November 26, 2024

शनिवार के दिन हनुमान जी की स्तुति करने से, हर समस्या से मिलेगी मुक्ति

0

शनिवार का दिन हिंदू संस्कृति व ज्योतिष में मुख्य रूप से न्याय के देवता शनिदेव का माना जाता है, लेकिन इसके साथ ही ये दिन श्रीहनुमान का भी माना जाता है। मान्यता है कि जो जातक पूरे मन से हनुमान जी की पूजा करते हैं, उन्हें शनि देव किसी प्रकार का नुक्सान नहीं पहुंचाते हैंं। ऐसे में इस दिन हनुमान जी की पूजा भी विशेष मानी गई है। हनुमान जी की स्तुति के लिए अनेक तरह के पाठ विद्यमान हैं। जिनमें हनुमान चालीसा, हनुमानाष्टक व श्री बजरंग बाण प्रमुख माने जाते हैं।

 शनिवार के दिन श्री हनुमान का एक पाठ विशेष कारगर माना जाता है, इसका कारण ये है कि ये केवल एक पाठ न होकर यह एक तरह के हनुमान जी द्वारा प्रदत्त सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है। ऐसे में शनिवार को इसका पाठ अवश्य करना चाहिए। तो चलिए जानते हैं कि ये श्री हनुमान का कौन सा पाठ है, पं. मिश्र के अनुसार ये हनुमान जी का श्री बजरंग बाण है, जो सभी तरह की परेशानियों में सुरक्षा का कवच बन हमारी रक्षा करता है। तो चलिए पढ़ते हैं श्री बजरंग बाण…

श्री बजरंग बाण-

दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥

चौपाई
"जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥

अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥

अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥

जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥

बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥

इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥

जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥

बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥

जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥

उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥

ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥

यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥

यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥

दोहा
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *