सूचना आयोग का आवेदकों को जानकारी देने से इंकार, हाईकोर्ट ने सूचना आयोग पर जुर्माना लगाया
भोपाल
मध्यप्रदेश में सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी नहीं मिलने पर राज्य सूचना आयोग में अपील में आए आवेदकों को जानकारी देने से इंकार करने के फैसले को गलत ठहराते हुए हाईकोर्ट ने इसके लिए सूचना आयोग पर जुर्माना लगाया है। आयोग ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करने की अनुमति मांगी थी लेकिन सामान्य प्रशासन विभाग ने इसके लिए मंजूरी नहीं दी है।
राज्य सूचना आयोग के निर्णय को लेकर आवेदकों के हाईकोर्ट में अपील किए जाने और हाईकोर्ट द्वारा इन मामलों में सूचना आयोग के फैसलों को उचित नहीं बताते हुए जुर्माना लगाए जाने से सूचना आयोग की किरकिरी हो रही है। सूत्रों के मुताबिक हाईकोर्ट के जिन फैसलों में पच्चीस हजार रुपए से अधिक जुर्माना लगाया जाता है उन्हीं मामलों में राज्य सरकार सरकारी महकमों को सुप्रीम कोर्ट में अपील की अनुमति देती है। चूंकि इन दोनो मामलों में दो हजार और पांच हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया है इसलिए सामान्य प्रशासन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी लगाने की अनुमति नहीं दी है।
फीस तीस हजार रुपए
मुख्य सूचना आयुक्त हाईकोर्ट के इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चेलेंज करना चाहते थे। चूंकि इस मामले में वकील की फीस तीस हजार रुपए प्रति प्रकरण है। इसलिए राज्य सूचना आयोग ने सामान्य प्रशासन विभाग से इसकी अनुमति मांगी है। सामान्य प्रशासन विभाग ने इस मामले में विधि विभाग से परामर्श मांगा था लेकिन विधि विभाग ने यह कहा कि राज्यसूचना आयोग उनकी सूची में नहीं है इसलिए इस पर वे निर्णय नहीं ले सकते। राज्य सरकार पच्चीस हजार से कम जुर्माने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपील की अनुमति नहीं दे सकती है इसलिए सूचना आयोग को इसमें अनुमति नहीं मिल पा रही है।
वाणिज्य और पुलिस से जुड़े मामले
जिन दो मामलों में हाईकोर्ट ने राज्य सूचना आयोग पर जुर्माना लगाया है। उनमें से एक मामले में नरसिंहपुर के प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने वाणिज्यिक कर विभाग के लोक सूचना अधिकारी इंदौर से स्वयं के लोकायुक्त प्रकरण में अभियोजन स्वीकृति संबंधी नस्ती की छायाप्रतियों से संबंधित प्रमाणित प्रतिलिपियां मांगी थी। लोक सूचना अधिकारी ने जांच एवं अन्वेषण की कार्यवाही प्रचलित होंने का उल्लेख करते हुए जानकारी देने से इंकार कर दिया था। इस मामले में प्रथम अपीलीय अधिकारी वाणिज्यिक कर आयुक्त इंदौर ने लोक सूचना अधिकारी के फैसले को सही ठहराते हुए अपील निरस्त कर दी थी। इस मामले में तत्कालीन सूचना आयुक्त सुरेन्द्र सिंह के पास द्वितीय अपील हुई तो उन्होंने भी लोक सूचना अधिकारी और अपीलीय अधिकारी द्वारा किए गए निराकरण को विधिसम्मत मांगा और इसमें आयोग स्तर पर किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं बताते हुए द्वितीय अपील निराकृत कर दी। द्वितीय अपील में सुनवाई के दौरान अपीलार्थी और लोक सूचना अधिकारी ने यह नहीं बताया कि आवेदक के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृत हो चुका है और चालान पेश हो चुका है। इस मामले में आवेदक प्रदीप श्रीवास्तव ने जबलपुर उच्च न्यायालय में रिट याचिका लगाई थी। उच्च न्यायालय ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जानकारियां नहीं दिये जाने के फैसले को सही नहीं माना और सूचना आयोग पर दो हजार रुपए की कास्ट लगाई थी। आयोग ने जबलपुर उच्च न्यायालय में रिव्यू पिटीशन लगाई जो खारिज कर दी गई। राज्य सूचना आयोग इस कास्ट लगाए जाने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देना चाहता है।
दूसरा मामला पुलिस प्रशिक्षण विद्यालय उमरिया के कामता प्रसाद मिश्रा से जुड़ा हुआ है। इनके विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति के दस्तावेज मांगे गए थे जिनके आधार पर यह स्वीकृति दी गई थी। इस मामले में भी प्रथम अपील, द्वितीय अपील मेें अभियोजन से जुड़ी जानकारी देने से इंकार कर दिया गया था। लोकायुक्त कार्यालय के अनुमोदन के बिना यह जानकारी नहीं दी जा सकती यह कहते हुए जानकारी नहीं दी गई थी। इस मामले में मुख्य सूचना आयुक्त ने इस जानकारी को प्रगट करने योग्य न पाते हुए अपील निरस्त कर दी थी। इस मामले मे आवेदक उच्च न्यायालय जबलपुर गए और वहां से जज ने इस फैसले को गलत ठहराते हुए गृह विभाग और राज्य सूचना आयोग पर पांच हजार रुपए का जुर्माना लगाया था।
सूचना आयोग के फैसलों पर हाईकोर्ट ने जुर्माना लगाया है हम इसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करना चाहते है। प्रस्ताव सामान्य प्रशासन विभाग के पास भेजा है वहां के निर्णय की जानकारी नहीं है।
एके शुक्ला, मुख्य सूचना आयुक्त
राज्य सूचना आयोग ने हाईकोर्ट द्वारा कास्ट लगाए जाने के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करने के लिए अनुमति मांगी है। इस पर हमने अभी अनुमति नहीं दी है।
विनोद कुमार, अपर मुख्य सचिव सामान्य प्रशासन विभाग