मुआवजा न लेने पर भू-अधिग्रहण को रद्द करना गलत, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहीं ये बड़ी बातें
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने पुराने कानून के तहत भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई के मामलों में संशय के बादल हटाते हुए हाईकोर्ट के 10 से ज्यादा फैसलों को निरस्त कर दिया है। हाईकोर्ट ने 1894 के पुराने कानून के तहत ली गई भूमि के मामलों में अधिग्रहण की कार्रवाई को समाप्त कर दिया था और नए कानून (2013) के तहत बढ़ा हुआ मुआवजा देने के आदेश दिए थे। दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दस एसएलपी दायर कर हाईकोर्ट के आदेशों को चुनौती दी थी। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ के समक्ष शुक्रवार को सुनवाई हुई।
अलग-अलग मामले : इन सभी मामलों में कहीं मुआवजा नहीं उठाया गया था, कहीं मुआवजा दिया गया था तो स्वीकार नहीं किया गया था। कहीं मामला पांच साल से कोर्ट में लंबित था, कहीं मुआवजा कोर्ट में जमा था लेकिन किसान ने उसे नहीं उठाया था। कहीं मुआवजा बढ़ाने की कार्रवाई कोर्ट में लंबित थी, तो कहीं सरकार ने भूमि का कब्जा लिया था। कहीं कब्जा ले लिया पर मुआवजा नहीं दिया था।
संविधान पीठ ने कहा था कि नए कानून की धारा 24(2) के तहत यदि मामला उपरोक्त में से कोई है तो उसको समाप्त मानकर नए कानून के तहत फिर से अधिग्रहण किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ की व्यवस्था आने के बावजूद हाईकोर्ट की ओर से इन मामलों को विचारित कर रहा है। यह सही नहीं है उसे नया फैसला लागू करना चाहिए।
‘दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसले में गलती की’
पुराने कानून के तहत भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई के मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने इसमें गलती की है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ के समक्ष ये मामले शुक्रवार को आए थे। राज्य सरकार ने दस एसएलपी दायर की थीं और हाईकोर्ट के आदेशों को चुनौती दी थी। पीठ ने मामलों की सुनवाई की। कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट ने इन मामलों में गलती की है कि उसने पुणे म्यूनिसिपल कारपोरेशन तथा अन्य बनाम हरकचंद्र मिश्रीलाल सोलंकी आदि (2014) के फैसले में दी गई व्यवस्था को देखा और घोषित कर दिया कि 1894 के कानून के भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई 2013 के कानून की धारा 24(2) के तहत लेप्स हो गई है क्योंकि भूस्वामी को मुआवजा नहीं दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संविधान पीठ की व्यवस्था आने के बावजूद हाईकोर्ट इन मामलों को विचारित कर रहा है, यह सही नहीं है उसे नया फैसला लागू करना चाहिए।