September 28, 2024

सरकार कर रही विचार, शहीदों की पत्नियों को पुनर्विवाह पर भी मिल सकता अफसर बनने का मौका

0

 नई दिल्ली 

युद्ध में शहीद हुए सैन्य अफसरों की पत्नियों को पुनर्विवाह के बाद शार्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) के जरिये सेना के अफसर के रूप में करियर बनाने का मौका मिल सकता है। सूत्रों के अनुसार रक्षा मंत्रालय संसदीय समिति की उस सिफारिश पर विचार कर रहा है, जिसमें पुनर्विवाह करने पर शहीदों की पत्नियों को एसएससी में आरक्षित सीटों पर चयन का लाभ देने से वंचित कर दिया जाता है।

मौजूदा नियमों के शहीदों की पत्नियों के लिए एसएससी (टेक्निकल) और नॉन टैक्निकल में पांच फीसदी सीटें सुरक्षित रखी गई हैं। आवश्यक योग्यताएं रखने वाली शहीदों की पत्नियों को बोर्ड में सीधे इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है। हालांकि, यह पाया गया है कि इस कोटे की ज्यादातर सीटें खाली रह जाती हैं। इसके पीछे एक कारण यह भी पाया गया है कि शहीदों की पत्नियां यदि फिर से विवाह कर लेती हैं, तो उन्हें इस कोटे का लाभ नहीं दिया जाता। इसलिए अनेक शहीदों की पत्नियां आवेदन ही नहीं कर पाती हैं। यह नियम अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा है। इसे हटाए जाने की मांग भी की जा रही थी। 

गैर जरूरी प्रावधान
हाल में रक्षा मंत्रालय की स्थाई संसदीय समिति ने संसद में पेश रिपोर्ट में कहा कि अभी यदि कोई शहीद की पत्नी पुनर्विवाह कर लेती है, तो उसे आरक्षित सीटों के लाभ से वंचित कर दिया जाता है। यह प्रावधान गैर जरूरी है। इसलिए इस पर फिर से विचार किए जाने की जरूरत है। दरअसल, यह देखा गया है कि कई बार बहुत कम उम्र में अफसर शहीद हो जाते हैं। आवश्यक योग्यता हासिल करने और भर्तियां निकलने की प्रक्रिया में कई साल और लग जाते हैं। इस बीच परिवार की तरफ से शहीदों की पत्नियों को नए सिरे से जीवन शुरू करने के लिए पुनर्विवाह के लिए भी प्रेरित किया जाता है। इससे उसे सीधे नुकसान होता है। वह सैन्य अफसर के रूप में करियर बनाने से वंचित रह जाती है। जबकि एसएससी में विवाहित पुरुषों और महिलाओं की नियुक्ति पर कोई रोक नहीं है। इसलिए विशेषज्ञ इस प्रावधान को गैरजरूरी और भेदभावपूर्ण मान रहे हैं।

शिकायतों का रिकॉर्ड नहीं
सेना से ऐसे मामलों के बारे में पूछे जाने पर कोई ब्यौरा उपलब्ध नहीं हो सकता क्योंकि इस प्रकार की शिकायतों का कोई रिकार्ड नहीं है। हालांकि, रक्षा महकमे से जुड़े सूत्रों ने कहा कि इस सिफारिश पर विचार किया जा रहा है। हो सकता है कि आने वाले समय में यह प्रावधान हटा दिया जाए। सिफारिशों में यह भी कहा है कि ऐसे मामलों में यदि विज्ञापन जारी करने में सरकार की तरफ से विलंब होता है, तो शहीदों की पत्नियों को अधिकतम आयु में भी छूट दिये जाने की जरूरत है।
 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *