धर्म बदलने वालों को ST का दर्जा मिलेगा या नहीं? केंद्र सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
नई दिल्ली
धर्म बदलने वालों को अनुसूचित जाति (ST) का दर्जा देने को लेकर आयोग बनाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। SC में याचिका दायर कर सरकार के उस फैसले को चुनौती दी गई है, जिसके तहत उन लोगों को एसटी का दर्जा देने के लिए आयोग का गठन किया गया है, जो दावा करते हैं कि वे मूलत: अनुसूचित जाति से हैं लेकिन उन्होंने ईसाई या इस्लाम धर्म अपना लिया है। मालूम हो कि पूर्व चीफ जस्टिस के.जी. बालकृष्णन की अध्यक्षता में यह आयोग गठित किया गया है।
वकील प्रताप बाबूराव पंडित की ओर से यह याचिका दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि वह महार समुदाय से संबंधित हैं और अनुसूचित जाति के ईसाई हैं। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि केंद्र सरकार ने वर्षों तक कई आयोगों का गठन किया है और एक नए आयोग के गठन से एससी में इस मुद्दे की सुनवाई में और देरी होगी। SC में पहले से ही कई याचिकाएं हैं जो 2004 में दायर की गई थीं।
'मामले से जुड़ी याचिकाएं 18 वर्षों से लंबित'
याचिका में कहा गया है, 'याचिकाकर्ता परेशान है क्योंकि मुख्य रिट याचिका (सिविल) संख्या 180/2004 और संबंधित याचिकाएं 18 वर्षों से लंबित हैं। याचिकाकर्ता को आशंका है कि अगर वर्तमान आयोग को अनुमति दी जाती है, तो मुख्य याचिका पर सुनवाई में देरी हो सकती है जिससे अनुसूचित जाति मूल के ईसाइयों को अपूरणीय क्षति हो सकती है, जिन्हें पिछले 72 साल से अनुसूचित जाति के विशेषाधिकार से वंचित रखा गया है।'
याचिका में दलील- जल्द न्याय देना जरूरी
वकील फ्रैंकलिन सीजर थॉमस के जरिए दायर याचिका में कहा गया है, इसका असर प्रभावित समुदाय के मौलिक अधिकारों पर भी पड़ रहा है और अनुच्छेद 21 के अनुसार त्वरित न्याय देना जरूरी है। मालूम हो कि संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 (समय-समय पर संशोधित) में कहा गया है कि हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म के अलावा कोई अन्य धर्म मानने वाले व्यक्ति को ST का सदस्य नहीं माना जा सकता है।