जो अपने ही राज्य में पार्टी पर थे भारी, उन्हें कांग्रेस ने बनाया दूसरे राज्यों का प्रभारी
नई दिल्ली
नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की पहली संचालन समिति की बैठक के बाद कांग्रेस में हलचल तेज है। पार्टी ने राजस्थान, हरियाणा और छत्तीसगढ़ में प्रभारियों को बदलने का फैसला किया है। खास बात है कि इनमें से दो राज्यों में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं और यहां कांग्रेस में आंतरिक तनाव की खबरें भी ताजा बनी हुई हैं। यहां जिक्र छत्तीसगढ़ और राजस्थान कांग्रेस का हो रहा है। स्थिति को विस्तार से समझते हैं।
इन्हें मिली नई जिम्मेदारियां
ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने सोमवार को जानकारी दी कि कुमारी शैलजा को छत्तीसगढ़ का प्रभारी महासचिव बनाया गया है। उन्होंने पीएल पुनिया की जगह ली। सुखजिंदर सिंह रंधावा राजस्थान के प्रभारी होंगे। इससे पहले यह जिम्मा अजय माकन के पास था। वहीं, शक्तिसिंह गोहिल दिल्ली के साथ अब हरियाणा के प्रभारी की भी जिम्मेदारियां संभालेंगे। अब तक यह काम विवेक बंसल देख रहे थे।
जो पड़े भारी उन्हें बनाया प्रभारी?
हरियाणा से शुरू करते हैं, क्योंकि यहां दो बदलाव हुए हैं। पहला तो शैलजा राज्य से बाहर गईं और बंसल से जिम्मा छीना गया। अब हरियाणा कांग्रेस की पूर्व प्रमुख शैलजा और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच तनातनी की खबरें आती रही हैं। हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख के चुनाव को लेकर दोनों के बीच दरारें और बढ़ती नजर आई। दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद हुड्डा उनसे मुलाकात करने पहुंचे थे। इसे लेकर शैलजा ने मोर्चा खोल दिया था और पार्टी आलाकमान से शिकायत की थी। कहा जा रहा था कि साल की शुरुआत के दौरान ही दोनों नेताओं में खींचतान तेज हो गई थी। हरियाणा कांग्रेस को दो गुटों में बंटा माना जाने लगा था। एक ओर जहां हुड्डा को पार्टी के 31 विधायकों और कई पूर्व सांसदों का समर्थन हासिल था। वहीं, शैलजा को पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी का करीबी माना जाता है।
बंसल के मामले में कहा जा रहा है कि गोहिल को हरियाणा का प्रभारी बनाने की बड़ी वजह राज्यसभा चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग रही है। उस दौरान अजय माकन को हार का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा हुड्डा और बंसल के बीच भी संबंध ठीक नहीं रहे। खबरें थी कि माकन और हुड्डा दोनों ही बंसल के काम करने के तरीके से नाराज चल रहे थे। आदमपुर और ऐलनाबाद उपचुनाव में पार्टी की हार भी उनके बाहर जाने की बड़ी वजह बनी।
राजस्थान के प्रभारी महासचिव बनाए गए रंधावा पंजाब में कांग्रेस की करारी हार के बाद से ही नाराज चल रहे हैं। वह पंजाब कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू पर खुलकर निशाना साधते नजर आए। जनवरी में उन्होंने यह तक कह दिया था कि पंजाब का गृहमंत्री बनने के बाद से ही सिद्धू उनसे नाराज हैं और वह चाहें तो पद छोड़ने के लिए तैयार हैं। 2022 विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने रिकॉर्ड सीटें जीतकर कांग्रेस से सत्ता छीन ली थी। तब से ही कुछ समय के लिए मुख्यमंत्री बनाए गए चरणजीत सिंह चन्नी सियासी तस्वीर से गायब हैं।
डेरा बाबा नायक से अपनी सीट बचाने वाले रंधावा ने बगैर नाम लिए पूर्व क्रिकेटर और पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रमुख सुनील जाखड़ पर निशाना साधा था। उन्होंने कहा था, 'ठोको ताली ने कांग्रेस ठोक दित्ती। जाखड़ ने आग में यह कहकर मिट्टी का तेल डाल दिया कि कांग्रेस ने उन्हें इसलिए मुख्यमंत्री नहीं बनाया, क्योंकि वह हिंदू हैं।'
सुलग रहे हैं दोनों राज्य?
अपने-अपने राज्यों में दिग्गजों पर भारी पड़े नेताओं को सौंपे गए राज्य भी आंतरिक राजनीति से सुलग रहे हैं। सिद्धू बनाम कैप्टन अमरिंदर सिंह देखकर गए रंधावा को राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट की खींचतान का सामना करना होगा। जबकि, शैलजा को छत्तीसगढ़ का जिम्मा सौंपा गया है, जहां स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बीच भी सब ठीक नहीं है।
छत्तीसगढ़ का ताजा मामला अक्टूबर का है। उस दौरान देव के समर्थक माने जाने नेता को जशपुर जिले में कथित तौर पर भाषण के बीच में ही रोक दिया गया। AICC प्रभारी सप्तगिरी उलाका भी कार्यक्रम में मौजूद रहे थे। कथित घटना का वीडियो भी वायरल हुआ था, जिसमें जशपुर कांग्रेस अध्यक्ष पवन अग्रवाल मंच से भाषण दे रहे थे। तब एक अन्य नेता इफ्तिकार हसन ने माइक छीनने की कोशिश की और अग्रवाल को पीछे कर दिया। एक रिपोर्ट के अनुसार, अग्रवाल का कहना था जब उन्होंने देव को सीएम बनाने में देरी का मुद्दा उठाया, तो हसन ने कथित तौर पर उनके साथ बदसलूकी की थी।