भ्रष्टाचार का खुलासा: कोरोना जांच किट खरीदी में करोडो का घोटाला
रायपुर
छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कारपोरेशन (सीजीएमएससी) द्वारा कोरोना जांच किट की खरीदी में बड़ा भ्रष्टाचार सामने आया है। महालेखाकार की आडिट रिपोर्ट के अनुसार निविदा प्रक्रिया के विरुद्ध 46 करोड़ की किट को 79.98 करोड़ में खरीदा गया है। 36 रुपये प्रति किट की दर से मिलने वाली नौ करोड़ की एंटिजन किट को 89 रुपये की दर से करीब 23 करोड़ में खरीदा गया। वहीं 933 रुपये की दर से मिलने वाली 46 करोड़ की ट्रूनेट कांबो किट की 1120 रुपये प्रति किट की दर से 56 करोड़ रुपये में खरीदी की गई। हद तो यह है कि इस मामले की अब तक जांच नहीं की गई है।
आडिट रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य विभाग ने वर्ष 2020 में पांच लाख ट्रूनेट कांबो किट के लिए सीजीएमएससी को मांगपत्र भेजा। ट्रूनेट कांबो किट के लिए एजेंसियों से प्रस्ताव मांगा गया। इसमें एक एजेंसी ने निविदा प्रक्रिया पूरी करते हुए 933 रुपये प्रति किट की पेशकश की। इसे दरकिनार करते हुए वर्चुओसो मेडिको इंफ्राटेक से 1120 रुपये प्रति किट की दर से 56 करोड़ रुपये की खरीदी कर ली गई। इससे स्वास्थ्य विभाग को करीब 10 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इसी तरह पीडी इंटरप्राइजेस से 13.85 करोड़ रुपये और बिना अनुभव वाले यूनिटी हेल्थ केयर कंपनी से निविदा प्रक्रिया के विरुद्ध सीधे 9.13 करोड़ रुपये के रैपिड एंटिजन किट की खरीदी कर ली गई। इस तरह 36 रुपये की किट को 89 रुपये की दर से खरीदी में विभाग को करीब 14 करोड़ रुपये का नुकसान झेलना पड़ा। इस मामले में सीजीएमएससी के तत्कालीन एमडी कार्तिकेय गोयल ने स्वयं को अधिकृत न बताते हुए कुछ भी कहने से इन्कार कर दिया है। वहीं सीजीएमएससी के एमडी अभिजीत सिंह ने भी कोई जवाब नहीं दिया।
460.48 करोड़ रुपये का नहीं कर पाए उपयोग
आडिट रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार ने आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए इमरजेंसी रिस्पांस सिस्टम प्रीपेड नेट पैकेज (इआरसीपी) के अंतर्गत जनवरी 2020 और मार्च 2022 के बीच दो चरणों में 788.69 करोड़ रुपये प्रदान किए थे। इसमें से राज्य का स्वास्थ्य विभाग दवा, उपकरण समेत अन्य खरीदी में 328.21 करोड़ रुपये का ही उपयोग कर पाया। तय समय सीमा मार्च 2022 तक 460.48 करोड़ रुपये का उपयोग विभाग नहीं कर पाया।
दवा खरीदी व निगरानी के सिस्टम फेल
आडिट रिपोर्ट में सीजीएमएससी की प्रत्येक खरीदी व उसमें हो रहे भ्रष्टाचार को लेकर महालेखाकर ने कड़ी टिप्पणी की है। उन्होंने कहा है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की गाइडलाइन के अनुसार सभी निविदाएं जेम पोर्टल के माध्यम से की जानी थीं, लेकिन रिपोर्ट में पाया गया कि इस प्रकार का कोई तंत्र खरीदी के लिए विकसित ही नहीं किया गया। सारी खरीदी जेम पोर्टल के बाहर से ही कर ली गई।