गणेश जी को खुश करने के पांच आसान उपाय, हर लेंगे सब दुख
गणेशजी आसानी से प्रसन्न होने वाले देवता हैं। वैसे तो रोज ही इनकी पूजा की जाती है, लेकिन बुधवार को इनकी पूजा का खास दिन है। इसके अलावा बृहस्पतिवार को इनकी विशेष पूजा होती है। इस दिन कुछ उपायों से गणेशजी को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है।
गणेशजी कुछ उपायों से आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं।
भोपाल. पार्वती नंदन गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है. मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से इनकी पूजा करता है गणेशजी उसके सब संकट दूर करते हैं। आइये बताते हैं गणेशजी को प्रसन्न करने के आसान उपाय।
1. मोदक का भोगः प्रयागराज के आचार्य प्रदीप पाण्डेय का कहना है कि गणेशजी का प्रिय भोग मोदक है। बूंदी का मुलायम लड्डू स्वादिष्ट होता है, इसे खाना भी सहज होता है। वे सभी भोगों में मोदक को सर्वाधिक पसंद करते हैं। इसलिए विनायक की पूजा में मोदक का भोग जरूर लगाना चाहिए। मान्यता है कि इससे गणपति आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं और भक्त को मनचाहा आशीर्वाद देते हैं, और उसकी सभी दुखों का नाश करते हैं।
2. शमी की पूजाः वृक्षों में शमी गणेशजी को प्रिय है। इसलिए गणपति की पूजा में शमी को भी शामिल करना चाहिए और शमी की पूजा करनी चाहिए।
3. सिंदूर से पूजाः गणपति को प्रसन्न करने के लिए सिंदूर से उनका तिलक करना चाहिए। उनको सिंदूर का चोला चढ़ाना चाहिए। इससे गणपति भक्त पर प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित आशीर्वाद देते हैं। पुरोहितों का कहना है कि गुरुवार को गणेशजी को हल्दी मिश्रित सिंदूर अर्पित करना चाहिए। वहीं सिंदूर अर्पण के वक्त नीचे लिखे मंत्र का वाचन करना चाहिए।
सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्,
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्।
4. दूर्वा अर्पणः आसपास आसानी से उपलब्ध होने वाली दूर्वा भी गणेशजी को प्रिय है। इसलिए उनकी पूजा की सामग्री में दूर्वा जरूर रखें। मान्यता है कि मात्र दूर्वा अर्पण से ही गणेशजी भक्त पर प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन गणेशजी को जोड़े में तीन या पांच गांठ वाली दूर्वा चढ़ानी चाहिए। जैसे 11 जोड़ा दूर्वा यानी 22 दूर्वा। दूर्वा को गणेशजी के पेट पर चिपकाना चाहिए। मान्यता है कि गुरुवार को गणेशजी को दूर्वा अर्पित करने से धन संबंधी संकट दूर होते हैं।
5. गणपति को प्रसन्न करने वाले मंत्रः भक्त को गणेशजी से अपने दुखों का शमन कराने के लिए इन मंत्रों का जाप करना चाहिए।
गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः।
द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः॥
विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्॥
विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत् क्वचित्'