिया।
यादव बनाम शाक्य के बीच दलित मतदाता होंगे अहम
इस सीट पर दोनों पार्टियों की निगाहें दलित मतदाताओं पर हैं। यादवों और शाक्यों के बीच लड़ाई में असली भूमिका इस सीट पर दलित मतदाता ही निभाएगा। यहां करीब डेढ़ लाख जाटव मतदाता हैं जो अहम भूमिका निभाएंगे। हालांकि रामपुर में आजम के मंच पर दलित नेता चंद्रशेखर को लाकर इस बिरादरी के बीच एक संदेश देने का प्रयास किया गया। मैनपुरी सीट के समीकरण पर गहरी नजर रखने वालें राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो इस बार यहां की लड़ाई यादव और गैरयादव के बीच दिखाई पड़ रही है। यदि ऐसा रहा तो ये अखिलेश के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है।
सपा की हार-जीत तय करेगी अखिलेश-शिवपाल के रिश्तों की दिशा
मैनपुरी का लोकसभा उपचुनाव में अखिलेश-शिवपाल के रिश्तों की भी परीक्षा होगी। जिस तरह से शिवपाल ने बीजेपी की नाराजगी मोल लेकर अखिलेश और डिंपल का साथ दिया है उससे यही लग रहा है कि आने वाले दिनों में भी शिवपाल अब सपा के खेमे में ही रहेंगे। शिवपाल ने प्रचार के दौरान कई मौकों पर यह बयान भी दिया कि अब वह परिवार छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। लेकिन दूसरी ही तरफ उन्होंने बहु डिंपल यादव को आगाह भी किया कि अब आगे यदि अखिलेश कोई गलती करते हैं तो जिम्मेदारी डिंपल की होगी। सूत्रों की माने तो अखिलेश-शिवपाल के बीच राजनीतिक भविष्य को लेकर कोई बड़ी डील हो चुकी है जिससे ये दोनों एक दूसरे के प्रति समर्पित दिख रहे हैं।
योगी समेत सभी वरिष्ठ नेताओं ने किया मैनुपरी में प्रचार
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मैनपुरी में प्रचार करने और दो सभाओं को संबोधित करने से गर्मी का पारा काफी बढ़ गया। सपा के पारंपरिक गढ़ में लड़ने के लिए भाजपा ने विधायकों और मंत्रियों की फौज तैनात कर दी थी। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक ने मैनपुरी में दो दिनों तक कई सभाओं को भी संबोधित किया. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह और महासचिव (संगठन) धर्मपाल सिंह ने मतदाताओं को रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।