मशहूर फ्रैंच लेखक डॉमिनिक लैपियर का निधन, भारत की आजादी और विभाजन पर लिखी थी ‘फ्रीडम ऑफ मिडनाइट’ बुक
नई दिल्ली
मशहूर फ्रैंच लेखक डॉमिनिक लैपियर का 91 साल की उम्र में निधन हो गया है। उन्होंने कई ऐतिहासिक घटनाओं को पुस्तकों में पिरोया, जिसने दुनियाभर में सुर्खियां बटोरी। उन्होंने भारत की आजादी और विभाजन पर आधारित 'फ्रीडम ऑफ मिडनाइट' बुक लिखी थी। उनके साथ सह लेखक के तौर पर हेनरी कॉलिंस भी थे। यह पुस्तक भारत की आजादी एवं विभाजन की विभीषीका का इतिहास बताने वाली प्रामाणिक पुस्तकों में शुमार की जाती है। इसके अलावा कोलकाता के एक रिक्शा चालक की जिंदगी पर आधारित पुस्तक 'सिटी ऑफ जॉय' भी काफी फेमस रही है।
30 जुलाई 1931 को फ्रांस के चैटेलिलॉन शहर में जन्मे डॉमिनिक लैपियर फ्रांस के मशहूर लेखक थे। उनकी पत्नी ने फ्रांसीसी समाचार पत्र वार-मतिन को बताया कि 91 साल की उम्र में उनका निधन हो गया है। सह लेखक लैरी कॉलिंस के साथ उन्होंने भारत की आजादी और विभाजन पर आधारित पुस्तक लिखी थी। 'फ्रीडम ऑफ मिडनाइट' नाम की इस पुस्तक ने दुनियाभर में सुर्खियां बटोरी थी। यह पुस्तक भारत की आजादी एवं विभाजन का इतिहास बताने वाली प्रामाणिक पुस्तकों में शुमार की जाती है। कॉलिंस के साथ अन्य संयुक्त रूप से लिखी अन्य पांच पुस्तकों में उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक थी 'इज पेरिस बर्निंग?' दोनों की 6 पुस्तकों की लगभग 50 मिलियन प्रतियां सेल हुई थी।
फ्रीडम ऑफ मिडनाइट
‘फ्रीडम ऑफ मिडनाइट’ लैपियर और कॉलिन्स की विश्व प्रसिद्ध किताब है। इसका पहला संस्करण 1975 में प्रकाशित हुआ था। तत्कालीन गवर्नर जनरल लुई माउंटबेटन इस बुक के नायक के तौर पर पेश किये गए हैं और पूरी कहानी उन्हीं के इर्द गिर्द घूमती है। आखिरी के कुछ चैप्टर्स में सांप्रदायिक दंगों पर महात्मा गांधी के शांति के उपदेशों का भी जिक्र है। बुक में लेखक के अनुसार, अंतिम वायसराय के रूप में माउंटबेटन का रुझान बंटवारे के खिलाफ था और अगर उन्हें इस बात का पता चल गया होता कि जिन्ना सिर्फ कुछ महीनों के मेहमान है तो माउंटबेटन बंटवारे के बजाय जिन्ना की मौत तक इंतजार करते। हालांकि ये बात सिर्फ जिन्ना के हिंदू डॉक्टर को पता थी, जिसने अपने मरीज के साथ विश्वासघात नहीं किया। हालांकि किताब में इस बात का जिक्र नहीं मिलता कि जिन्ना ने उसे कभी खास निर्देश दिया हो कि वो इस बात को किसी और से छिपाए।
'इज पेरिस बर्निंग?' में नाजी जर्मन की दास्तां
1965 में प्रकाशित नॉन-फिक्शन बुक 'इज पेरिस बर्निंग?' में लैपियर और उनके सह लेखर कॉलिन्स ने अगस्त 1944 तक की घटनाओं को आगे बढ़ाया। जब नाजी जर्मनी ने फ्रांसीसी राजधानी का नियंत्रण छोड़ दिया था।
'सिटी ऑफ जॉय' में कोलकाता के रिक्शेवाले की कहानी
लैपियर के एक और उपन्यास "सिटी ऑफ़ जॉय" का प्रकाशन 1985 में हुआ था। यह बुक कोलकाता में एक रिक्शा चालक की कठिनाइयों के बारे में बताती है। इस पर आधारित एक फिल्म 1992 में रिलीज हुई थी। जिसमें पैट्रिक स्वेज ने अभिनय किया। फिल्म का निर्देशन रोलैंड जोफ द्वारा किया गया था। लैपियर ने भारत में मानवीय संवेदनाओं का समर्थन करने के लिए "सिटी ऑफ जॉय" से अपनी रॉयल्टी का बड़ा हिस्सा दान किया था।