September 24, 2024

बाबरी के 30 साल, जब कल्याण सिंह ने लिखा था सिर्फ एक लाइन का इस्तीफा

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 अयोध्या 

अयोध्या आज एकदम शांत है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सदियों पुराना विवाद खत्म हो गया है। आज वही दिन है जब 30 साल पहले उन्मादित भीड़ ने बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को ढहा दिया था। अब स्थिति एकदम बदल गई है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आज अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है। इसके अलावा राम की नगरी को पर्यटन के लिहाज से भी तैयार किया जा रहा है। एक समय था जब अयोध्या अशांति और विवाद का घर हो गई थी। आइए जानते हैं कि आखिर 6 दिसंबर 1992 की उस दोपहर को क्या हुआ था? विवादित ढांचा जिस दिन गिराया गया उस दिन एक समुदाय काला दिवस मनाने का ऐलान कर चुका था तो दूसरा गुट शौर्य दिवस। हालांकि विवाद खत्म होने के बाद इन दोनों ही दिवसों का कोई महत्व नहीं रह जाता है। अगर महत्व है तो केवल इस बात का कि आपसी भाईचारा ही प्रगति और विकास का मार्ग प्रसस्त कर सकता है। विवाद सदियों चलते हैं, हजारों लोग मारे जाते हैं लेकिन इससे किसी का भला नहीं होता। 

जन सैलाब से पट गई थी अयोध्या
लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक 6 दिसंबर से एक दिन पहले ही पूरा प्लान तैयार कर लिया गया था औऱ मस्जिद को ढहाने का अभ्यास भी किया गया था। इसकी कई तस्वीरें भी सामने आई थीं। रिपोर्ट में कहा गया कि एन पहले ही सरयू के जल और बालू से सांकेतिक मंदिर निर्माण का कार्य किया गया। 6 दिसंबर 1992 की सुबह से ही आसमान धूल से ढक गया था।  पूरी अयोध्या में जन सैलाब उमड़ आया था। इस सैलाब का हर शख्स जोश में था। नारे लगाए जा रहे थे, 'राम लला हम आएँगे, मंदिर वहीं बनाएंगे', एक धक्का और दो…। 

मंच पर मौजूद थे बड़े नेता
कार सेवक विवादित स्थल में घुस गए। उनके हाथ में बल्लम, कुदाल, छेनी-हथौड़ा और गैती जैसे हथियार थे। यह सब इतनी जल्दी हुआ कि केंद्र कीनरसिंह राव सरकार औऱ कल्याण सिंह सरकार बस देखते ही रह गए। उधर 6 दिसंबर को भाजपा, आरएसएस औऱ विश्व हिंदू परिषद के नेता भी पहुंच चुके थे। विवादित स्थल से थोड़ी ही दूर पर मंच लगाया गया था जिसपर एलके आडवाणी, मुरलीमनोहर जोशी, उमा भारती, कलराज मिश्र, रामचंद्र परमहंस और अशोक सिंहल मौजूद थे। 

फैजाबाद के डीएम और पुलिस अधीक्षक मौजूद थे। सुबह से पूजा-पाठ चल रहा था। बाताया जाता है था कि विहिप का प्लान केवल जन्मभूमि में साफ-सफाई करने का था। डीएम और पुलिस अधीक्षक जन्मभूमि परिसर में भी गए लेकिन तब माहौल एकदम शांत था। कोई अंदाजा नहीं लगा सकता था कि थोड़ी देर बाद क्या होने वाला है। अधिकारियों के दौरे के बाद ही माहौल बदलने लगा। अचानक भीड़ परिसर में दाखिल होने लगी। अधिकारी भी भौचक्का रह गए। तभी मंच से अशोक सिंहल ने कहा कि उनकी सभा में कुछ अराजक तत्व घुस गए हैं। बहुत ही कम सयम में औजरों के साथ भीड़ चारों ओर से गुंबद पर चढ़ने लगी। इसके बाद गैती, कुदाल, छेन-हथौड़े गुंबद पर चलने लगे। इसी बीच संघ कार्यकर्ताओं के साथ झड़प और छीना-झपटी भी हुई। मंच से लगातार अपील की जा रही थी कि गैरकानूनी काम ना करें। लेकिन उन्मादित भीड़ ने कुछ ही क्षणों में ढांचा धराशायी कर दिया। 

कल्याण सिंह ने पहले ही केंद्र को दी थी धमकी
तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने केंद्र की नरसिंह राव सरकार से स्पष्ट कह दिया था कि अगर ढांचे को कब्जे में लिया गया या फिर राष्ट्रपति शासन लगाया गया तो सुरक्षा की गारंटी वह नहीं ले पाएंगे। राज्य सरकार ने हाई कोर्ट और सु्प्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने का भरोसा भी जताया था। हालांकि गंबुद गिरने के बाद जब अर्धसैनिक बलों ने कार्रवाई की कोशिश की तो उनपर पत्थर बरसाए गए। इसके बाद कल्याण सिंह ने घटना की जिम्मेदारी ली और एक लाइन में ही अपना इस्तीफा लिख दिया। उन्होंने लिखा, 'मैं मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे रहा हूं, कृपया स्वीकार करिए।'  उसके बाद दशकों तक राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का मुद्दा राजनीतिक गलियारों में चक्कर काटता रहा और आपसी सौहार्द के बीच कांटे बोता रहा। 
 

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