September 24, 2024

1971 के भारत-पाक युद्ध में जब नौसेना ने की थी सर्जिकल स्ट्राइक, राख हो गया था कराची बंदरगाह

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नई दिल्ली
वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में पड़ोसी मुल्क को मुंह की खानी पड़ी थी। पाक के दो टुकड़े कर बांग्लादेश बनाने में नौसेना ने एक बड़ी भूमिका निभाई थी। लेकिन इस जंग में आज का दिन यानी 4 दिसंबर नौसेना के लिए काफी अहम है। देशभर में आज नौसेना दिवस मनाया जाता है, जिसके चलते आज नौसेना की ओर से कई वीडियो भी जारी किए गए। बता दें कि इसी दिन नौसेना ने पाकिस्तान के कराची बंदरगाह में सर्जिकल स्ट्राइक की थी। इस स्ट्राइक को 'ऑपरेशन ट्राइडेंट' के रूप में भी जाना जाता है। आइए जानें इसकी पूरी कहानी..

हिंदुओं के नरसंहार से शुरू हुई थी जंग की दास्तां
1971 में बांग्लादेश जो पहले पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था, वहां हिंदुओं के खिलाफ एकाएक अत्याचार की घटनाए बढ़ने लगी थी। कई रिपोर्टों के अनुसार वहां लाखों लोग मारे गए थे और महिलाओं से दुष्कर्म आदि के मामलों में बड़ा इजाफा देखने को मिला था। इन्हीं सब को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई का फैसला किया। इस बीच पाकिस्तान में बांग्लादेश की आजादी की आवाज तेज हो जाती है भारत के इसमें कूदते ही पाक खुद ही जंग छेड़ देता है और 3 दिसंबर 1971 को भारत में हवाई हमले करता है। जिसके जवाब में 4 दिसंबर की रात भारतीय नौसेना कराची बंदरगाह पर सर्जिकल स्ट्राइक कर उसे तबाह कर देती है। इस अभियान को ‘आपरेशन ट्राइडेंट’ के नाम से जाना जाता है।
 
1965 का लिया बदला
भारतीय नौसेना 1965 में हुए भारत पाक युद्ध में पाकिस्तान ने अपनी नौसेना और युद्धपोत का इस्तेमाल कर गुजरात में हमला किया था। हालांकि, इसमें भारत को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। लेकिन पाक को मुंहतोड़ जवाब देने से उस समय नौसेना चूक गई क्योंकि उसे इसमें भाग ही नहीं लेने दिया गया। तब उसे रणनीति के तहत भारतीय सीमा के बाहर कोई कार्रवाई न करने का आदेश दिया गया था। इसी को देखते हुए 1971 की लड़ाई में नेवी चीफ एडमिरल एसएम नंदा ने पहले ही इंदिरा गांधी से छूट मांग ली थी, जिसके मिलते ही कराची बंदरगाह धुंआ-धुंआ हो गया।
 
इस जंग में पाक ने अपनी सबसे शक्तिशाली सबमरीन गाजी को दो मोर्चों को संभालने का जिमा सौंपा था। जिसमें विशाखापट्टनम पर हमला कर उस पर कब्‍जा करना और आईएनएस विक्रांत को नष्‍ट करना शामिल था। लेकिन भारतीय नौसेना को इसकी जानकारी जैसे ही मिली उनसे धावा बोल दिया और 7 दिनों तक कराची बंदरगाह जलता रहा।

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