भगवान श्रीकृष्ण के वरदान से मां गंगा बनी मोक्षदायिनी, स्पर्श मात्र से धुल जाते हैं मनुष्यों के पाप
हिंदू धर्म में गंगा नदी को देवी मां के रूप में पूजा जाता है. पुराणों व श्रुतियों में इसे सबसे पवित्र नदी कहा गया है, जिसमें नहाने से मनुष्य के सारे पाप धुलने की मान्यता है. गंगा में नहाने ही नहीं, उसकी वायु के स्पर्श और नाम लेने से भी व्यक्ति हर पाप से मुक्त हो जाता है, जिसका वरदान खुद भगवान श्रीकृष्ण ने गंगा नदी को दिया था. इसी से संबंधित कथा आज हम आपको बताने जा रहे हैं.
भागीरथ के प्रयासों से आई गंगा
देवी भागवत पुराण में गंगा नदी के पृथ्वी पर आगमन की कथा का वर्णन है, जिसके अनुसार भगवान राम के पूर्वज सगर के रानी वैदर्भी से उत्पन्न 60 हजार पुत्र कपिल मुनि के श्राप से मृत्यु को प्राप्त हो गए थे. इससे सगर काफी दुखी हुए, जिन्हें देख उनकी दूसरी रानी शैव्या के पुत्र असमंजस ने अपने भाइयों के उद्धार के लिए गंगा नदी को पृथ्वी पर लाने का तप किया पर बीच में ही उन्होंने देह त्याग दी.
इसके बाद उनके पुत्र अंशुमान और फिर भागीरथ ने घोर तप किया. अंत में भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए और उन्होंने भागीरथ की प्रार्थना पर गंगा को पृथ्वी पर रहने की आज्ञा दी. देवी भागवत पुराण के अनुसार, तभी श्रीकृष्ण ने गंगा को वरदान दिये थे.
गंगा के नाम से ही धुल जाते हैं पाप
देवी भागवत पुराण व श्रुति के अनुसार श्रीकृष्ण कहते हैं कि भारत वर्ष में मनुष्यों द्वारा उपार्जित करोड़ों जन्मों के पाप गंगा की वायु के स्पर्श मात्र से नष्ट हो जाते हैं. स्पर्श और दर्शन की अपेक्षा गंगादेवी में स्नान करने से 10 गुना पुण्य होता है. सामान्य दिन में भी स्नान करने से मनुष्यों के अनेकों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं.
चंद्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण और अर्घोदय में तो स्नान का प्रभाव 100 करोड़ गुना तक बढ़ जाता है. यही नहीं यदि कोई व्यक्ति गंगा से सैंकड़ों योजन की दूरी पर है तो वह भी गंगा- गंगा कहते हुए स्नान करने भर से सारे पापों से छूटकर विष्णु लोक को जाता है.
श्रीकृष्ण आगे कहते हैं कि जहां भी गंगा नाम का कीर्तन होगा, वही स्थल तीर्थ स्थल बन जाएगा. किसी भी व्यक्ति का शव गंगा में प्रवाहित होगा तो जब तक उसकी एक भी अस्थि पानी में रहेगी, तब तक वह स्वर्ग में रहेगा.